स्त्रीधन पर पति का नैतिक अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

स्त्रीधन पर पति का नैतिक अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित जोड़े की संपत्ति से जुड़े एक मुकदमे में अहम टिप्पणी की है। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी के 'स्त्रीधन' (महिला की संपत्ति) पर एक पति का कोई नियंत्रण नहीं होता। हक की लड़ाई के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची महिला के मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ में हुई। कोर्ट ने पत्नी के 'स्त्रीधन' पर पति का नियंत्रण होने के मामले में अहम टिप्पणी की। मामला 10 साल से अधिक पुराना है। 

अदालत ने क्या कहा?

न्यायालय ने कहा कि पति संकट के समय पत्नी के स्त्रीधन का इस्तेमाल तो कर सकता है, लेकिन यह संपत्ति लौटाना उसका नैतिक दायित्व है। महिला ने कहा कि  शादी के समय उसे 89 सोने के सिक्के उपहार में मिले थे। शादी के बाद उनके पिता ने उनके पति को दो लाख रुपये का चेक दिया था।

स्त्रीधन पति-पत्नी की संयुक्त संपत्ति नहीं बनती

कोर्ट ने कहा 'यह महिला की पूर्ण संपत्ति है और उसे अपने इच्छानुसार बेचने या रखने का पूरा अधिकार है। पति का उसकी इस संपत्ति पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह संकट के समय इसका इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन उसका दायित्व है कि वह उसी संपत्ति या उसके मूल्य को अपनी पत्नी को वापस कर दे। इसलिए, स्त्रीधन पति-पत्नी की संयुक्त संपत्ति नहीं बनती है और पति के पास इसका स्वामित्व या स्वतंत्र अधिकार नहीं है।' 

...तो पति और उसके परिवार वालों पर चलाया जा सकता है IPC की धारा 406 के तहत मुकदमा

अदालत ने यह भी कहा कि अगर स्त्रीधन का बेईमानी से दुरुपयोग किया जाता है तो पति और उसके परिवार के सदस्यों पर IPC की धारा 406 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में फैसला अपराधिक मामलों की तरह ठोस सबूतों के आधार पर नहीं, बल्कि इस बात की संभावना के आधार पर किया जाना चाहिए कि पत्नी का दावा ज्यादा मजबूत है।

सुरक्षित रखने के नाम पर पति ने ले लिए थे पत्नी के गहने

महिला के अनुसार शादी की पहली रात उसके पति ने सभी गहनों को सुरक्षित रूप से सहेजने के नाम पर ले लिया और अपनी मां को दे दिया। बाद में उसके पति और उसकी सास ने पुराने कर्जे निपटाने के लिए उसके गहनों का दुरुपयोग किया। 2011 में फैमिली कोर्ट ने महिला के आरोपों को सही पाते हुए पति और उसकी मां से उक्त नुकसान की भरपाई करने का निर्देश दिया। फैमिली कोर्ट के बाद में मामला केरल उच्च न्यायालय पहुंचा। उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट से मिली राहत को आंशिक रूप से खारिज करते हुए कहा कि महिला पति और उसकी मां द्वारा गहनों की हेराफेरी साबित करने में असफल रही। हालांकि, मामला जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो शीर्ष अदालत ने कहा कि स्त्रीधन पत्नी और पति की संयुक्त संपत्ति नहीं है।

महिला को उपहार में दी गई संपत्तियां स्त्रीधन

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी महिला को शादी से पहले, शादी के समय या विदाई के समय या उसके बाद उपहार में दी गई संपत्तियां स्त्रीधन संपत्तियां हैं। यह महिला की पूर्ण संपत्ति है। उसे अपनी खुशी के अनुसार इनका निपटान करने का पूरा अधिकार है। पति का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है।

तीन अदालतों में मुकदमा हुआ, 13 साल बाद मिला इंसाफ

स्त्रीधन से संबंधित यह मामला पहले 2011 में केरल की फैमिली कोर्ट में चला, वहां महिला का दावा सही साबित हुआ, लेकिन इसके बाद केरल उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के आदेश को पलट दिया। महिला ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया, जहां अदालत ने उसका दावा सही पाया और कहा कि स्त्रीधन पत्नी और पति की संयुक्त संपत्ति नहीं है।

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