जिन्ना विवाद में कूदे सपा सांसद, कहा- उनका योगदान गांधी-नेहरू के बराबर
लखनऊ
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. अब इस विवाद में समाजवादी पार्टी के गोरखपुर सांसद प्रवीण निषाद भी कूद गए हैं. प्रवीण निषाद का कहना है कि आज़ादी पाने में जितना बड़ा योगदान महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू का था, जिन्ना का भी उतना ही योगदान था.
सांसद प्रवीण निषाद ने कहा कि जिन्ना के नाम पर बीजेपी की राजनीति कर रही है यह सरासर गलत है. आज इस देश में वर्गीकरण हो गया है, जाति और धर्म के नाम पर बंटवारा किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि मुस्लिम भाई भी इस देश के निवासी हैं. जितना योगदान हिंदू धर्म के लोगों का इस देश को आजाद करने का है उतना ही मुस्लिम समुदाय के लोगों का भी रहा है.
उन्होंने कहा कि बीजेपी जाति वर्गीकरण करके सामुदायिक दंगे कराना चाह रही है, जिसका वह फायदा उठाना चाहती है लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे. आपको बता दें कि हाल ही में गोरखपुर में हुए उपचुनाव में प्रवीण निषाद ने बीजेपी उम्मीदवार को हराकर जीत दर्ज की थी.
गौरतलब है कि अभी एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मुद्दे पर कड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि जिन्ना ने हमारे देश का बंटवारा किया और हम किस तरह उनकी उपलब्धियों का बखान कर सकते हैं. भारत में जिन्ना का महिमामंडन बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
आजतक के साथ विशेष बातचीत में सीएम योगी ने कहा कि उन्होंने AMU मामले में जांच के आदेश दिए हैं, जल्द ही उन्हें इसकी रिपोर्ट भी मिल जाएगी. जैसे ही रिपोर्ट मिलेगी, वह इस मामले में एक्शन लेंगे.
क्या है पूरा मामला?
आपको बता दें कि अलीगढ़ से बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने एएमयू के कुलपति तारिक मंसूर को लिखे अपने पत्र में विश्वविद्यालय छात्रसंघ के कार्यालय की दीवारों पर पाकिस्तान के संस्थापक की तस्वीर लगे होने पर आपत्ति जताई थी.
हालांकि, विश्वविद्यालय के प्रवक्ता शाफे किदवई ने दशकों से लटकी जिन्ना की तस्वीर का बचाव किया और कहा कि जिन्ना विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्य थे और उन्हें छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गई थी.
प्रवक्ता ने कहा, ‘जिन्ना को भी 1938 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गई थी. वह 1920 में विश्वविद्यालय कोर्ट के संस्थापक सदस्य और एक दानदाता भी थे.’ उन्होंने कहा कि जिन्ना को मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की मांग किए जाने से पहले सदस्यता दी गई थी.