नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की वकालत करते रहे हैं। इस विचार को अब देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों का समर्थन प्राप्त हुआ है। पूर्व चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने संसदीय समिति को बताया कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना संविधान के ढांचे के अनुरूप है। उन्होंने विपक्ष के इस दावे को खारिज किया कि यह अवधारणा संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है। चंद्रचूड़ का कहना है कि संविधान में ऐसा कोई नियम नहीं है, जो केंद्र और राज्यों के चुनावों को अलग-अलग करने के लिए बाध्य करता हो।
एक साथ चुनाव का प्रावधान करने वाले विधेयक को लेकर गठित संसदीय समिति को पहले ही अपने विचार से अवगत करा चुके भारत के पूर्व चीफ जस्टिस ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (ओएनओई) की अवधारणा की संवैधानिकता का समर्थन किया है, लेकिन निर्वाचन आयोग को दी गई शक्ति सहित विधेयक के विभिन्न पहलुओं को लेकर चिंता जताते हुए सुझाव भी दिए हैं।
भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) रह चुके न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने संयुक्त संसदीय समिति को सौंपी अपनी राय में विपक्ष की इस आलोचना को खारिज कर दिया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव का एक साथ होना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है।
चुनाव आयोग की शक्तियों पर सवाल
हालांकि, पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, रंजन गोगोई और अन्य जजों ने चुनाव आयोग को दी गई व्यापक शक्तियों पर चिंता जताई है। प्रस्तावित विधेयक में आयोग को ऐसी शक्तियाँ दी गई हैं, जो विधानसभाओं के पांच साल के कार्यकाल को कम या ज्यादा करने की अनुमति दे सकती हैं। चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि ऐसी शक्तियों के उपयोग के लिए संविधान में स्पष्ट दिशानिर्देश होने चाहिए। पूर्व चीफ जस्टिस यू. यू. ललित ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा कि ऐसी शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए ठोस नियम जरूरी हैं।
क्षेत्रीय दलों पर प्रभाव की चिंता
चंद्रचूड़ ने यह भी आशंका जताई कि एक साथ चुनाव होने से क्षेत्रीय और छोटे दलों का प्रभाव कम हो सकता है। राष्ट्रीय दल, जो वित्तीय और संगठनात्मक रूप से मजबूत हैं, चुनावों में प्रभुत्व जमा सकते हैं। इस असंतुलन को रोकने के लिए उन्होंने चुनावी अभियान और वित्त पोषण के नियमों को और सख्त करने की सलाह दी है, ताकि सभी दलों को समान अवसर मिल सके।
मध्यावधि चुनावों की चुनौती
प्रस्तावित विधेयक के तहत, मध्यावधि चुनावों में चुनी गई सरकार का कार्यकाल केवल मूल पांच साल की अवधि के बचे हुए समय तक होगा। चंद्रचूड़ ने चेतावनी दी कि अगर यह अवधि एक साल या उससे कम है, तो मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट (MCC) के कारण सरकार की नीति निर्माण और विकास कार्यों की क्षमता प्रभावित हो सकती है। कई सांसदों ने भी संसदीय समिति के सामने इस मुद्दे को उठाया है।
यू यू ललित का सुझाव
पूर्व मुख्य न्यायाधीश यू. यू. ललित ने सुझाव दिया कि एक साथ चुनावों को लागू करने के लिए चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाया जाए। उन्होंने कहा कि विधानसभाओं के बचे हुए कार्यकाल को ध्यान में रखते हुए योजना बनानी चाहिए, ताकि कानूनी चुनौतियों से बचा जा सके। यह दृष्टिकोण व्यावहारिक और कम विवादास्पद हो सकता है।
विपक्ष कहता है लोकतंत्र विरोधी
विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने इस विधेयक को “लोकतंत्र विरोधी” और “असंवैधानिक” करार दिया है। उनका कहना है कि यह कदम क्षेत्रीय दलों को कमजोर करेगा और सत्ता का केंद्रीकरण करेगा। दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि एक साथ चुनाव से प्रशासनिक और वित्तीय संसाधनों की बचत होगी, और बार-बार MCC लागू होने से शासन में रुकावटें कम होंगी।
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