बच्‍चों के साथ सख्‍ती से पेश आने पर भविष्य में हो सकता है भारी नुकसान

बच्‍चों के साथ सख्‍ती से पेश आने पर भविष्य में हो सकता है भारी नुकसान


बच्‍चों के साथ सख्‍ती से पेश आने का असर उनके विकास पर भी पड़ता है। अमूमन पेरेंटिंग तीन प्रकार की होती है। पहली अपने बच्‍चों को स्‍वतंत्रता देना और दूसरी बच्‍चों को डांट-डपट कर रखना और तीसरा है प्‍यार से बच्‍चों का रखना। इन तीनों में ही संतुलन बनाकर चलने से बच्‍चे के व्‍यक्‍तित्‍व को सकारात्‍मक रूप से संवारा जा सकता है।

माना जाता है कि बच्‍चों के साथ सख्‍ती से पेश आने के फायदों के साथ नुकसान भी होते हैं। आज हम आपको इसके बच्‍चों पर पड़ने वाले दुष्‍प्रभाव के बारे में बताने जा रहे हैं।

आत्‍मविश्‍वास में कमी
सख्‍त माता-पिता अपने बच्‍चे की बात सुने बिना ही उस पर अपने विचार थोप देते हैं। ऐसे बच्‍चों में आत्मविश्‍वास की कमी होती है क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि उनके विचारों और भावनाओं का कोई महत्‍व नहीं है। ये खुद को दूसरों से कम समझने लगते हैं।

भरोसे की कमी
जो माता-पिता अपने बच्‍चों के फैसले खुद लेते हैं उनमें खुद पर भरोसा ना करने की प्रवृत्ति जन्‍म लेने लगती है। उन्‍हें अपनी इच्‍छाएं और भावनाओं को पहचानने में ही दिक्‍कत होने लगती है क्‍योंकि उन्‍होंने तो हमेशा इन पर कंट्रोल रखना सीखा है। वो अपने माता-पिता की बताई बातों पर ही चलते हैं।

सोच और पहचान को सीमित करना
स्ट्रिक्‍ट पेरेंटिंग का एक नुकसान ये भी है कि बच्‍चे को लगने लगता है कि वो केवल एक ही तरह का काम करने के लिए पैदा हुआ है। उसके माता-पिता जो भी कहते हैं, वो वही करता है। वो अलग-अलग परिस्थितियों में भी एक ही तरह का व्‍यवहार करता है और एक्‍सपेरिमेंट करने से हिचकिचाता है। अपनी भावनाओं को प्रकट करने और तनावपूर्ण स्थितियों से निपटने में वो खुद को नाकाम पाते हैं।

कोई उपलब्धि हासिल ना करना
सख्‍त माता-पिता अपने बच्‍चे के लिए कुछ दिशा-निर्देश तय करते हैं और बच्‍चे से बिना कोई सवाल किए उसका पालन करने की उम्‍मीद रखते हैं। ऐसा ना करने पर सजा भी मिलती है। इन बच्‍चों को हर काम में नंबर वन आने के लिए मजबूर किया जाता है। जबकि कुछ बच्‍चे बस अपने माता-पिता को खुश करने के लिए उनकी मर्जी का काम करने लगते हैं। ऐसे में प्रतियोगिता, आत्‍मविश्‍वास और खुशी एवं संतुष्टि की कमी होती है।

अकेलापन
हर बच्‍चे को अपने माता-पिता का साथ चाहिए होता है। स्ट्रिक्‍ट पैरेंट्स तो अपने काम में ही व्‍यस्‍त रहते हैं जिससे बच्‍चा खुद को अकेला महसूस करने लगता है। ऐसे बच्‍चे दूसरों से अपने दिल की बात खुलकर कहने में भी हिचक महसूस करते हैं। कुछ गंभीर मामलों में तो बच्‍चे डिप्रेशन तक में चले जाते हैं। अपने बच्‍चों के प्रति ज्‍यादा सख्‍ती दिखाना सही नहीं है। आपको प्‍यार और नियम के बीच संतुलन बनाना आना चाहिए।