भगवान विष्णु के 10 प्रमुख अवतार और उनकी महिमा
कहते हैं जब जब धरती पर पाप बढ़ा तब तब भगवान विष्णु ने अलग अलग अवतार लेकर समस्त प्राणियों की रक्षा की और धरती पर पुनः धर्म की स्थापना की। वैसे तो श्री हरि के अनेक स्वरुप हैं लेकिन उनमें से उनके 10 अवतारों को सबसे प्रमुख माना जाता है।
मत्स्य अवतार
यह अवतार भगवान विष्णु का सबसे पहला अवतार है। इस अवतार को लेने के पीछे जो कथा है वह इस प्रकार है कि एक बार एक राक्षस ने सभी वेदों को चुरा कर उसे समुद्र में छिपा दिया था। तब विष्णु जी ने मत्सय का अवतार लेकर उन सभी वेदों को समुद्र में से ढूंढ निकाला था और पुनः उनकी स्थापना की थी। अपने इस अवतार में श्री हरि आधे नर और आधी मछली के रूप में हैं।
कूर्म अवतार
भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार समुद्र मंथन के समय लिया था। भगवान के इस अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इन्द्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया और देवी लक्ष्मी रूठ कर चली गयी थीं। तब भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन की सलाह दी थी। विष्णु जी ने दैत्यों को देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार कर लिया था।
समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। भगवान विष्णु ने विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेज़ी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ। भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि सर्प की मदद से देवताओं और असुरों ने मंथन में से चौदह रत्न प्राप्त किये थे।
वराह अवतार
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार वराह अवतार भगवान विष्णु का तीसरा अवतार है। इस अवतार में भगवान ने सुअर का रूप धारण किया था। कहते हैं जब दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया था तब ब्रह्मा जी की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए थे।
भगवान ने अपनी थूथनी की सहायता से पृथ्वी को ढूंढ निकाला और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। इसके पश्चात भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया था।
नरसिंह अवतार
नरसिंह अवतार भगवान विष्णु का चौथा अवतार है। अपने इस रूप में विष्णु जी का सिर सिंह का है और शरीर नर का है। भगवान नरसिंह ने अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु और उसके पिता दैत्य हिरणाकश्यप का वध करने के लिए यह अवतार लिया था। दरअसल हिरणयकश्यप को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि उसका अंत कोई नहीं कर सकता इसलिए विष्णु जी ने यह अवतार धारण कर हिरणाकश्यप का वध कर दिया था।
वामन अवतार
भगवान विष्णु का पांचवा अवतार है वामन। कहते हैं सत्ययुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। तब भगवान विष्णु देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। उनका यह अवतार वामन अवतार के रूप में जाना जाता है।
कहा जाता है कि एक बार जब बलि महायज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन वहां पहुंचे और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांग लिया। किन्तु राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से रोक दिया। लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान में दे दिया। तब भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। भगवान बलि से प्रसन्न हुए और उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस प्रकार भगवान वामन ने देवताओं को स्वर्ग पुन: लौटाया था।
परशुराम
भगवान परशुराम विष्णु जी के छठे अवतार के रूप में जाने जाते हैं। यह राजा प्रसेनजीत की बेटी रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र थे। भगवान परशुराम का जन्म संसार को क्षत्रियों के अत्याचार से बचाने के लिए हुआ था। इन्होंने 21 बार धरती पर से क्षत्रियों का विनाश किया था।
परशुराम जी भोलेनाथ के परम भक्त थे। इन्होंने शिव जी से अस्त्र और शस्त्र की विद्या प्राप्त की थी। इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने इन्हे परशु दिया था। बचपन में इनके माता पिता इन्हें राम कहते थे लेकिन शंकर जी से परशु मिलने के बाद यह परशुराम कहलाने लगे।
श्रीराम
श्रीराम विष्णु जी के सातवें अवतार के रूप में जाने जाते हैं। जब धरती पर रावण का अत्याचार बढ़ गया था तब श्रीराम के रूप में विष्णु जी ने धरती पर जन्म लिया था। वे राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र थे।
अपने इस रूप में भगवान ने चौदह वर्षों का वनवास भी काटा था। कहते हैं उन्हें नारद जी से स्त्री वियोग सहने का श्राप मिला था इसी कारण श्रीराम अपनी पत्नी सीता जी से अलग हो गए थे।
श्री कृष्ण
भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अपना आठवां अवतार लिया था। यह मथुरा में देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे किन्तु इनका पालन पोषण माता यशोदा और नन्द बाबा ने किया था। अपने इस अवतार में इन्होंने अपने मामा कंस का वध कर अपने माता पिता और समस्त संसार को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था।
भगवान बुद्ध
भगवान बुद्ध विष्णु जी के नौवें अवतार माने जाते हैं। इन्हें गौतम बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है। भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। इस धर्म को संसार के चार बड़े धर्मों में से एक माना जाता है। इनका जन्म क्षत्रिय कुल के शाक्य नरेश शुद्धोधन के पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन में इनका नाम सिद्धार्थ था। विवाह के पश्चात इनका गृहस्थ जीवन में मन नहीं लगता था। एक दिन इन्होंने सब कुछ त्याग दिया और सत्य की तलाश में निकल पड़े।
कल्कि अवतार
कल्कि अवतार भगवान विष्णु का दसवां अवतार माना जाता है। कल्कि पुराण के अनुसार भगवान का 'कल्कि' का अवतार कलयुग के अंत में होगा। पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि उनके पुत्र रूप में जन्म लेंगे। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर आएंगे और संसार से सभी पापियों का विनाश करेंगे जिसके बाद धर्म की पुन: स्थापना होगी और तभी सतयुग का भी प्रारंभ होगा।