शारदीय नवरात्रि: जानें कैसे प्रसन्न होंगी मां शैलपुत्री

वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
आज से नवरात्रि का प्रारंभ हो गया है। नवरात्रि में 9 दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि शुरू होकर 5 अक्तूबर को दशहरा पर समाप्त होगी। शारदीय नवरात्रि का खास महत्व होता है।
अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक का यह महापर्व मनुष्य की आंतरिक ऊर्जाओं के भिन्न-भिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती है। इनको ही मान्यताएं नौ प्रकार की या देवियों की संज्ञा देती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री, ये दरअसल किसी अन्य लोक में रहने वाली देवी से पहले मनुष्य की अपनी ही ऊर्जा के नौ निराले रूप हैं।
मां शैलपुत्री कौन हैं ?
मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की संतान हैं। शैल अर्थात अडिग। दृढ़ता का प्रतीक हैं। मां दुर्गा से संपर्क साधने के लिए जातक का विश्वास भी अडिग होना चाहिए तभी भक्ति का फल मिलता है। मां शैलपुत्री को वृषोरूढ़ा, सती, हेमवती, उमा के नाम से भी जाना जाता है। घोर तपस्या करने वाली मां शैलपुत्री सभी पशु-पक्षियों, जीव की रक्षक मानी जाती हैं
मां शैलपुत्री का स्वरूप
मां शैलपुत्री श्वेत वस्त्र धारण कर वृषभ की सवारी करती हैं। देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। ये मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं। मां शैलपुत्री को स्नेह, करूणा, धैर्य और इच्छाशक्ति का प्रतीक माना जाता है।
मां शैलपुत्री की पूजा विधि
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा से पहले शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करें। अखंड ज्योति प्रज्वलित करें और भगवान गणेश का अव्हान करें। मां शैलपुत्री की पूजा में सफेद रंग की वस्तुओं का प्रयोग करें। सफेद मां शैलपुत्री का प्रिय रंग है। स्नान के बाद सफेद वस्त्र धारण करें। पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पूजा की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं मां दुर्गा की तस्वीर स्थापित करें। मां शैलपुत्री को कुमकुम, सफेद चंदन, हल्दी, अक्षत, सिंदूर, पान, सुपारी, लौंग, नारियल 16 श्रृंगार का सामान अर्पित करें।
देवी को सफेद रंग की पुष्प, सफेद मिठाई जैसे रसगुल्ला भोग लगाएं। पहले दिन मां का प्रिय भोग गाय के घी से बने मिष्ठान उन्हें अर्पित करें। धूप, दीप लगाकर मां दुर्गा के इस मंत्र का एक माला जाप करें-सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते
इसके साथ ही मां शैलपुत्री के मंत्रों का 108 बार का जाप करें। कथा पढ़े और फिर देवी की आरती करें। संध्या में भी रोजाना नौ दिन 9 देवियों की आरती करें।
मां शैलपुत्री का बीज मंत्र
ह्रीं शिवायै नम:
मां शैलपुत्री की पूजा का मंत्र
ओम देवी शैलपुत्र्यै नमः
मां शैलपुत्री का ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
मां शैलपुत्री की पूजा का लाभ
मां शैलपुत्री की पूजा से जातक के मूलाधार चक्र जागृत होते हैं।
देवी शैलपुत्री के पूजन से व्यक्ति में स्थिरता आती है।
मां शैलपुत्री को देवी सती का ही रूप माना जाता है। देवी सती ने भोलेनाथ को कठोर तप से पति के रूप में पाया था। नवरात्रि में इनकी साधना से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
शैलपुत्री पूजा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी
पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी
रत्नयुक्त कल्याणकारिणी
ओम् ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:
बीज मंत्र- ह्रीं शिवायै नम:
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
मां शैलपुत्री की कथा
पौराणिका कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया। राजा दक्ष ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए शिव जी को यज्ञ में नहीं बुलाया। देवी सती यज्ञ में जाना चाहती लेकिन शिव जी ने वहां जाना उचित नहीं समझा। सती के प्रबल आग्रहर पर उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। यहां सती ने जब पिता द्वारा भगवान शंकर के लिए अपशब्द सुने तो वह पति का निरादर सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ की वेदी में कूदकर देह त्याग दी।इसके बाद मां सती ने पर्वतराज हिमालय के घर शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया। देवी शैलपुत्री अर्थात पार्वती का विवाह भी भोलेनाथ के साथ हुआ।