नब्ज टटोलने आए बावरिया ने देखा संगठन का घमासान

rajesh dwivedi सतना। कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोलकर प्रत्याशी चयन की कवायद करने आए अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्टÑीय महासचिव दीपक बावरिया को सर्किट हाउस में जिस प्रकार की स्थितियों का सामना करना पड़ा , उससे जिला कांग्रेस की मिशन 2018 की तैयारियों को जोरदार झटका लगा है। शहर कांग्रेस कमेटी कार्यालय में कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की बैठक लेने के बाद जब दीपक बावरिया सर्किट हाउस पहुंचे तो उन्हें कार्यकर्ताओं के आक्रोश का सामना करना पड़ा। अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से आए कार्यकर्ता व पदाधिकारी संगठनात्मक बदलाव से नाराज देखे गए । इस दौरान कांग्रेस की गुटबाजी सतह पर आ गई और इसी के साथ राष्टÑीय महासचिव का एकजुटता का संदेश देने का वह उद्देश्य भी खटाई में पड़ता नजर आया जिन उद्देश्यों को लेकर वे सतना आए थे। विरोध प्रदर्शन प्रयोजित था अथवा कार्यकर्ता वाकई फेरबदल से नाराज हैं, यह तो संगठन के जांच का विषय है , लेकिन इस वाकये ने एक बार पुन: कांग्रेस की चुनावी तैयारियों व एकजुटता की पोल खोल दी है। [caption id="attachment_88818" align="aligncenter" width="448"]bhavtarini bhavtarini[/caption] विरोध के सुरों से गूंजा सर्किट हाउस परिसर सर्किट हाउस के भीतर बैठे दीपक बावरिया उस वक्त चौंक उठे जब सर्किट हाउस परिसर ‘संगठन को बचाना है, तो बदलाव लाना है ’ के नारों से गूंज उठा। कांग्रेस कार्याकर्ताओं द्वारा की जा रही नारेबाजी को सुनकर पहले तो उन्हें लगा कि कार्यकर्ता सरकार के बदलाव के लिए जोशीले नारे लगा रहे हैं, लेकिन जब वे बाहर निकले तो उन्हें संगठन में गुटबाजी की असली तस्वीर नजर आई। दरअसल रैगांव, नागौद, अमरपाटन, रामनगर, रामपुर बाघेलान, चित्रकूट व मैहर विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता व पदाधिकारी हाल ही में हुए संगठनात्मक फेरबदल पर विरोध जता रहे थे। आक्रोशित कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी करते हुए दीपक बावरिया को बताया कि ऊपर ही ऊपर किया गया संगठनात्मक फेरबदल उन्हें स्वीकार नहीं है और वे इसमें बदलाव चाहते हैं। कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचे दीपक बावरिया को विभिन्न विधानसभा क्षेत्र से आए कार्यकर्ताओं ने चेताते हुए कहा कि यदि संगठन इसी प्रकार चलाया गया तो बची सीटें भी कांग्रेस के हाथ से फिसल सकती हैं। इस दौरान हालांकि कांग्रेस के राष्टÑीय महासचिव ने खुलकर तो नहीं कहा अलबत्ता उन्होने दबी जुबान से चूक होने की बात कही और कार्यकर्ताओं को एकजुटता से भाजपा का मुकाबला करने की नसीहत देते हुए आश्वस्त किया कि उनकी बातों को हाईकमान तक पहुंचाया जाएगा। बढ़इया टोला से बैरंग लौटे, सर्किट हाउस में रायशुमारी शहर कांग्रेस कमेटी कार्यालय में कार्यकर्ताओं- पदाधिकारियों की बैठक लेने के बाद राष्टÑीय महासचिव बावरिया को बढ़इया टोला बिरला रोड में बनाए गए जिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण कार्यालय पहुंचना था जहां अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र से