श्राद्धपक्ष आज से, जानिये पितृदोष से मुक्ति का उपाय और पूजा विधि

श्राद्धपक्ष आज से, जानिये पितृदोष से मुक्ति का उपाय और पूजा विधि

भोपाल, मृत्यु को प्राप्त कर चुकी जीव आत्माओं के लिए पितृपक्ष काफी महत्वपूर्ण समय होता है। पितरों के प्रति श्रद्धा दिखाने का पक्ष श्राद्धपक्ष कहलाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष के भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्विन माह की सर्वपितृ अमावस्या तक का समय पितरों का होता है। मान्यता है पितृपक्ष के दौरान पितरलोक से हमारे पूर्वज अपने-अपने परिजनों से मिलने और उनको आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। पितृपक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए उन्हें तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान दिया जाता है। पितृपक्ष में ऐसा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

ज्योतिष के जानकार पंडित शरद द्विवेदी के अनुसार 20 सितंबर को पूर्णिमा की श्राद्ध होगी। 21 को प्रतिपदा, 22 को द्वितीया, 23 को तृतीया, 24 को चतुर्थी, 25 को पंचमी, 26 को षष्ठी, 27 को सप्तमी, 28 को कोई श्राद्ध नहीं होगा। 29 को अष्टमी, 30 को मातृ नवमी, एक अक्तूबर को दशमी, दो को एकादशी, तीन को द्वादशी, चार को त्रयोदशी, पांच को चतुर्दशी और छह अक्तूबर को अमावस्या श्राद्ध के साथ पितृ विसर्जन होगा।

धरती पर 15 दिन तक रहते हैं पितृगण 

शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में पितृ 15 दिन तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं।. इस दौरान पितृ अपने परिजनों के आसपास रहते हैं। इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे पितृ नाराज हों। पितृ पक्ष के दौरान शाकाहारी भोजन का ही सेवन करना चाहिए। नॉन-वेज और शराब आदि का सेवन से बचना चाहिए।

पितृ पक्ष में अनुशासित दिनचर्या का पालन करना चाहिए

पितृ पक्ष के दौरान बहुत अनुशासित दिनचर्या का पालन करना चाहिए। पितृ पक्ष में किसी भी बुजुर्ग और बड़ों का अपमान नहीं करना चाहिए। हर प्रकार की बुराई से बचाना चाहिए। इस दौरान बुरी संगत और बुरे विचारों से दूर रहना चाहिए। दान लेने वालों का खाली हाथ नहीं भेजना चाहिए। मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर किसी भी रूप में आ सकते हैं,. इसलिए इस दौरान किसी के प्रति गलत धारणा नहीं रखनी चाहिए।

संगम में पिंडदान से मिलती है पूर्ण शांति

मान्यता है कि संगम तीरे पिंडदान करने से मृत आत्माओं को पूर्ण शांति मिलती है। पूर्वज अपने वंशजों को उनका मनोवांक्षित फल देते हैं।

हिन्दू धर्म में पितृ ऋण का महत्व

बिना पितृ ऋण से मुक्त हुए जीवन निरर्थक माना जाता है। हिन्दू धर्म में देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण का महत्व है। पितृ पक्ष में माता-पिता के प्रति तर्पण करके श्रद्धा व्यक्त की जाती है।

पितृ दोष लगने का कारण

पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं। काशी के पं. ऋषि नारायण द्विवेदी के अनुसार परिवार में किसी की अकाल मृत्यु, अपने माता-पिता आदि सम्मानीय जनों के अपमान, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध और उनके निमित्त वार्षिक श्राद्ध आदि न करने से पितृ दोष लगता है।

पित्रृपक्ष में निषिद्ध कार्य

श्राद्ध कर्म करने वाले सदस्य को इन दिनों बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। श्राद्ध कर्म हमेशा दिन में करें। सूर्यास्‍त के बाद श्राद्ध करना अशुभ माना जाता है।इन दिनों में लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग नहीं खाना चाहिए। जानवरों या पक्षी को सताना या परेशान भी नहीं करना है।

पितृ को प्रसन्न करने के लिए करें ये काम

पितृ पक्ष में अगर कोई जानवर या पक्षी आपके घर आए, तो उसे भोजन जरूर कराना चाहिए। मान्‍यता है कि पूर्वज  इन रूप में आपसे मिलने आते हैं। पितृ पक्ष में पत्तल पर भोजन करें और ब्राह्राणों को भी पत्तल में भोजन कराएं, तो यह फलदायी होता है।

न करें ये शुभ काम 

पितृ पक्ष में कोई भी शुभ काम जैसे शादी, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश, घर के लिए महत्‍वपूर्ण चीजों की खरीददारी नहीं करें। नए कपड़े या किसी प्रकार की खरीददारी को भी अशुभ माना जाता है। इस दौरान बेहद सादा जीवन जीने और सात्विक भोजन करने के लिए भी कहा गया है।

तर्पण विधि

पितृ पक्ष में पूरब दिशा की तरफ मुंह करके चावल से तर्पण करना चाहिए। देव-तर्पण के बाद उत्तर दिशा की ओर मुंह करके कुश के साथ जल में जौ डालकर ऋषि-मनुष्य तर्पण करना चाहिए। अन्त में अपसव्य अवस्था में दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर अपना बायां पैर मोड़कर कुश-मोटक के साथ जल में काला तिल डालकर पितर तर्पण करना चाहिए।