भोपाल गैस कांड: भरने से पहले हर दिसंबर हरे हो जाते हैं जख्म
भोपाल
भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल में छोला रोड के पास स्थित यूनियन कार्बाईड इंडिया लिमिटेड कंपनी में जहरीले कैमिकल्स के द्वारा कीटनाशक का निर्माण किया जाता था। लेकिन 2 दिसंबर 1984 की रात इस कंपनी में जहरीली गैस मिथाईल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ। जिसमें लगभग 15000 से अधिक लोगो की जानें गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए।
भोपाल गैस त्रासदी को मानव इतिहास का सबसे बडा औद्योगिक हादसा माना जाता है। जिससे हजारों लोगों की जान चली गई। इस तबाही का अंत यहीं नहीं हुआ बल्कि आज की पीढियों में भी इसका विऩाशक असर पड़ रहा है। जहरीली गैस के रिसाव के कारण यहां आज भी बच्चे विकलांग लंगड़े लूले ही पैदा होते हैं। जानिए इस कंपनी के बारे में...
कब स्थापित हुई यह कंपनी...
यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 1969 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के नाम से भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली थी। इसके 10 सालों बाद 1979 में भोपाल में एक प्रॉडक्शन प्लांट लगाया गया था। इस प्लांट में एक कीटनाशक तैयार किया जाता था जिसका नाम 'सेविन' था। सेविन असल में कारबेरिल नाम के केमिकल का ब्रैंड नाम था। इस त्रासदी के लिए यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के द्वारा उठाए गए शुरुआती कदम भी कम जिम्मेदार नहीं थे। उस समय जब अन्य कंपनियां कारबेरिल के उत्पादन के लिए कुछ और इस्तेमाल करती थीं जबकि यूसीआईएल ने मिथाइल आइसोसाइनेट (मिक) का इस्तेमाल किया। मिक एक जहरीली गैस थी। लेकिन मिक के इस्तेमाल से उत्पादन पर खर्च काफी कम पड़ता था, इसीलिए यूनियन कार्बाइड ने इस विषैली गैस को अपनाया।
पहले भी हो चुका था कई बार रिसाव...
कम ही लोग जानते हैं कि, भोपाल गैस कांड से पहले भी एक घटना हुई थी। इसी कंपनी में 1981 में फॉसजीन नामक गैस का रिसाव हो गया था जिसमें एक वर्कर की मौत हो गई थी। इसके बाद जनवरी 1982 में एक बार फिर फॉसजीन गैस का रिसाव हुआ जिसमें 24 वर्कर्स की हालत खराब हुई थी। उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहीं लापरवाही का दौर यहीं नहीं थमा। फरवरी 1982 में एक बार फिर रिसाव हुआ। लेकिन इस बार एमआईसी का रिसाव हुआ था। उस घटना में 18 वर्कर्स प्रभावित हुए थे। उन वर्कर्स का क्या हुआ, यह आज भी रहस्य बना हुआ है। इसी वर्ष अगस्त 1982 में एक केमिकल इंजिनियर लिक्विड एमआईसी के संपर्क में आने के कारण 30 फीसदी जल गया था। उसी वर्ष अक्टूबर माह में एक बार फिर एमआईसी का रिसाव हुआ। उस रिसाव को रोकने के लिए एक व्यक्ति बुरी तरह से जल गया था। इस घटना के बाद भी कई बार 1983 और 1984 के दौरान फॉसजीन, क्लोरीन, मोनोमेथलमीन, कार्बन टेट्राक्लोराइड और एमआईसी का रिसाव हुआ था।
आखिर क्यों किया गया मिथाइल आइसोसानाइनेट का इस्तेमाल...
कंपनी में जहरीली गैस का रिसाव यहां का लचर सिस्टम और घोर लापरवाही थी। कंपनी बनने के कुछ वर्षों बाद 1980 के शुरुआती सालों में कीटनाशक की मांग कम हो गई थी। जिसके कारण कंपनी ने सिस्टम के रखरखाव पर सही तरीके से ध्यान नहीं दिया। इसके बाद भी कंपनी एमआईसी (मिक) का उत्पादन भी नहीं रोका और एमआईसी का ढेर लगता गया। एमआईसी (मिक) एक जहरीली गैस थी। लेकिन मिक के इस्तेमाल से उत्पादन पर खर्च काफी कम पड़ता था, इसीलिए यूनियन कार्बाइड ने इस विषैली गैस का इस्तेमाल किया।
पत्रकार राजकुमार केसवानी ने पहले भी किया था आगाह...
इस घटना के पहले राजकुमार केसवानी नाम के पत्रकार ने 1982-1984 के बीच इस पर चार बातें लिखी। राजकुमार केसवानी के द्वार लिखी गई बातों में यूसीआईएल प्लांट के खतरे से चेताया गया था। नवंबर 1984 में प्लांट काफी घटिया स्थिति में था। प्लांट के ऊपर एक खास टैंक था। टैंक का नाम E610 था जिसमें एमआईसी 42 टन थे। जबकि सुरक्षा की दृष्टि से एमआईसी का भंडार 40 टन से ज्यादा नहीं होना चाहिए था। टैंक की सुरक्षा की कोई भी व्यव्सथा नहीं की गई थी। वह सुरक्षा के किसी भी मानकों पर खरा नहीं उतरता था।
सिलसिले वार जानिए उस खौफनाक रात का भयानक सच....
रात 8 बजे यूनियन कार्बाइड कारखाने की रात की शिफ्ट आ चुकी थी, जहां सुपरवाइजर और मजदूर अपना-अपना काम कर रहे थे। एक घंटे बाद ठीक 9 बजे करीब 6 कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइनलाइन की सफाई का काम करने के लिए निकल पड़ते हैं। उसके बाद ठीक रात 10 बजे कारखाने के भूमिगत टैंक में रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई। एक साइड पाइप से टैंक E610 में पानी घुस गया। पानी घुसने के कारण टैंक के अंदर जोरदार रिएक्शन होने लगा जो धीरे-धीरे काबू से बाहर हो गया। स्थिति को भयावह बनाने के लिए पाइपलाइन भी जिम्मेदार थी जिसमें जंग लग गई थी। जंग लगे आइरन के अंदर पहुंचने से टैंक का तापमान बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था। इससे टैंक के अंदर दबाव बढ़ता गया।
रात 10:30 बजे शुरू हुई त्रासदी की शुरुआत...
रात 10:30 बजे टैंक से गैस पाइप में पहुंचने लगी। वाल्व ठीक से बंद नहीं होने के कारण टॉवर से गैस का रिसाव शुरू हो गया और टैंक पर इमर्जेंसी प्रेशर पड़ा और 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन एमआईसी का रिसाव हो गया। रात 12:15 बजे वहां पर मौजूद कर्मचारियों को घुटन हो