आधुनिक दौर में स्वदेशी को जीवित रखने के साथ साथ बेरोजगारों को रोजगार दे रहा है आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले का हथकरघा केंद्र

आधुनिक दौर में स्वदेशी को जीवित रखने के साथ साथ बेरोजगारों को रोजगार दे रहा है आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले का हथकरघा केंद्र
आधुनिक दौर में स्वदेशी को जीवित रखने के साथ साथ बेरोजगारों को रोजगार दे रहा है आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले का हथकरघा केंद्र

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर विशेष...

आधुनिक दौर में स्वदेशी को जीवित रखने के साथ साथ बेरोजगारों को रोजगार दे रहा है आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले का हथकरघा केंद्र
 
यहां तैयार लहंगा, शेरवानी, साड़ियां, धोती, दुपट्टे की है खासी मांग  

जरदोजी के हज़ार रुपए से लेकर लाख रुपए तक के लहंगे व साड़ी होती है तैयार 

SYED IMTIYAZ ALI

मंडला - आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले के हथकरघा केंद्र में तैयार किए जा रहे कपडे की मांग महानगरों में बढ़ती जा रही है। यहां तैयार लहंगा, शेरवानी, साड़ियां, धोती, दुपट्टे की खासी मांग है। खासकर यहाँ तैयार किए जा रहे जरजोजी के उत्पाद पुणे, बेंगलुरु, मुंबई से लेकर अमेरिका तक जा रहे हैं। यहां कुछ हज़ार रुपए से लेकर लाख रुपए तक की नक्काशी की जाती हैं। यह उत्पाद 100% सूती और प्रकृतिक है। दरअसल आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा से हथकरघा संस्कृति को जीवित रखने और लोगों को रोजगार देने के मकसद से इसे 10 पहले शुरू किया गया था जो अब अपनी ख्याति अर्जित कर रहा है। जैन समाज के सहयोग से संचालित इस हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र में बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण देकर हथकरघा चलाने में निपुण किया जा रहा है। इससे करीब 50 से अधिक युवाओं को रोजगार से जोड़ा गया है। यह युवा सुबह से लेकर शाम तक हथकरघा का प्रशिक्षण लेकर 12 से 15 हजार रुपए महीना कमा रहे हैं। महाकवि पंडित भुरामल सामाजिक सहकार न्यास हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र के संचालक की माने तो इस प्रशिक्षण केंद्र में आसपास के ग्रामीण युवा कार्य कर रहे हैं। यह क्षेत्र कभी शराब विक्रय और मछली विक्रय के लिए प्रसिद्ध था लेकिन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा से शुरू हुए इस हथकरघा केंद्र के शुरू होने से क्षेत्र के युवा शराब और मछली का न सिर्फ विक्रय त्याग चुके हैं बल्कि इसका सेवन भी न करने का संकल्प ले चुके हैं। उनके द्वारा यहां सूती वस्त्र तैयार किए जा रहे है। केंद्र में काम करने वालों के अलावा भी यदि कोई चाहता है तो यहां पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। प्रशिक्षण के उपरांत उसे एक हथकरघा दिया जाता है, जिससे वह अपने घर में बैठकर काम कर करीब 15 हजार रुपए महीने की आय अर्जित कर सकता है।

हथकरघा केंद्र के कर्मचारी दीपक नंदा ने बताया कि मैं मंडला से हूं मैं यहां काम करने आता रहा। मुझे किसी ने बताया था कि यहां हथकरघा है काम के लिए जाइए तो मैं यहां काम के लिए आया था। मैं यहां भैया जी से मिला। भैया जी ने मुझे काम सिखाया कि मशीन ऐसे चलना है। फिर कुछ दिन बाद मुझे दुकान में बिठा दिए। कपड़ों के बारे में बताया तो कपड़ों को समझा। ऊपर जरदोजी का काम चलता है। यहां कपड़े खरीदने बहुत से लोग आते हैं, अधिकारी लोग भी आते हैं और भी आसपास से लोग आते हैं। उनको भी अच्छा लगता है और हमको भी अच्छा लगता है।

