भारत में मिला 59 लाख टन  लिथियम का भंडार, खत्म होगी चीन और ऑस्ट्रेलिया  

भारत में मिला 59 लाख टन  लिथियम का भंडार, खत्म होगी चीन और ऑस्ट्रेलिया  

नई दिल्ली, देश में पहली बार लिथियम का भंडार मिला। इसकी कैपेसिटी 59 लाख (5.9 मिलियन) टन है। लिथियम के साथ ही सोने के 5 ब्लॉक भी मिले हैं। लिथियम (G3) की यह पहली साइट है, जिसकी पहचान जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) ने जम्मू-कश्मीर के रियासी में की है। केंद्र सरकार ने गुरुवार को इसकी जानकारी दी। यह भविष्य में सबसे अधिक काम आने वाला खजाना साबित होगा। इसकी खासियत है कि यह नॉन फेरस मेटल है, जो इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल की बैटरी में इस्तेमाल होने के लिए जरूरी है। खान मंत्रालय ने गुरुवार को कहा, ‘भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने पहली बार जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के सलाल-हैमाना क्षेत्र में 5.9 मिलियन टन (59 लाख टन) के लिथियम अनुमानित संसाधन मिला है।’ भारत लिथियम के लिए अभी पूरी तरह दूसरे देशों पर निर्भर है।

भारत अपनी लिथियम-ऑयन बैटरियों का करीब 80% हिस्सा चीन से मंगाता है
भारत अपनी जरूरतों का बड़ा हिस्सा आयात करता है। 2020 से भारत लिथियम आयात करने के मामले में दुनिया में चौथे नंबर पर रहा। भारत अपनी लिथियम-ऑयन बैटरियों का करीब 80% हिस्सा चीन से मंगाता है। भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए अर्जेंटीना, चिली, ऑस्ट्रेलिया और बोलिविया जैसे लिथियम के धनी देशों की खदानों में हिस्सेदारी खरीदने पर काम कर रहा है।

चीन और ऑस्ट्रेलिया दुनियाभर में लिथियम के बड़े सप्लायर 
बता दें कि चीन और ऑस्ट्रेलिया दुनियाभर में लिथियम के बड़े सप्लायर हैं, भविष्य में लिथियम की मांग तेजी से बढ़ने वाली है क्योंकि यह EV बैटरियों के बनाने में उपयोग होता है। अब भारत के पास खुद इसका भंडार हैं, यानी चीन की दादागिरी खत्म होने वाली है।

51 खनिज ब्लॉक संबंधित राज्य सरकारों को सौंप दिए 
मंत्रालय ने बताया, ‘लिथियम और गोल्ड सहित 51 खनिज ब्लॉक संबंधित राज्य सरकारों को सौंप दिए गए हैं।’ इन 51 खनिज ब्लॉकों में से 5 ब्लॉक सोने से संबंधित हैं और अन्य ब्लॉक 11 राज्यों में हैं, जिसमें जम्मू और कश्मीर (यूटी), आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु और तेलंगाना शामिल है। ये ब्लॉक पोटाश, मोलिब्डेनम, बेस मेटल आदि जैसी वस्तुओं से संबंधित हैं। 

महत्वपूर्ण खनिजों पर 115 परियोजनाएं और उर्वरक खनिजों पर 16 परियोजनाएं तैयार 
GSI द्वारा फील्ड सीजन 2018-19 से अब तक किए गए कार्यों के आधार पर ब्लॉक तैयार किए गए थे। इनके अलावा कुल 7897 मिलियन टन संसाधन वाले कोयला और लिग्नाइट की 17 रिपोर्टें भी कोयला मंत्रालय को सौंपी गईं। बैठक के दौरान विभिन्न विषयों और इंटरवेंशन क्षेत्रों जिसमें जीएसआई संचालित होता है, पर सात प्रकाशन भी जारी किए गए।  मंत्रालय ने कहा, “आगामी फील्ड सीज़न 2023-24 के लिए प्रस्तावित वार्षिक कार्यक्रम बैठक के दौरान प्रस्तुत किया गया और चर्चा की गई। आगामी वर्ष 2023-24 के दौरान, GSI 12 समुद्री खनिज जांच परियोजनाओं सहित 318 खनिज अन्वेषण परियोजनाओं सहित 966 कार्यक्रम चला रहा है।” भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने रणनीतिक और महत्वपूर्ण खनिजों पर 115 परियोजनाएं और उर्वरक खनिजों पर 16 परियोजनाएं तैयार की हैं।

खान मंत्रालय ने कहा, “जियोइन्फॉर्मेटिक्स पर 55 कार्यक्रम, मौलिक और बहु-विषयक भूविज्ञान पर 140 कार्यक्रम और प्रशिक्षण और संस्थागत क्षमता निर्माण के लिए 155 कार्यक्रम भी शुरू किए गए हैं।” भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की स्थापना 1851 में रेलवे के लिए कोयले के भंडार का पता लगाने के लिए की गई थी। इन वर्षों में, GSI न केवल देश में विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक भू-विज्ञान सूचनाओं के भंडार के रूप में विकसित हुआ है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति के भू-वैज्ञानिक संगठन का दर्जा भी प्राप्त किया है। इसका मुख्य कार्य राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक सूचना और खनिज संसाधन मूल्यांकन को बनाने और अद्यतन करने से संबंधित है।

