पितृपक्ष: वर्ष के 15 दिन प्रत्येक सनातनी के जीवन के लिए महत्वपूर्ण, जानिए क्या कहते हैं विद्वान

भोपाल. पितृपक्ष की शुरुआत कल से हो रही है, यानी भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से, जो आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को समाप्त होगा। इस वर्ष पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू होंगे. पितृ पक्ष के दौरान पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए लोग श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध कर्म, पिंडदान करते हैं। लेकिन, पितरों को प्रसन्न करने के दौरान घर के भगवान का ध्यान जरूर रखें। ऐसा न हो कि उनकी अवहेलना हो जाए।
पितृ पक्ष में कोई शुभ अथवा मांगलिक कार्य करना वर्जित
धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार, पितृ पक्ष में कोई शुभ अथवा मांगलिक कार्य करना वर्जित है। पितृपक्ष में पितरों को पूजनीय माना गया है। पितृपक्ष के दौरान पितर धरती पर आते हैं। ऐसी स्थिति में पितरों की विधि विधान से पूजा करना कल्याणकारी है। लेकिन, पितृपक्ष के दौरान घर के देवी-देवताओं की पूजा कैसे करनी चाहिए यह भी एक प्रश्न विचार में आता है। क्या उनकी पूजा में कोई परिवर्तन करना चाहिए।
घर के भगवान की सेवा करना न भूलें
भोपाल के पंडित आचार्य कमलेश जोशी बताते हैं कि वर्ष के ये 15 दिन प्रत्येक सनातनी के जीवन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इन्हीं 15 दिनों में पितरों को प्रसन्न किया जाता है। उनके लिए उपाय किए जाते हैं। पितृपक्ष के दौरान पितर पूजनीय होते हैं. लेकिन, घर के भगवान की सेवा करना न भूलें। रोज की तरह भगवान को स्नान कराएं, शृंगार करें और उनकी सेवा करें।
बार-बार स्मरण करने से भी पितर प्रसन्न होते हैं
आगे बताया कि जैसे हम रोज सुबह अपने घर में भगवान की पूजा करते हैं, वैसे ही आराधना करते रहें। पितृपक्ष के दौरान घर या मंदिर में भगवान की पूजा के बाद पितरों का स्मरण जरूर करें। भगवान को भोग लगाएं तब भी उनका स्मरण करें। बार-बार स्मरण करने से भी पितर प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा भगवान के भोग के साथ कुत्ता, कौवा और पक्षियों के लिए भोजन जरूर निकालें और सभी को ग्रहण करवाएं।
इन बातों का रखें ख्याल
यदि आपके घर में पितरों की तस्वीर है तो उनको घर के देवी-देवताओं की तस्वीर के साथ नहीं लगाना चाहिए। इसके अलावा मंदिर में भी स्थान नहीं देना चाहिए। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और पितर नाराज होते हैं। इसके अलावा, देवी-देवताओं की पूजा के बिना पितृपक्ष में श्राद्ध, पिंडदान इत्यादि का फल नहीं मिलता है, इसलिए पितृपक्ष के दौरान प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान ध्यान करने के बाद नित्य की तरह देवी देवताओं की पूजा करना शुभ माना गया है।