एससी-एसटी को IAS बनाने सरकार ने खर्च किया करोडों, पहली ही परीक्षा में सब फेल
किताब सहित उठाया था जेब खर्च तक का जिम्मा
भोपाल। आरक्षित वर्ग के युवाओं को सरकारी खर्च पर कलेक्टर बनाने का दांव इस बार बेकार चला गया। क्योंकि मप्र सरकार ने जिस कोचिंग अंतर्गत 84 पर भरोसा जताया था, उनमें कोई एक भी संघ लोक सेवा आयोग चयन परीक्षा 2021 में स्थान तक नहीं बना पाया है। जबकि अनुसूचित जाति और जनजाति की प्रतिभाओं को अवसर देने सरकार ने इनकी पुस्तकों के साथ मासिक जेब खर्च का भार तक उठाने से नहीं चूकी है
लोक सेवा आयोग कोचिंग योजना
बात इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि लोक सेवा आयोग कोचिंग योजना के तहत सत्र 2019-20 के लिये इनको चयनित किया गया था। दिल्ली के प्रमुख 4 कोचिंग संस्थानों में प्रवेश दिलाकर लोकसेवा आयोग परीक्षा की तैयारी करवाई।
एक भी नहीं पास कर पाया प्रारंभिक परीक्षा
18 महीने की कोचिंग और 4 करोड़ रूपये इन पर खर्च करने का परिणाम यह रहा कि मुख्य परीक्षा से पहले चयनित 84 अभ्यर्थियों में कोई एक प्रारंभिक परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर पाया है। जबकि लोकसेवा आयोग इस दौरान वर्ष 2020 व 21 के लिये दो बार परीक्षा आयोजित कर चुका है। इस अवधि में बिना सरकारी मदद पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों ने न केवल अपना स्थान बनाया, बल्कि शीर्ष 10 के अंदर रहकर प्रदेश का मान भी बढ़ाया है।
किताब ही नहीं जेब खर्च तक दिया
सरकार ने इस योजना के तहत निजी कोचिंग संस्थान में प्रवेश के लिये चयनित प्रति विद्यार्थियों के 2 लाख रूपये शैक्षणिक शुल्क का भार तो उठाया ही है। इसके अलावा किताब से लेकर मासिक जेब का खर्च भी वहन किया है। यह बात अलग है कि किताब के लिये यह राशि एक मुश्त 15 हजार रूपये दी गई, लेकिन 12 हजार 500 की राशि प्रतिमाह इनके खाते में बतौर जेब खर्च डाली गई है।
3 संस्थानों में 85 को प्रवेश
सरकार ने इन अभ्यर्थियों को चिंहित किये गये 4 कोचिंग सेंटरों में से तीन में 85 बच्चों को प्रवेश दिलाया। बाजीराम एंड रवि इंस्टीट्यूट फॉर आईएएस को छोड़कर 4 को श्रीराम आईएएस, 26 अल्टरनेटिव लर्निंग सिस्टम प्रा.लि. और दृष्टि द विजन में 55 विद्यार्थियों को भेजा गया। यहां बात अलग है कि यहां 84 ही अध्ययन कर पाये। यह स्थिति तब सामने आई है जबकि 100 स्थानों के विपरीत 101 विद्यार्थी का चयन किया गया था। जबकि परिणाम को लेकर कोचिंग संस्थानों की चुप्पी सामने आई है।
दे रहे परिस्थितियों को दोष
सरकार से मिली सुविधाओं के बाद परिणाम नहीं दे पाने वाले अभ्यर्थियों में भोपाल के सौरभ नटेरिया भी है। यह अपनी मेहनत व लगन से परे परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहराते हैं। इनकी माने तो सरकार से पैसे समय पर जरूर मिले पर विभाग की लेटलतीफी के कारण कोचिंग में प्रवेश अगस्त सितंबर में मिला। इसके बाद कोविड़ लग गया। इसके कारण लाभ नहीं मिल पाया।
इनका कहना है
सरकार की मंशा के अनुरूप परिणाम देने विभाग द्वारा बेहतर प्रयास किये जा रहे हैं। इसे गुणवत्तापूर्ण बनाने के जो भी संभव होगा किया जाएगा।
संजीव सिंह, आयुक्त मप्र आदिम जाति कल्याण विभाग