Rafale deal मुद्दा खत्म नहीं, सुप्रीम कोर्ट को दी गई झूठी जानकारी- चव्हाण
इंदौर
भाजपा राफेल मामले पर सुप्रीम कोर्ट से क्लीनचिट मिलने का प्रचार कर रही है और कांग्रेस ने ऐलान कर दिया है कि मामला खत्म नहीं हुआ है। कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने सीधे तौर पर आरोप लगाया है कि विमानों के सौदे में सीधे तौर पर 36 हजार करोड़ रुपए ज्यादा देने की बात सामने आ रही है। यह सीधे-सीधे जनता के धन का सरकार द्वारा किया गया भ्रष्टाचार है। सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार ने झूठी जानकारी दी। हम सुप्रीम कोर्ट में गए भी नहीं क्योंकि मामले की जांच सिर्फ संयुक्त संसदीय कमेटी या सीबीआई ही कर सकती है।
इंदौर में चव्हाण ने करीब 50 मिनट तक राफेल सौदे से जुड़े बिंदु पत्रकार वार्ता में रखे। चव्हाण बोले कि कांग्रेस कभी सुप्रीम कोर्ट नहीं गई। हम हमेशा से राफेल सौदे में संसदीय समिति बनाकर जांच की मांग कर रहे हैं। यूपीए सरकार ने 126 विमान खरीदी की प्रक्रिया शुरू की थी। मौजूदा सरकार ने विमानों की संख्या घटाकर 36 की और कीमत बढ़ा दी। जो सौदा पहले 528 करोड़ में होना था उसके बारे में रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे ने संसद में जवाब दिया कि फ्रांस व भारत की गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट के बीच यह सौदा 627 करोड़ में हो रहा है।
बाद में रक्षामंत्री फ्रांस गए तो 60 हजार करोड़ में सौदा होने की बात कही। यानी 1 विमान 1670 करोड़ का खरीदा जा रहा है। पूर्ववर्ती सभी सरकारों ने जो भी रक्षा खरीद की, सभी की कीमत संसद में बताई गई। सरकार ने 70 साल पुरानी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एचएएल को सौदे से बाहर कर 70 हजार करोड़ के घाटे में गई अंबानी की कंपनी को सौदे में शामिल कर लिया।
पर्रिकर ने रोका, हस्ताक्षर नहीं किए
चव्हाण ने कहा कि कोर्ट में सरकार की ओर से बंद लिफाफे में जानकारी दी गई। कोर्ट के फैसले में उल्लेख है कि कोर्ट कीमतों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता क्योंकि ये काम सीएजी और संसदीय लोकलेखा समिति देख रही है। ये सरासर झूठ है जो सरकार ने कोर्ट को बताया। सौदे की फाइल ऑडिट के लिए न तो सीएजी के पास गई, न ऑडिट रिपोर्ट बनी, न ही संसद की लोकलेखा समिति में रखी गई। इस तरह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भी गुमराह किया और अब करेक्शन पिटीशन लगाकर बचना भी चाह रही है।
चव्हाण ने आरोप लगाया कि सौदे के बीच फ्रांस के अधिकारियों ने निगोसिएशन कमेटी के जरिए विमानों का सौदा 5.2 अरब यूरो में करने की सिफारिश की थी। भारत के अधिकारियों ने इसमें 3 अरब बढ़वाने की मांग रखी। रक्षा खरीद परिषद के पास जब कीमत बढ़ाकर फाइल भेजी गई तो परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष मनोहर पर्रिकर ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। सरकार ने रक्षा खरीद परिषद को ही बायपास कर दिया और सीधे कैबिनेट कमेटी में फाइल भेज मंजूरी दे दी। 5.2 अरब के सौदे को 8.2 अरब में मंजूरी दी गई। सीबीआई के निदेशक को भी इसीलिए हटाया गया क्योंकि सरकार को डर था कि सीबीआई राफेल सौदे में जांच शुरू कर सकती है।