ताजिंदगी मंडला को नहीं भूले रज़ा - अशोक वाजपेई

ताजिंदगी मंडला को नहीं भूले रज़ा - अशोक वाजपेई

इंदिरा गाँधी चाहती थी कि शेख गुलाब को मिले पद्मश्री - अशोक वाजपेई

रज़ा स्मृति में उमड़ रहा कलाप्रिमियों का हुजूम

नर्मदा बम्बूरिया से हुई सांस्कृतिक की शुरुआत

शनिवार को ऋतु वर्मा देंगी पण्डवानी की प्रस्तुति
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Syed Sikandar Ali
मंडला - महान चित्रकार सैयद हैदर रज़ा की स्मृति में रज़ा फॉउण्डेशन द्वारा आयोजित रज़ा स्मृति के दूसरे दिन रपटा घाट में बड़ी तादाद में लोग चित्रकला कार्यशाला में शामिल हुए। गुरुवार को शुरू हुई 5 दिवसीय चित्रकार कार्यशाला में बाहर से आए प्रतिभागियों के अलावा स्थानीय लोग भी शामिल हुए। शुक्रवार को मेहमान कलाकारों के साथ साथ स्थानीय लोगों के लिए भी रज़ा फॉउण्डेशन द्वारा विशेष आयोजन किया गया था। लोगों को चित्रकला से जोड़ने के लिए एक अभिनव पहल की गई जिसमें चित्रकला के शौकीन लोगों को सफेद छाते उपलब्ध कराए गए।  इसके अलावा प्रिंट सामग्री भी रज़ा फॉउण्डेशन द्वारा प्रदान की गई। लोगों से कहा गया कि वह इन छात्रों को पेंट करें और इन्हें और याददाश्त के तौर पर अपने साथ ले जाएं। जिले के वरिष्ठ चित्रकार श्री डोंगरे ने सबसे पहला छाता पेंट किया। 35 लोगों ने छातों पर अपना हुनर दिखाया और उन्हें अपने साथ ले गए। इसमें महिला और पुरुष दोनों शामिल थे।
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स्थानीय रपटा घाट पर चल रहे पांच दिवसीय रज़ा स्मृति समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है। 23 जुलाई तक प्रतिदिन शाम 6 बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे। शुक्रवार को पद्मश्री शेख गुलाब आदिवासी लोक कला संस्थान,मण्डला द्वारा नर्मदा बम्बूरिया की प्रस्तुति दी गई। 21 जुलाई, शनिवार को श्रीमती ऋतु वर्मा, भिलाई, छत्तीसगढ़ द्वारा पण्डवानी की प्रस्तुति होगी। इस कार्यक्रम में कलेक्टर श्रीमती सूफिया फारूकी वली भी शामिल हुई। नर्मदा बम्बूरिया की प्रस्तुति के पहले कलेक्टर ने सभी कलाकारों का स्वागत किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रजा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी अशोक वाजपेई ने कहा कि सैयद हैदर रजा के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हैदर रजा मंडला के साथ-साथ पूरे देश और दुनिया के लिए किवदंती हैं। सर्व धर्म समभाव और सभी धर्मों के प्रति प्रेम उनमें कूट कूट कर भरा था। वह मस्जिद के साथ-साथ मंदिर और चर्च भी जाया करते थे। उन्होंने बताया कि एक छोटे से वन ग्राम बाबरिया जहां केवल 9 झोपड़ीनुमा मकान थे। उनमें से एक घर में हैदर रजा का जन्म हुआ और वहां से उठकर दुनिया के महान चित्रकार बने।
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हैदर रजा की प्राथमिक शिक्षा मंडला जिले के ककैया ग्राम में हुई। अपने पूरे जीवन काल में वो मैया नर्मदा और मंडला को नहीं भूले। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया। फ्रांस सरकार ने उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया। उन्हें उनकी इच्छा के मुताबिक मंडला में उनके वालिद की कब्र के बगल से सुपुर्द-ए-खाक किया गया। पिछले 400 - 500 साल में उसके जैसा कोई कलाकार पैदा नहीं हुआ। उनके जीवनकाल में उनके साथ 3 बार मंडला आने का मौका मिला। हम उनके साथ ककैया में उनके स्कूल भी गए। उनका क्लास रूम देखा और अटेंडेंस रजिस्टर में जहां उनका नाम लिखा था उसका फोटो भी लिया। अपने जीते जी उन्होंने कलाकारों की तो मदद की लेकिन वह अपने नाम से कोई भी कार्यक्रम आयोजित नहीं होने देते थे। रज़ा फॉउण्डेशन का नाम भी बड़ी मुशिकल से तय हुआ। वो फॉउण्डेशन को अपने नाम पर नहीं रखना चाहते थे लेकिन हमारे काफी मानाने पर वो तैयार हुए। अब जब वह हमारे बीच नहीं है तो हम उनकी स्मरण को चिरस्थाई बनाने के लिए काम कर रहे हैं। मंडला में हम हर 3 माह में कोई ना कोई कार्यक्रम आयोजित करना चाहते हैं। वर्ष 2021 - 22 को रज़ा शताब्दी के रूप में मनाया जाएगा। इसमें इतने वृद्ध आयोजन किए जाएंगे कि पूरा देश देखेगा कि रजा की शख्सियत क्या थी।
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अशोक वाजपेई ने अपने उद्बोधन के दौरान शेख गुलाब को मिले पद्मश्री पुरुस्कार के बारे में भी बताया। उन्होंने बताये उस वक़्त वो उप सचिव थे। प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी चाहती थी कि शेख गुलाब को पद्मश्री पुरुस्कार दिया जाये। इसके लिए प्रदेश सर्कार की सिफारिश अनिवार्य थी। मध्य प्रदेश से सिफारिश की लिस्ट जा चुकी थी। फिर मैंने कहा कि मैं मध्य प्रदेश ललित कला का सचिव हूँ मैं उस हैसियत से सिफारिश कर सकता हूँ। मैं सिफारिश का पत्र लिखा और उसके बाद वर्ष 1972 में उन्हें पधश्री पुरुस्कार प्राप्त हुआ। उस वक़्त के वो बहुत बड़े लोक कलाकार थे। इस आयोजन में रज़ा फॉउण्डेशन के ट्रस्टी श्री अखिलेश, रज़ा स्मृति आयोजन के संयोजक योगेंद्र त्रिपाठी और सचिव संजीव चौबे उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन कर रहे है।