15 साल बाद टाटा को मिली बड़ी जीत, बंगाल सरकार को देने होंगे 11 प्रतिशत ब्याज के साथ 766 करोड़
नई दिल्ली, टाटा को पश्चिम बंगाल के सिंगूर से बाहर निकलने के लिए मजबूर किए जाने के 15 साल बाद, टाटा मोटर्स ने पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम के खिलाफ मध्यस्थता मामला जीता है। सिंगूर-नैनो प्लांट मामले में डब्ल्यूबीआईडीसी को 766 करोड़ रूपए और 11 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस टाटा मोटर्स को करना होगा। कंपनी ने सोमवार को यह जानकारी देते हुए कहा कि तीन सदस्यीय आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल से उनके के पक्ष में सर्वसम्मति से फैसला दिया है।
11 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस टाटा मोटर्स को करना होगा
टाटा मोटर्स को बड़ी सफलता मिली है। पश्चिम बंगाल के सिंगूर जमीन विवाद में टाटा मोटर्स की जीत हुई है। अब इस जीत के बाद में बंगाल सरकार को टाटा मोटर्स को 766 करोड़ रुपये देने होंगे। टाटा मोटर्स लिमिटेड ने कहा कि एक मध्यस्थता पैनल ने सिंगूर-नैनो प्रोजेक्ट केस में ग्रुप के हक में फैसला सुनाया है, जिसके बाद में राज्य सरकार को सितंबर 2016 से 11 फीसदी की दर से ब्याज के साथ 766 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करना है।
सिंगूर से गुजरात के साणंद में शिफ्ट करना पड़ा था नैनो की मैन्युफैक्चरिंग
सिंगूर प्लांट में हुए जमीन विवाद के बाद में टाटा मोटर्स को अक्टूबर 2008 में अपनी छोटी कार नैनो की मैन्युफैक्चरिंग को पश्चिम बंगाल के सिंगूर से गुजरात के साणंद में शिफ्ट करना पड़ा था। वहीं, तब तक टाटा मोटर्स अपने सिंगूर प्लांट में तब तक करीब 1000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का निवेश कर चुकी थी।
पंचाट न्यायाधिकरण ने हमारे हक में फैसला सुनाया
टाटा मोटर्स का कहना है कि तीन-सदस्यीय पंचाट न्यायाधिकरण ने हमारे हक में फैसला सुनाया है। जिसके तहत दावेदार टाटा मोटर्स लिमिटेड (TML) को हकदार माना गया है। 1 सितंबर 2016 से वास्तविक वसूली तक 11 फीसदी प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 765।78 करोड़ रुपये की राशि मिलेगी। दावेदार टाटा मोटर्स लिमिटेड को भी रेंस्पोंडेट से वसूली का हकदार माना गया है। कार्यवाही की लागत करीब 1 करोड़ रुपये है।
जानिए पूरा मामला
18 मई 2006 को टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रतन टाटा ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और तत्कालीन वाणिज्य राज्य मंत्री निरुपम सेन के साथ एक बैठक के बाज में सिंगूर में टाटा मोटर्स की छोटी कार का प्रोजेक्ट लगाने का ऐलान किया था। इस फैसले के बाद में प्रोजेक्ट के लिए 1 हजार एकड़ जमीन खरीदने की प्रक्रिया शुरू की गई थी।
इस केस में साल 2006 में मई से जुलाई के बीच में हुगली जिला प्रशासन की तरफ से 3 बार सर्वदलीय बैठक को बुलाया गया था। इसका तृणमूल कांग्रेस ने पूरी तरह से विरोध किया था।