ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर अंतरिम रोक बरकरार
जबलपुर। प्रदेश में मप्र लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग को फिलहाल 14 प्रतिशत आरक्षण ही मिलेगा। हाई कोर्ट ने गुरुवार को शासन की उस मांग को नहीं माना, जिसमें एमपीपीएससी में पिछली सुनवाई को दिए अंतरिम आदेश में संशोधन चाहा था। न्यायमूर्ति शील नागू व जस्टिस अरुण कुमार शर्मा की युगलपीठ ने पूर्व में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर अंतरिम रोक को भी बरकरार रखा। राज्य शासन के निवेदन पर कोर्ट ने मामले पर अगली सुनवाई 25 जुलाई को निर्धारित की है।
27 प्रतिशत आरक्षण देने को चुनौती देने वाली 62 याचिकाओं पर सुनवाई होनी थी
प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने को चुनौती देने वाली 62 याचिकाओं पर गुरुवार से अंतिम स्तर की सुनवाई होनी थी। राज्य शासन की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने पीएससी भर्ती में ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी पूर्व के अंतरिम आदेश को संशोधित करने का निवेदन किया गया।
सालिसिटर जनरल तुषार मेहता पक्ष रखने नहीं पहुंचे
इस पर कोर्ट ने कहा कि सरकार इस मामले में अंतिम बहस करे। शासन की ओर से महाधिवक्ता और अतिरिक्त महाधिवक्ता आशीष बर्नाड ने बताया कि इस मामले में सालिसिटर जनरल तुषार मेहता राज्य सरकार का पक्ष रखेंगे, लेकिन वे अभी बाहर हैं। शासन ने मामले पर अगली सुनवाई जुलाई के अंतिम सप्ताह में करने का निवेदन किया।
कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए
उल्लेखनीय है कि आशिता दुबे व अन्य की ओर से सबसे पहले 2019 में याचिका दायर की गई थी। हाई कोर्ट ने कई मामलों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर रोक लगाई है। इस मामले में 16 याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने नई युगलपीठ को अवगत कराया कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी के प्रकरण में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए हैं कि किसी भी स्थिति में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
ओबीसी को 27, ईडब्ल्यूएस को 10 मिलाकर कुल आरक्षण 73 प्रतिशत हो रहा
मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27 और ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत मिलाकर कुल आरक्षण 73 प्रतिशत हो रहा है। शासन की ओर से ओबीसी के लिए नियुक्त विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने पैरवी की। जबकि ओबीसी के पक्ष में दायर याचिकाओं और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता उदय कुमार ने पक्ष रखा।