इन उद्देश्यों को जमीनी सर्वेक्षण, हवाई और समुद्री सर्वेक्षण, खनिज पूर्वेक्षण और जांच, बहु-विषयक भू-वैज्ञानिक, भू-तकनीकी, भू-पर्यावरण और प्राकृतिक खतरों के अध्ययन, हिमनद विज्ञान, सिस्मो-टेक्टोनिक अध्ययन और मौलिक अनुसंधान करने के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। GSI की मुख्य भूमिका में उद्देश्यपरक, निष्पक्ष और अद्यतन भूवैज्ञानिक विशेषज्ञता और सभी प्रकार की भू-वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करना शामिल है, जिसमें नीति-निर्माण संबंधी निर्णय लेने और वाणिज्यिक और सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

जानिए क्यों जरूरी है लिथियम? 
आज दुनियाभर में ग्रीन एनर्जी पर स्विच होने की बातें हो रही है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए दुनियाभर की सरकारें ग्रीन एनर्जी को प्रमोट कर रही हैं। इसमें लिथियम का बड़ा रोल है। लिथियम आयन बैटरी की मदद से रिन्यूएबल एनर्जी को स्टोर किया जा सकता है। इस एनर्जी को बाद में यूज भी किया जा सकता है।

लिथियम आने वाले भविष्य में एक जरूरी मेटल 
अच्छी बात ये है कि ये बैटरी रिचार्जेबल होती है और इनकी लाइफ ज्यादा होती है। इस तरह से लिथियम आने वाले भविष्य में एक जरूरी मेटल बन जाता है। लिथियम आयन बैटरी में दूसरे मेटल्स भी होते हैं, लेकिन इसमें मुख्य भूमिका लिथियम की ही है।

भारत की स्थिति मजबूत होगी
इलेक्ट्रिक कार हो या फिर बड़े इलेक्ट्रिक ट्रक इन सभी में लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल होगा। भारत में लिथियम का भंडार मिलने से देश बैटरी मैन्युफैक्चरिंग को बूस्ट कर सकेगा। अगर दुनियाभर में प्रमुख लिथियम प्रोड्यूस करने वाले देशों की बात करें, तो भारत इसमें नजर नहीं आता है। इस भंडार के मिलने से भारत की स्थिति मजबूत होगी। 

कितनी है लिथियम की कीमत?
लिथियम की कीमत वैरी करती है। जैसे शेयर मार्केट में हर दिन किसी कंपनी के शेयर की वैल्यू तय होती है, उसकी तरह के कमोडिटी मार्केट है। इस मार्केट में मेटल की वैल्यू तय होती है। खबर लिखते वक्त Lithium की वैल्यू प्रति टन 472500 युआन (लगभग 57,36,119 रुपये) थी।
इस हिसाब से एक टन लिथियम की भारतीय रुपये में कीमत 57।36 लाख रुपये होती है। भारत में 59 लाख टन लिथियम का भंडार मिला है। यानी इसकी वैल्यू आज के वक्त में 33,84,31,021 लाख रुपये (3,384 अरब रुपये) होगी। ये कीमत आज के रेट पर है। ग्लोबल मार्केट के साथ इसकी कीमत हर वक्त बदलती रहती है।

ऑस्ट्रेलिया, चिली, चीन प्रोड्यूस करते हैं 90 परसेंट लिथियम 
लिथियम प्रोडक्शन के मामले में ऑस्ट्रेलिया सबसे ऊपर है। साल 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर का 52 परसेंट लिथियम ऑस्ट्रेलिया प्रोड्यूस करता है। दूसरे नंबर पर चिली है, जिसकी हिस्सेदारी 24।5 परसेंट है। तीसरे नंबर पर चीन है, जो 13।2 परसेंट लिथियम प्रोड्यूस करता है। ये तीन देश ही दुनियाभर का 90 परसेंट लिथियम प्रोड्यूस करते हैं। 

तेजी से बढ़ रही है डिमांड
चूंकि, दुनियाभर के तमाम देश ग्रीन एनर्जी पर स्विच करने में लगे हैं। ऐसे में लिथियम की वैल्यू बढ़ना लाजमी है। रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2000 से 2015 के बीच लिथियम की डिमांड 30 गुना बढ़ी है।
वहीं 2015 के मुकाबले 2025 में इसकी डिमांड 1000 परसेंट बढ़ सकती है। ऐसे में इसकी कीमत का बढ़ना भी तय है। देश में लिथियम का प्रोडक्शन बढ़ने से आने वाले वक्त बैटरी की कीमत कम हो सकती है। इससे पेट्रोल-डिजल का खर्च तो कम होगा ही। इन पर निर्भरता और प्रदूषण भी घटेगा।

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