आए कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के साथ अलग-अलग बैठकर रायशुमारी करनी थी, लेकिन जब बावरिया बढ़इया टोला स्थित कांग्रेस ग्रामीण के नए कार्यालय पहुंचे तो बमुश्किल 30-40 कांग्रेसियों की मौजूदगी देखकर हैरान रह गए। इसी बीच उन्हें जानकारी मिली कि विभिन्न विधानसभा क्षेत्र से आए कार्यकर्ता व पदाधिकारी सर्किट हाउस में इंतजार कर रहे हैं, जिसके बाद वे सर्किट हाउस पहुंचे जहां उन्हें कार्यकर्ताओं के आक्रोश का सामना करना पड़ा। अंतत: दीपक बावरिया ने आक्रोश शांत करा चित्रकूट, नागौद, अमरपाटन, रामपुर बाघेलान,रैगांव व मैहर विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों से अलग-अलग चर्चा कर जिले की राजनैतिक नब्ज टटोलने की कवायद की। कार्यकर्ताओं से चर्चा कर ये सवाल हल करने की हुई कोशिशें 1-कैसे मजबूत हो संगठन? 2-क्या हैं हार-जीत के समीकरण ? 3-अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में क्या-क्या हैं जातिगत समीकरण? 4-किस क्षेत्र में किसका है प्रभाव? 5-कार्यकर्ताओं पर किसकी कितनी पकड़? 6-जनता की नजरों में कौन हो सकता है कांग्रेस का श्रेष्ठ प्रत्याशी? 7-संगठनात्मक फेरबदल का क्या है असर? 8-दूसरे दलों के किस असंतुष्ट से चर्चा संगठन को पहुंचा सकती है फायदा? यात्राओं का दौर, किसे मिलेगी ‘ठौर’ इन दिनों प्रदेश के राजनैतिक गलियारों में यात्राओं का दौर चल रहा है। भारतीय समाज में पुरातन काल से ही यात्राओं का बड़ा महत्व रहा है। अमूमन हमारे समाज में सबसे अधिक प्रचलित तीर्थयात्रा रही है जो तमाम पारिवारिक दायित्वों से मुक्ति पा लेने के बाद हमारे पूर्वज किया करते थे, फिर अंगे्रजों के शासनकाल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा निकालकर यात्रा को एक नया आयाम दिया। यदि हम पूर्वजों की तीर्थयात्रा और महात्मा गांधी की दांडीयात्रा को देखें तो दोनो ही यात्राएं मुक्ति के लिए थी । तीर्थयात्रा जहां पारिवारिक दायित्वों से मुक्ति का बोधक थी तो दांडी यात्रा अंग्रेजों से मुक्ति के लिए की गई संकल्प यात्रा थी, लेकिन इन दिनों जिस प्रकार की यात्राएं भाजपा व कांग्रेस जैसे राजनैतिक दल निकाल रहे हैं, वे यात्राएं दायित्वों को हासिल करने के लिए निकाली जा रही हैं। भाजपा जन आशीर्वाद लेकर चौथी बार सत्ता चलाने का दायित्व संभालना चाहती है , तो कांग्रेस न्याय व पोल -खोल यात्राओं के जरिए अपना डेढ़ दशक का सत्ता का वनवास खत्म कर सत्ता चलाने का जिम्मा संभालना चाहती है। दोनो ही यात्राओं का उद्देश्य सत्ता के गलियारों में चहलकदमी कर प्रशासन की बागडोर संभालने की जिम्मेदारी हासिल करना है। इसके पूर्व कांग्रेस की राष्टÑीय राजनीति से धकियाए गए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने नर्मदा यात्रा निकालकर चुनावी वर्ष में राजनैतिक यात्रा की शुरूआत की थी। इस यात्रा का उद्देश्य भी प्रदेश कांग्रेस में अपना दबदबा बनाकर प्रदेश संगठन में अपना ठौर तलाशना था। हालांकि इसमें वे बहुत अधिक कामयाब नहीं हुए। अब देखना यह है कि जनता का आशीर्वाद लेने के लिए भाजपा द्वारा निकाली जा रही जन आशीर्वाद यात्रा व कांग्रेस द्वारा निकाली जा रही पोल-खोल यात्रा में से किस यात्रा को जनता जनार्दन