सतना में टिकट के लिए युवाओं में भी जोशीली दावेदारी

rajesh dwivedi सतना, कांग्रेस के राष्टÑीय अध्यक्ष राहुल गांधी व चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के युवाओं को प्रमोट करने संबंधी दिए गए बयानों ने उन युवा लड़ाकों में भी जोश भर दिया है जो लगातार विरोध प्रदर्शनों के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। इनमें राजभान सिंह,शिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू, अनिल अग्रहरि शिवा, राजदीप सिंह मोनू प्रमुख हैं। अपने विरोध प्रदर्शनों व आंदोलनों से भाजपा की नाक में दम करने वाले राजभान सिंह भी चुनावी टिकट की दौड़ में हैं। युवाओं व व्यापारी वर्ग के बीच बनी पकड़ उन्हें टिकट के दावेदारों में शुमार करती है। अखिल भारतीय अग्रहरि समाज युवा के राष्टÑीय अध्यक्ष अनिल अग्रहरि शिवा भी टिकट की दौड़ में हैं। व्यापारी वर्ग के बीच उनकी पैठ व समय-समय पर जनहित में उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे शहरवासियों का ध्यान खींचते रहे हैं। [caption id="attachment_88818" align="aligncenter" width="448"]bhavtarini bhavtarini[/caption] वर्ष 2013 के चुनाव में बसपा की टिकट पर 28 हजार से अधिक मत पाकर शिवा ने अपना दम भी दिखाया था। बेबाक व सकारात्मक राजनीति के जरिए कांग्रेस में एक अलग पहचान बनाने वाले राजदीप सिंह मोनू भी युवा दावेदारों में से एक हैं। शहर में 108 एंबुलेंस, उड़ान सेवा समेत विभिन्न मसलों को उठाकर उन्हें अंजाम तक पहुंचाने के लिए राजदीप सिंह मोनू को जाना जाता है। बसपा के दिग्गज नेता रहे स्व. सुखलाल कुशवाहा के पुत्र शिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू की दावेदारी की भी इन दिनों कांग्रेसी गलियारे में चर्चा है। हालांकि उनका नाम अन्य विधानसभा सीटों के लिए भी चल रहा है, मगर कांग्रेस के राजनैतिकसमीकरण बताते हैं कि यदि शिद्धार्थ पर भरोसा जताया गया तो उनके लिए सतना विधानसभा सीट ही बचती है। हालांकि प्रदेश महासचिव का पद देकर कांग्रेस ने उनकी चुनावी लड़ाई की संभावना को धुंधला किया है, बावजूद इसके उनका वोटबैंक व युवाओं में पकड़ उन्हें भी मजबूत दावेदारों में शुमार करती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि यदि कांग्रेस ने नए व युवा प्रत्याशी के चयन का निर्णय लिया तो इन युवाओं में से किसी एक की झोली में टिकट गिर सकती है। एक ऐसा भी समीकरण 1957 में पहली मर्तबा जीत हासिल करने वाली कांग्रेस ने 1985 तक हुए 7 चुनावोें में 6 मर्तबा जीत हासिल की लेकिन 1990 में बृजेंद्रनाथ पाठक द्वारा भाजपा की जीत का खाता खोलने वाली भाजपा ने अब तक हुए 6 चुनावोंमें 5 जीत हासिल की है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि भाजपा से जीतने वाले सभी प्रत्याशी ब्राम्हण वर्ग के रहे हैं। 1998 में भाजपा ने मांगेराम गुप्ता को टिकट दी और कांग्रेस के सईद अहमद विजयी हुए। उस दौरान निर्दलीय शंकरलाल तिवारी को लगभग 30 हजार मत हासिल हुए थे। यह कांग्रेस की सतना विधानसभा सीट में अंतिम जीत थी। जाहिर है कि कांगे्रेस जब टिकट का बटवारा करेगी तो इस जातिगत समीकरण को साधना भी एक चुनौती होगी। सिर्फ सत्ताविरोधी लहर से नहीं चलेगा काम हालांकि इस मर्तबा विधायक शंकरलाल तिवारी की स्थिति मजबूत नहीं है बावजूद इसके उनको हल्के में लेना कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है। विकास के दृष्टिकोण से शहर में एक भी मील का पत्थर गाड़ पाने में नाकामयाब शंकरलाल तिवारी को इस बार जनता ही नहीं बल्कि संगठन के अंतर्विरोधों व अपने दल के ही प्रतिद्वंदियों की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। संभवत: कांग्रेस इसी मुगालते में है कि शंकरलाल तिवारी को एंटी इंकम्बेंसी व अंतर्विरोधों के चलते मात दी जा सकती है लेकिन सिर्फ इतने के ही भरोसे रहना कांग्रेस को एक बार पुन: जीत से दूर कर सकता है। राजनैतिक जानकारों का मानना है किएक सशक्त प्रत्याशी के अलावा कांग्रेसियों का एकजुट होकर मुकाबला करना ही सतना सीट पर कांग्रेस की उम्मीदों को जिंदा कर सकता है। एक नजर : सतना विधानसभा 1957 शिवानंद कांग्रेस 1962 सुखेंद्र सिंह जेएस 1967 कांताबेन पारेख कांग्रेस 1972 कांताबेन पारेख कांग्रेस 1977 अरूण सिंह कांग्रेस 1980 लालता प्रसाद खरे कांग्रेस 1985 लालता प्रसाद खरे कांग्रेस 1990 बृजेंद्रनाथ पाठक भाजपा 1993 बृजेंद्रनाथ पाठक भाजपा 1998 सईद अहमद कांग्रेस 2003 शंकरलाल तिवारी भाजपा 2008 शंकरलाल तिवारी भाजपा 2013 शंकरलाल तिवारी भाजपा