टमाटर का मिजाज ठंडा हुआ, अब प्याज के चढे भाव, नेताओं के आख मे ला सकता है आंसू
राजनीतिक पार्टियों के साथ नेताओं को भी परेशानी
भोपाल। चुनावी साल में प्याज की बढ़ती कीमतों ने राजनीतिक पार्टियों के साथ नेताओं को भी परेशानी में डाल दिया है। पिछले चार- पांच दिनों में प्याज के भाव में जबरदस्त उछाल आया है। अच्छी श्रेणी का प्याज मध्यप्रदेश के इंदौर में खुले बाजार में 60 से 70 रुपये किलो बिक रहा है। जो प्याज आठ दिन पहले आम था, वह अब खास हो गया है। सामान्य जनमानस की पहुंच से पहले टमाटर के लाल तेवर हुए, धीरे से उसका मिजाज भी ठंडा हुआ और वह अर्श से फर्श पर आ गया। चुनावी मौका है तो प्याज कहां पीछे रहने वाला था। अभी मतदान होने में 20 दिन बाकी हैं। देखना है कि प्याज के दाम कितनी ऊंचाई तक अपने कदम बढ़ाते हैं। प्याज की कीमतें क्या बढ़ीं, नगर में पोहे की दुकानों पर मूली ने दस्तक दे दी या प्याज थोड़ी मात्रा में दिया जाने लगा। होटलों में सलाद में प्याज की मात्रा कम कर दी गई।
चुनावी मौसम आता है, प्याज अपने तीखे तेवर दिखाने लग जाता है
राज्यों में चुनाव और प्याज के मूल्यों की वृद्धि का खतरा कोई नई बात नहीं है। जब-जब चुनावी मौसम आता है, प्याज अपने तीखे तेवर दिखाने लग जाता है। केंद्र सरकार ने इस समस्या को अगस्त में ही भांप लिया था और प्याज निर्यात पर अंकुश लगाया था। साथ ही 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगा दिया था। प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार बफर स्टॉक से प्याज की आपूर्ति करेगी।
अधिक बारिश और मौसम की मार से फसलें प्रभावित
इस बार के चुनाव में विपक्षी पार्टियां प्याज को चुनावी मुद्दा बना सकती हैं। चुनाव और प्याज का नाता वर्ष 1980 से है। जब पूर्व प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने अपने प्रचार के दौरान चुनावी भाषणों में प्याज की कीमतों को मुद्दा बनाया था और वे इसी मुद्दे पर विजयी हुईं। प्याज की कीमतों में वृद्धि और जनता सरकार का हवाला देकर उन्होंने इस मुद्दे को भुनाया और सत्ता में उनकी वापसी हुई। वहीं, प्याज 1981 में जो एक रुपये किलो में बिक रहा था, वह छह रुपये तक पहुंच गया था। इस तरह प्याज की कीमतों ने इंदिरा गांधी की सरकार को आंसू ला दिए थे। वर्ष 1998 में प्याज की कीमतों ने अटल बिहारी की सरकार को परेशान कर दिया था। राजस्थान के चुनाव में भंवरसिंह शेखावत ने कहा था कि प्याज हमारे पीछे पड़ा हुआ है। 1998 में दिल्ली का चुनाव प्याज के मुद्दे पर लड़ा गया था और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। 2013 में दिल्ली में जब शीला दीक्षित चुनाव हारीं तब प्याज का मुद्दा अहम रहा था। तब शीला दीक्षित ने कहा था कि मैंने लम्बे समय के बाद भिंडी की सब्जी में प्याज का सेवन किया है।
अधिक बारिश और मौसम की मार से फसलें प्रभावित
प्रदेश की सबसे बड़ी सब्जी मंडी चोइथराम में प्याज की सर्वाधिक आवक महाराष्ट्र से होती है। परंतु अधिक बारिश और मौसम की मार से फसलें प्रभावित हो गई हैं। इसलिए मंडी में आवक कम हो गई है। देश में सर्वाधिक प्याज महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और बिहार में उपजाया जाता है। होलसेल बाजार में प्याज 40 से 50 रुपये किलो बिक रहा है तो खुले बाजार में गलियों तक आते-आते इसकी कीमतों में वृद्धि होना स्वाभाविक है। प्याज की कीमतों के हाल भोपाल मंडी में यही हैं। फसल के चक्र में विलंब और मांग आपूर्ति के अंतर ने प्याज को महत्वपूर्ण बना दिया है। जब तक प्याज की नई फसल की आवक नहीं होगी, तब तक कीमतों पर लगाम लगने की संभावना कम ही है। कीमतों पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक प्याज की कीमतें सियासी दांव खेलती रहेंगी और राजनीतिक दलों को आंसू लाती रहेगी। ऐसा माना जाता है कि प्याज चार हजार साल से खाया जा रहा है। विश्व में चीन और भारत में विश्व के कुल उत्पादन का करीब 50 प्रतिशत प्याज उत्पादित होता है। प्याज पूरे विश्व में खाया जाता है। देखना है कि सरकार प्याज की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए क्या कदम उठाती है। कहीं चुनाव के अवसर पर प्याज इतिहास न दोहरा दे।