हथकरघा केंद्र के संचालक अनुराग जैन ने बताया कि भारत में जो बेरोजगारी की समस्या थी वह निरंतर बढ़ रही थी तो हमारे गुरु जी ने प्रेरणा दी कि अगर हमारे देश की बेरोजगारी दूर करना है तो उसका मध्य एक चीज हो सकती है हथकरघा। हथकरघा में बहुत सारे लोगों को रोजगार मिलता है। अगर हम पावरलूम से उतना कपड़ा बनाएं तो उसमें करीब एक व्यक्ति को रोजगार मिलेगा और उतना ही कपड़ा हथकरघा के माध्यम से बनाएं तो उतने ही कपड़ा बनाने में 25 से अधिक लोगों को रोजगार मिल जाएगा। सबसे ज्यादा अगर रोजगार किसी के माध्यम से मिल सकता है तो वह हथकरघा के माध्यम से मिल सकता है। हमारे देश  की प्राचीन परंपरा रही है हथकरघा जिससे विदेशों में भी कपडा निर्यात होता था। वह परम्परा विलुप्त हो रही थी, धीरे धीरे वह संस्कृति विलुप्त हो रही थी। तो आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने प्रेरणा दी कि उस संस्कृति को जीवित रखना है, अपने पास उद्योग को जीवित रखना है। साथ में अहिंसक वस्त्र लोगों को उपलब्ध कराना है इसलिए यह कार्य प्रारंभ हुआ। मुख्य रूप से आमानाला का यह जो क्षेत्र है यहां कच्ची शराब विक्रय के रूप में ख्याति की प्राप्त क्षेत्र है। बहुत पहले समय से और लोगों उसे कार्य को शराब आदि को छोड़कर के साथ में नर्मदा नदी होने के कारण से लोग मछली पालन का कार्य भी करते थे। मछली पकड़ने का तो लोग वह कार्य को भी छोड़कर एक छत के नीचे जैन समाज के सहयोग से लोग इसमें कार्य कर रहे हैं। बड़ी शिद्दत के साथ, लग्न के साथ कार्य कर रहे हैं और एक-एक व्यक्ति यहां 12 से 15 हज़ार रुपए औसतन कमा लेता है। साथ में पैसे भी कमाता है और साथ में निशुल्क भोजन भी दिया जाता है। शाम को घर जाकर के अपने माता-पिता के साथ समय बता सकते हैं। खाली समय में खेती वगैरा भी कर सकते हैं। गुरूजी का संकल्प था कि स्मार्ट सिटी के साथ स्मार्ट विलेज भी बनना चाहिए तो हथकरघा के माध्यम से आमानाला मंडला में संभव हो रहा है। इसके साथ-साथ इसकी और भी शाखाएं कई गांवों में तिहाड़ जेल, बनारस जेल में कार्य कर रही हैं। यहां सभी प्रकार के उत्पाद बन रहे है नल की थैली से लेकर के यहां लहंगा, शेरवानी, साड़ियां, धोती, दुपट्टे, पजामे का कपड़ा, विभिन्न उत्पाद बन रहे है। सबसे बड़ी बात कि यहाँ के जरदोजी के जो उत्पाद है वह यहां से पुणे, बेंगलुरु, मुंबई यहं तक कि अमेरिका तक जाते हैं। जितने महंगा व्यक्ति काम करना चाहे, जितना उसमें नक्काशी करना चाहिए, उतना हम अच्छे से अच्छा कार्य करके देते हैं। लोगों को यह कार्य पसंद भी आते हैं और 100% सूती है। प्रकृति के अनुकूल से पर्यावरण भी दूषित नहीं होता और लोगों को आरोग्य प्राप्त होता है।