23 घंटे की मेहनत के बाद तेंदुए को रेस्क्यू टीम ने पकड़ा

23 घंटे की मेहनत के बाद तेंदुए को रेस्क्यू टीम ने पकड़ा

इंदौर
शहरी इलाके में आए तेंदुए के रेस्क्यू करने का यह पहला मामला नहीं है। 2013 यानी आठ साल पहले एयरपोर्ट से लगे सिंहसा गांव में भी तेंदुए ने वन विभाग को 36 घंटे तक छकाया था। उसके बाद तेंदुए को पकड़ने में सफलता मिली थी। कारण यह था कि अभी रेस्क्यू टीम पुरानी तकनीक से वन्यप्राणियों को बचाने में लगी है। वन विभाग की रेस्क्यू टीम के पास महज एक ही ट्रेकुलाइजर गन है। वह भी मात्र एक वनकर्मी को चलते आती है। अधिकांश रेस्क्यू में विभाग को चिड़ियाघर प्रशासन की मदद लेना पड़ती है। उनके पास भी एक ही बेहोश करने वाली गन है, जिसे प्रभारी डा. उत्तम यादव चलते है।

आधुनिक तकनीकी आने के बावजूद वन विभाग अभी जाल और गन के सहारे रेस्क्यू करने में लगे है। खेतों में वन्यप्राणियों को खोजने के लिए कोई उपकरण नहीं है। विदेशों में रेस्क्यू के दौरान टीम के ड्रोन का इस्तेमाल कर जानवरों को ढूंढती है, जबकि ऐसी कोई व्यवस्था यहां टीम के पास मौजूद नहीं है। वैसे टीम की तरफ से कई बार एक ओर गन की मांग हो चुकी है। फिलहाल ट्रेकुलाइजर गन भी आठ साल पुरानी हो चुकी है। संसाधन नहीं होने से टीम को रेस्क्यू करने में इतना समय लगता है।

तीन साल पहले यानी 9 मार्च 2018 को तेंदुआ पल्हर नगर में घूस गया था। उस दौरान भले ही टीम को पांच घंटे में सफलता मिली थी, लेकिन टीम तब महज जाल और डंडे लेकर पकड़ने पहुंचे थे। तभी वन विभाग की काफी किरकिरी हुई थी। लापरवाही के चलते दो वन अफसरों पर तेंदुए ने हमला भी कर दिया था। एसडीओ आरसी चौबे पर जाल बिछाने के दौरान तेंदुए ने झपटा मारा था, जिसे उनकी पीठ पर तेंदुए के नाखून लग गए थे। थोड़ी देर बाद तेंदुए को बेहोश करने के लिए ट्रेकुलाइजर गन से शाट मारा। फिर एसडीओ आरएन सक्सेना उसे देखने के लिए घर की सीढ़ियों पर चढ़े। वैसे ही तेंदुए ने उन पर हमला कर दिया, जिसमें उनके कंधे पर तेंदुए के दांत लग गए।