आशीर्वाद देकर प्रदेश की सत्ता के संचालन के लिए ‘ठौर’ देती है। जन आशीर्वाद वर्सेस पोल-खोल यात्रा प्रदेश के विभिन्न जिलों में निकल रही जन आशीर्वाद यात्रा व पोल-खोल यात्रा कई सवाल खड़े करती नजर आ रही है। पहला सवाल तो यही है कि जन आशीर्वाद यात्रा से भाजपा और पोल खोल यात्रा से कांग्रेस कितना लाभ उठा सकेगी? जन आशीर्वाद यात्रा की कमान सूबे के मुख्यमंत्री स्वयं संभाल रहे हैं और जिसप्रकार क ी भीड़ यात्राओं में उमड़ रही है उससे भाजपा उस डैमेज कंट्रोल पर काबू पाती नजर आ रही है, जो पालिटिकल डैमेज लगातार सत्ता में रहने के कारण एंटी-इंकम्बेंसी के तौर पर उभरता दिखाई दे रहा था। उधर कांग्रेस ने जन आशीर्वाद यात्रा की धार को कुंद करने पोल-खोल यात्रा निकाली । पोल-खोल यात्रा से कांग्रेस भाजपा सरकार की कितनी पोल खोल सकेगी यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन नेता प्रतिपक्ष की अगुवाई में यहां निकली पोल-खोल यात्रा अपने कार्यकर्ताओं व जनता के बीच उस संदेश को देने में कामयाब होती नजर आ रही है, जिस उद्देश्य से इस यात्रा को निकाला गया है। पोल-खोल यात्रा के दौरान जिस प्रकार की भीड़ उमड़ी और एक ही मंच पर विभिन्न धड़ों के नेता आए उससे संगठनात्मक फेरबदल के बाद दिग्भ्रमित हुए कार्यकर्ताओं में एकजुटता का संदेश गया। बदेरा की सभा में जैसी भीड़ उमड़ी , वैसी भीड़ लंबे अरसे बाद किसी कांग्रेसी कार्यक्रम में देखी गई है। जन आशीर्वाद यात्रा के मुकाबले कांग्रेस की पोल-खोल यात्रा में उमड़ी भीड़ इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस की भीड़ जुटाने के लिए वैसे साधन नहीं थे जैसे साधन भाजपा के पास जन आशीर्वाद यात्रा के लिए थे। कहा जा सकता है कि पोल-खोल यात्रा में संगठित नजर आ रही कांग्रेस और कार्यक्रमों में उमड़ने वाली भीड़ भाजपा के लिए रेड अलार्म की तरह है, जिस पर भाजपा को अपना फोकस बनाकर एक नई रणनीति के साथ चुनावी रण में उतरना होगा। हालांकि पोल-खोल यात्रा की एकजुटता शनिवार को सर्किट हाउस में जिस तरह चारो-खाने चित्त नजर आई उससे भाजपा राहत महसूस कर सकती है। सुर्खियों में रहा महिला नेत्री का पोस्टर सोशल मीडिया पर अकसर छाई रहने वाली एक भाजपा नेत्री का पोस्टर विगत दिवस सतना आई जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान सुर्खियों में रहा। सत्ता व संगठन में जो भी मजबूत नजर आया , उसके साथ तस्वीरें खिचाकर सोशल मीडिया में प्रचारित करने की आदी हो चुकीं इस महिला नेत्री को तब दिक्कतों का सामना करना पड़ा जब मुख्यमंत्री की जन आशीर्वाद यात्रा नागौद व उचेहरा क्षेत्र पहुंची। सूत्रों की मानें तो अलग-अलग जगहों पर महिला नेत्री के पोस्टरों में अलग-अलग संगठन पदाधिकारी आते रहते हैं । एक ऐसे ही प्रदेश संगठन पदाधिकारी जिनकी इन दिनों सत्ता से अनबन चल रही है, उसके साथ महिला नेत्री का पोस्टर देखकर आनन-फानन उस पोस्टर की तस्Þवीरें खिंचवाई गई। उस पोस्टर की तसÞवीर किसने और किस प्रयोजन से खिंचवाई , फिलहाल इस संबंध में स्थानीय संगठन पदाधिकारी तो चुप्पी साधे हुए हैं, लेकिन माना जा रहा है कि पोस्टर की तस्वीरें भाजपा के शीर्ष प्रबंधन के इशारे पर खिचवाई गई हैं, जो आगामी समय में उनके लिए मुसीबत बन सकती है।