श्रृंगार गौरी केस: ऐसा कोई कानून नहीं है, जो हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई करने से रोके
जिला जज ने इस मामले पर 26 पेज का फैसला सुनाया
वाराणसी, ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजापाठ के मामले को वाराणसी जिला कोर्ट ने सुनवाई के लायक माना है। वाराणसी जिला कोर्ट के जज अजय कृष्ण विश्वेश ने सोमवार को इस पर फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जिला अदालत पहले ये तय करे कि हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई के लायक है या नहीं? जिला कोर्ट ने इसी पर फैसला लिया है।
जिला जज ने इस मामले पर 26 पेज का फैसला सुनाया है। अपने फैसले में उन्होंने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है, जो हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई करने से रोके। उन्होंने कहा कि इस मामले में 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, वक्फ एक्ट 1995 और यूपी श्री काशी विश्वनाथ टेम्पल एक्ट 1983 लागू नहीं होता है। इस आधार पर अंजुमन इंतजामिया के आवेदन को खारिज किया जाता है।
पांच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजापाठ करने की अनुमति देने की मांग
पिछले साल अगस्त में पांच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजापाठ करने की अनुमति देने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। श्रृंगार गौरी मंदिर ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बना है। इस पर मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने दलील दी थी कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है, इसलिए इस पर फैसला लखनऊ स्थित वक्फ ट्रिब्यूनल ही कर सकता है। कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया और विवादित जगह को वक्फ की प्रॉपर्टी मानने से मना कर दिया।
फैसले के मुताबिक
- फैसले के मुताबिक, हिंदू पक्ष ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद के पिछले हिस्से में श्रृंगार गौरी की छवि मौजूद है। हिंदू यहां पर मां गौरी, भगवान हनुमान और भगवान गणेश की पूजा करते आ रहे थे। भगवान विश्वेश्वर के मंदिर की परिक्रमा भी करते रहे हैं।
- कोर्ट के फैसले में लिखा है कि जिस संपत्ति को लेकर सवाल है, उसके पुराने मंदिर में भगवान विश्वेश्वर की मूर्ति आज भी मूल आकार में है।
- फैसले में लिखा है कि 15 अगस्त 1947 के बाद भी 1993 तक हिंदू रोजाना पुराने मंदिर में पूजा करते आ रहे थे। 1993 में जिला प्रशासन ने यहां श्रद्धालुओं की एंट्री पर रोक लगा दी और साल में सिर्फ एक बार ही पूजा करने का आदेश दिया। उसके बाद हिंदू चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन ही यहां पूजा कर सकते थे। इसलिए 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट लागू नहीं होता।
- ज्ञानवापी मस्जिद प्लॉट नंबर 9130 पर स्थित है। फैसले में लिखा है कि हिंदू पक्ष का कहना है कि श्री आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंगम मंदिर के अंदर देवी-देवताओं की छवि मौजूद है। प्लॉट नंबर 9130 पर श्रद्धालु प्राचीन काल से पूजा करते आ रहे हैं। औरंगजेब ने 1669 में मंदिर के एक हिस्से को तोड़ दिया था और मस्जिद बना दी थी। इसके बावजूद यहां पूजा होती रही।
हिंदू पक्ष के लिए मंदिर बनाने की कानूनी लड़ाई का रास्ता साफ
- कोर्ट के इस फैसले का सबसे बड़ा असर तो यही होगा कि अब हिंदू पक्ष के लिए मंदिर बनाने की कानूनी लड़ाई का रास्ता साफ हो जाएगा।
- अब तक मुस्लिम पक्ष यही दलील दे रहा था कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत इस पर कोई फैसला नहीं हो सकता। लेकिन जिला अदालत ने साफ कर दिया है कि इस पर 1991 का कानून लागू नहीं होता।
- इससे पहले 20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने की प्रक्रिया 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत प्रतिबंधित नहीं है।
- हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां पर 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने काशी विश्वनाथ का मंदिर बनवाया था। सन् 1669 में औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी।
अदालत के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर का सर्वे और वीडियोग्राफी की गई थी
- इसी साल मई में अदालत के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर का सर्वे और वीडियोग्राफी की गई थी। इसके बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था। हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना था कि ये शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है।
- अब अदालत में सर्वे रिपोर्ट पर भी बहस होगी। इसके अलावा हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद परिसर के पुरातत्व विभाग से सर्वे कराने और शिवलिंग की कार्बन डेटिंग करवाने की मांग भी करेंगे। अयोध्या मामले में भी ऐसा ही हुआ था। कार्बन डेटिंग से पता चलता है कि कोई चीज कितने साल पुरानी है।
28 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई
- इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद पर मालिकाना हक को लेकर सुनवाई होगी। ये मामला श्रृंगार गौरी से अलग है।
- हिंदू पक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मस्जिद परिसर को हिंदुओं को सौंपने की मांग की है। हिंदू पक्ष का दावा है कि 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाकर यहां मस्जिद बनवा दी थी। दावा ये भी है कि मंदिर के अवशेषों से ही मस्जिद को बनाया गया।