अपने भक्तों की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं भगवान भैरव

अपने भक्तों की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं भगवान भैरव

मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए। इस अष्टमी को भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। इनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ और इन्हें अजन्मा माना जाता है। इन्हें काशी के कोतवाल नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव ने अपनी प्रिय नगरी काशी की सुरक्षा का भार उनको सौंपा है।

भगवान भैरव को दुष्टों को दंड देने वाला माना जाता है। मान्यता है कि शिवजी के रक्त से भगवान भैरव की उत्पत्ति हुई इसलिए उनको कालभैरव भी कहा जाता है। भैरव अष्टमी के दिन श्री कालभैरव का दर्शन-पूजन शुभ फल देने वाला होता है। इस दिन भैरव मं‍दिर में चंदन और गुलाब की खुशबूदार 33 अगरबत्तियां जलाएं। पीले रंग का ध्वज अर्पित करें। कुत्ते को रोटी खिलाने से भैरव प्रसन्न होते हैं। सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर भैरव मंदिर जाएं और पूजन करें। भगवान भैरव भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, यश, धन प्रदान करते हैं। मान्यता है कि श्री भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं। भगवान भैरव की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन में कोई कष्ट नहीं रहता है।