आर्जेन्टीना में स्पेस स्टेशन बनाकर चीन ने अमेरिका के करीब बनाई अपनी पैठ

क्विंटुको 
आर्जेन्टीना के रेगिस्तान में विशालकाय ऐंटेना और चमचमाता टावर, खुले आसमान में 450 टन वजनी यह डिवाइस विदेशी धरती पर चीन की कहानी कह रही है। जी हां, यह चीन की फौज द्वारा बनाया गया स्पेस मिशन कंट्रोल स्टेशन है। दक्षिण अमेरिका में बना यह सेंटर चीनी सैटलाइट का प्रमुख केंद्र भी है। पेइचिंग का देश के बाहर लैटिन अमेरिका में प्रभाव बढ़ाने का संकेत देता यह स्टेशन सीधेतौर पर क्षेत्र में अमेरिका की राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक ताकत को चुनौती दे रहा है।  
 

इस स्टेशन ने मार्च में काम करना शुरू किया और चीन के स्पेस मिशन में अहम भूमिका निभा रहा है। आर्जेन्टीना के अधिकारियों का कहना है कि वे इस अभियान में सहयोग करने के लिए उत्सुक हैं। हालांकि जिस गोपनीय तरीके से इस बेस को लेकर समझौता हुआ, उससे संदेह भी पैदा होता है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में इस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। 

दरअसल, यह डील ऐसे समय में हुई है जब आर्जेन्टीना को निवेश की काफी दरकार थी। ऐसे में इस बात को लेकर चिंता जायज है कि चीन की खुफिया जानकारी जुटाने की क्षमता क्षेत्र में बढ़ सकती है। आर्जेन्टीना में भी इस पर बहस छिड़ गई है कि देश में चीन की इस तरह मौजूदगी से किस तरह का खतरा पैदा हो सकता है। 

क्या अमेरिका से हुई चूक? 
यूएस आर्मी वॉर कॉलेज में लैटिन अमेरिकन स्टडीज के प्रफेसर आर. इवैन एलिस ने कहा, 'चीन ने अर्थव्यवस्था, राजनीति और यहां तक कि सुरक्षा तंत्र के हिसाब से अपने नेताओं और कारोबारियों के अजेंडे पर चलते हुए क्षेत्र का डाइनैमिक्स ही बदल दिया है।' पिछले दशक में अमेरिका ने अपने इस बैकयार्ड में कम ध्यान दिया। यूएस ने इसके बजाय एशिया पर ज्यादा फोकस किया। 

खासतौर से ओबामा प्रशासन ने चीन से मुकाबले की अपनी रणनीति के तहत एशियाई देशों के साथ आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत किया। वहीं, सत्ता संभालने के बाद ट्रंप प्रशासन ने पसिफिक देशों के साथ मुक्त-व्यापार समझौते से दूरी बना ली और ग्लोबल ट्रेड वॉर शुरू कर दिया। ट्रंप सरकार का कहना है कि एशिया और दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में सहयोगियों की सुरक्षा के चक्कर में अमेरिका पर बोझ बढ़ा है। 

चीन की चाल 
उधर, चीन बड़ी ही चतुराई से लैटिन अमेरिका तक पहुंचने में कामयाब रहा है। उसने अपने ट्रेड का काफी विस्तार किया, कई सरकारों को उबारा, बड़ी ढांचागत परियोजनाएं शुरू कीं, सैन्य संबंधों को मजबूत किया और बड़े पैमाने पर संसाधनों पर दावा किया। ऐसे में क्षेत्र के कई छोटे देशों को झटका भी लगा। 

चीन के लिए सरकारों ने नीतियां बदल दी 
लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों में हाल के समय में राजनीतिक बदलाव भी देखने को मिला है और नेताओं ने चीन की मांग को पूरा करने के लिए अपनी नीतियों में परिवर्तन किया है। अब पेइचिंग का क्षेत्र के ज्यादातर हिस्से पर प्रभाव है। चीन और लैटिन अमेरिकी देशों के बीच कारोबार पिछले साल 244 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह पिछले दशक की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा है। 

अमेरिका को पीछे छोड़ चीन 2015 से दक्षिण अमेरिका का टॉप ट्रेडिंग पार्टनर बन चुका है। गौर करनेवाली बात यह है कि चीन ने पूरे क्षेत्र में अरबों डॉलर निवेश किया है और बदले में क्षेत्र के बड़े हिस्से के तेल पर वर्षों तक के लिए उसका दावा हो गया है। इसमें इक्वाडोर का करीब 90 फीसदी भंडार भी शामिल है। 

चीन ने वेनेजुएला और ब्राजील जैसे देशों की संकटग्रस्त सरकारी कंपनियों को उबारने में काफी मदद की है। आर्जेन्टीना के लिए भी इंटरनैशनल क्रेडिट मार्केट्स के दरवाजे बंद हुए तो चीन ने अपना खजाना खोल दिया। मदद के लिए हाथ बढ़ाने के साथ ही चीन ने गुप्त समझौते किए, जिसमें पैटागोनिया में बना सैटलाइट और स्पेस कंट्रोल स्टेशन भी शामिल है।