नई दिल्ली
यात्री विमान सेवा कंपनी एयर इंडिया में प्रस्तावित विनिवेश कार्यक्रम अभिरुचि की अभिव्यक्ति (ईओआई) की शर्तो के कारण विफल होने पर इसके बंद होने की आशंका जताई जा रही है। विमानन सलाहकार फर्म सीएपीए इंडिया के मुताबिक, विनिवेश प्रक्रिया की सफलता के लिए केंद्र सरकार के सामने श्रम व कर्ज की दशाओं में सुधार नाजुक स्थिति में है।
रिस्ट्रक्चरिंग में निवेश
सीएपीए ने एक ट्वीट में एयर इंडिया के विनिवेश की राह में अड़चनों का जिक्र करते हुए कहा कि खासतौर से श्रम व कर्ज को लेकर ईओआई की शर्तो के अनुसार सफल बोलीदाता रिस्ट्रक्चरिंग में निवेश करना होगा और कई सालों का घाटा उठाना पड़ेगा। सीएपीए ने कहा कि जब तक बोलीदाता को सफल होने की सूरत में राजनीतिक खतरों से उनके बचाव की गारंटी का भरोसा नहीं दिया जाएगा तब तक किसी के इसमें शामिल नहीं होने का एक प्रमुख कारण होगा।
विनिवेश के रुचि पत्र की तारीख आगे बढ़ी
गौरतलब है कि हाल ही में सरकार ने एयर इंडिया के विनिवेश के लिए रुचि पत्र (ईओआई) भेजने की तारीख बढ़ाकर 31 मई कर दी है। अब रुचि पत्र भेजने वाले पात्र बोलीदाताओं को 15 जून को सूचना दी जाएगी। मार्च में सरकार ने कहा था कि, ईओआई भेजने की आखिरी तारीख 14 मई होगी और पात्र रुचि वाले बोलीदाताओं का नाम 28 मई को सामने आएगा। एक आधिकारिक सूचना में कहा गया है कि अब इस समयसीमा को बढ़ा दिया गया है।
इससे पहले 28 मार्च को सरकार ने घाटे में चल रही विमानन कंपनी एयर इंडिया में 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने तथा प्रबंधन नियंत्रण निजी कंपनियों को स्थानांतरित करने की घोषणा की थी। मुनाफे में चल रही एयर इंडिया एक्सप्रेस और संयुक्त उद्यम एआईएसएटीएस भी विनिवेश प्रक्रिया का हिस्सा होंगी।
क्या है बड़ा संकट?
सीएपीए के मुताबिक, खरीदार को सफल होने की सूरत में राजनीतिक खतरों से भी बचना होगा। इसके लिए उसे किसी तरह के बचाव की गारंटी का भरोसा नहीं दिया जाएगा। हालांकि, भरोसा नहीं मिलने की स्थिति में किसी खरीदार का विनिवेश प्रक्रिया में शामिल होना संश्य भरा है। यह एक बड़ा कारण है कि अभी तक एयरलाइन को कोई खरीदार नहीं मिला है।
चार कंपनियां खींच चुकी हैं हाथ
एयर इंडिया को खरीदने की दौड़ में शामिल चार कंपनियां पहले ही हाथ खींच चुकी हैं। हर बार यह बात सामने आई कि दूसरी एयरलाइन कंपनियां इसे खरीदने में रुचि दिखा रही हैं। जेट एयरवेज, इंडिगो, स्पाइसजेट और टाटा समूह के स्वामित्व वाली एयरलाइन के नाम सामने आए थे। यहां तक कि एक विदेशी एयरलाइन कंसोर्शियम ने भी इसमें रूचि दिखाई थी लेकिन, बाद में सभी ने हाथ खींच लिए और सफाई जारी की कि उनकी ऐसी कोई योजना नहीं है।