मीडिया ने ऐसे खत्म किया छोटा राजन का खेल, जज ने भी की तारीफ
मुंबई
हमारे समाज में हर फील्ड में हीरो हैं। मीडिया ऐसे लोगों का पूरी दुनिया से परिचय कराती है, पर चर्चित जे.डे. हत्याकांड में जज समीर अडकर ने छोटा राजन को उम्र कैद की सजा सुनाते वक्त अपने 599 पेज के फैसले में खुद मीडिया के ही कई जिम्मेदार और भरोसेमंद चेहरों का तारीफ में बार-बार जिक्र किया।
जज ने अपने जजमेंट में मुंबई पुलिस और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से पेश किए गए जिन तमाम सबूतों को आधार बनाया, उनमें सबसे अहम थी- मुंबई के चार पत्रकारों जीतेंद्र दीक्षित, सुनील सिंह, निखिल दीक्षित और आरिज चंद्रा की गवाही। ये वे पत्रकार हैं जिन्हें जे.डे. की हत्या के बाद छोटा राजन ने खुद फोन किया था और हत्या की जिम्मेदारी ली थी।
राजन को भी हुआ था पछतावा
अदालत ने इन पत्रकारों की तारीफ करते हुए कहा कि इनकी तरफ से दी गई गवाही पर कोई उंगली नहीं उठाई जा सकती। जो कुछ भी उन्होने अदालत के सामने बयां किया है, उस आधार पर ही राजन को दोषी ठहराया गया है। जज अडकर ने अपने आदेश में कहा कि छोटा राजन फोन पर इन पत्रकारों के समक्ष न्याय प्रक्रिया के बाहर इकबालिया बयान दे रहा था।
राजन ने जे.डे. की हत्या के कुछ दिनों बाद जीतेंद्र दीक्षित को +3444 नंबर से कॉल किया था और कहा था कि यह हत्या उसी ने करवाई थी। उसने यह भी कहा था कि हत्या करवा कर उसे अब पछतावा हो रहा है, क्योंकि ‘उसके खिलाफ मेरे कान भरे गए थे।‘ दीक्षित ने इस बातचीत को अपने निजी ब्लॉग में भी डाला था, जिसे सीबीआई ने बतौर सबूत पेश किया। अदालत में मुकदमे के दौरान भी दीक्षित अपने बयान पर कायम रहे। विशेष मकोका जज समीर अडकर ने जीतेंद्र की गवाही की प्रशंसा करते हुए कहा कि छोटा राजन से हुई बातचीत को उन्होंने अपने व्यवसाय और जान जोखिम में डालकर प्रकाशित किया था। अगर ये जानकारी झूठी होती तो क्या राजन उन्हें छोड़ता?
पत्रकार की गवाही
जज ने अपने आदेश में यह भी लिखा, ‘गवाह जीतेंद्र दीक्षित की गवाही के दौरान यह साबित हुआ है कि वह एक जिम्मेदार पत्रकार हैं।‘ किसी भी जानकारी को वह बिना पुष्टि किए प्रकाशित नहीं करते। बचाव पक्ष की इस दलील थी कि उनकी पुलिस अधिकारियों से मिलीभगत है इसलिए उन्होंने ऐसी गवाही दी, जज अडकर ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जीतेंद्र दीक्षित एक क्राइम रिपोर्टर रहे हैं, इसलिए स्वाभाविक तौर पर पुलिस के साथ वे संपर्क में रहते थे। ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे यह साबित हो कि पुलिस ने उन पर इस तरह का ब्लॉग लिखने का दबाव डाला।
मकोका जज अडकर ने अपने फैसले में एक और टीवी पत्रकार सुनील सिंह की भी तारीफ की है। उन्होंने लिखा कि सुनील सिंह 1993 से पत्रकरिता कर रहे हैं। फोन कॉल के दौरान भी वह अपने न्यूज चैनल में थे। 1 जुलाई 2011 को रात 9 बजे सिंह के मोबाइल पर + 5032 नंबर से फ़ोन आया था। कॉल करने वाले ने खुद को छोटा राजन बताया था।
पूरी दुनिया में देखा
जज ने लिखा है, ‘सिंह की गवाही से यह बात साबित हुई कि आरोपी छोटा राजन ने बातचीत में बताया था कि जे.डे. ने अपनी सीमा क्रॉस कर दी थी।‘ जज के अनुसार, ‘एक तो सिंह को भरोसा था कि फ़ोन पर बात करने वाला छोटा राजन ही है। दूसरी, जो इससे भी महत्वपूर्ण बात है- वह यह कि छोटा राजन बिना किसी भय या दबाव के खुलकर बात कर रहा था। सुनील सिंह का पत्रकारिता का लंबा अनुभव और वरिष्ठता निर्विवाद रही है। बचाव पक्ष ने क्रॉस एग्जामिनेशन (जिरह) के दौरान भी इस बात पर कोई सवाल नहीं उठाया।‘
ध्यान देने वाली बात यह है कि राजन द्वारा जे.डे. की हत्या की बात कबूल करने वाली खबर कई दिन तक चली थी, जिसे पूरी दुनिया में देखा और सुना गया था। उसके खिलाफ लिखा गया ब्लॉग भी पब्लिक डोमिन में है। जज के अनुसार, अगर खबर गलत या फर्जी होती तो मानहानि के डर से कोई उसे कभी नहीं चलाता। अगर राजन को अपनी मानहानि का अहसास था, तो उसे इस तरह के गंभीर अपराध में अपना नाम घसीटे जाने पर क़ानूनी नोटिस देना चाहिए था। उसने ऐसा नहीं किया, जो बताता है कि वह जे.डे. की हत्या में अपने कबूलनामे पर कायम था।
...इसलिए छोटा राजन ने हत्या की बात बताई
सीबीआई कोर्ट ने एक और पत्रकार निखिल दीक्षित की गवाही को भी फैसले के लिए अपना आधार बनाया। निखिल ने जे.डे. का अंतिम संस्कार किया था। वे उस वक्त एक अंग्रेजी अखबार के लिए काम करते थे। निखिल ने अदालत को बताया कि छोटा राजन ने उन्हें फोन करके जे.डे. की हत्या की बात कबूली थी। राजन का कहना था कि उसने यह हत्या इसलिए करवाई क्योंकि जे.डे.. उसकी हत्या करवाने वाला था और उसके खिलाफ अखबार में खबरें छाप रहा था। जब निखिल ने राजन से पूछा कि वह उन्हें यह सब क्यों बता रहा है तो उसने जवाब दिया कि तुम जे.डे. के करीबी दोस्त थे, इसलिए तुम्हें यह सब बताना जरूरी समझा।
इस केस में पत्रकार आरिज चंद्रा को भी छोटा राजन ने फोन करके जे.डे. की हत्या की जिम्मेदारी ली थी। आरिज उन दिनों एक टीवी चैनल से जुड़े हुए थे। हालांकि उनके चैनल ने तब राजन की बातचीत को अपने यहां चलाया नहीं था, क्योंकि राजन के इंटरव्यू पहले ही मीडिया में सार्वजनिक हो गए थे।