12 साल की सजा काटने के बाद दोषमुक्त हुए हत्या के 5 आरोपी

12 साल की सजा काटने के बाद दोषमुक्त हुए हत्या के 5 आरोपी

फास्ट ट्रेक कोर्ट दतिया ने 2009 में सुनाई थी आजीवन कारावास की सजा

ग्वालियर। हाई कोर्ट की युगल पीठ ने हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए कहा कि शक कितना भी मजबूत हो, लेकिन प्रमाण का स्थान नहीं ले सकता। इस मामले में अभियोजन पक्ष के आरोपियों के खिलाफ लगाए गए हत्या के आरोपों को प्रमाणित करने में विफल रहा है, लिहाजा सभी को दोषमुक्त किया जाता है।

12 साल से अधिक की सजा काट ली

हत्या के मामले में पांच आरोपियों ने 12 साल से अधिक की सजा काट ली। 12 साल की सजा काटने के बाद यह दोषमुक्त हुए हैं। हाईकोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए सभी को जेल से रिहा करने के आदेश दिए हैं।

दतिया फास्ट ट्रेक कोर्ट ने 2009 में सुनाई थी सजा 

29 दिसंबर 2009 को फास्ट ट्रेक कोर्ट दतिया ने वीर सिंह कुशवाह, बाली उर्फ बालकिशन, बिहारीलाल कुशवाह, सियाशरण कुशवाह तथा रविन्द्र जखोरिया को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इनकी अपील 2010 से हाई कोर्ट में लंबित थी। लेकिन हाई कोर्ट ने विधिक सहायता से अधिवक्ता उपलब्ध कराए। 4 अक्टूबर को बहस के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। कोर्ट ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि इस मामले में गवाहों ने घटना स्थल पर खून की बूंदे देखी थी, जहां लाश मिली थी वहां तक खून की बूंदे भी देखी थी। यह बयान संदिग्ध है। क्योंकि वहां अंधेरा व सर्दी का मौसम था वहां कुछ भी देखना संभव नहीं था। इस प्रकार इन गवाहों की गवाही संदिग्ध है। गवाहों ने ही यह स्वीकार किया कि उस समय वहां अंधेरा था। गवाहों के अनुसार उन्हें जहां-जहां खून मिला था, जांच अधिकारी ने वहां से उस रक्त को संग्रहित ही नहीं किया। इस प्रकार जांच भी दोषपूर्ण थी। गवाहों द्वारा यह कहना कि वे खून की बूंदों को देखकर शव के पास तक पहुंचे थे अविश्वसनीय है। घटना की सूचना रात में पुलिस को नहीं दी गई। न ही मोबाइल पर सूचना दी गई। अभियोजन यह भी सिद्ध नहीं कर सका कि मृतक से समझौते के लिए उस पर दबाव डाला गया। दोषमुक्त किया है।

जानिए पूरा मामला

फूल सिंह ने 8 दिसंबर 2008 को सुबह सात बजे थाना सिविल लाइन दतिया में अपराध दर्ज कराया कि वीर सिंह की पत्नी पिस्ता कुशवाह द्वारा हर गोविंद के खिलाफ दर्ज कराए था। यह मामला अदालत में लंबित है। वीर सिंह इस मामले में समझौता कराने के लिए पैसे की मांग कर रहा था। हरगोविंद पैसे नहीं देना चाहता था।

7 दिसंबर 2008 को सुबह 11 बजे बिहारी, सियाशरण, बाली, रविन्द्र, वीर सिंह, सेवक, हरप्रसाद कुशवाह हरगोविंद के घर पहुंचे। समझौते के लिए हरिगोविंद को भी साथ ले गए। हरगोविंद जब रात आठ बजे तक नहीं अाया तो शिकायतकर्ता और उनकी भाभी जयंती और रति कुए के पास गई। हरगोविंद के बारे में बिहारी से पूछताछ की। इस पर बिहारी ने कहा कि उन्होंने हरगोविंद की हत्या कर दी है। इसके बाद बिहारी और बाली वहां से भाग गए। उन्होंने बिहारी के कमरे के बाहर खून पड़ा देखा। इसके बाद वे रोने लगे और मुख्य सड़क पर आ गए। सड़क पर भी खून की बूंदे पड़ी थी। तब वे पुलिया के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि बाली, सियाशरण, रवीन्द्र वीर सिंह, सेवक हरप्रसाद हरगोविंद के शव को उठाकर ले जा रहे थे। फिर वे शव को रखकर भाग गए। 24 जनवरी 2009 को वीर सिंह कुशवाह, बाली उर्फ बालकिशन, बिहारीलाल कुशवाह, सियाशरण कुशवाह तथा रविन्द्र जखोरिया गिरफ्तार कर लिया। तभी से जेल में थे।