इसलिए राहुकाल से डरते हैं दक्षिण भारत के नेता, जानें क्या होता है इसका प्रभाव
रविवार 10 मार्च को चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा की। दक्षिण भारत के कई नेताओं को इस बात से परेशानी हुई की तिथियों की घोषणा राहुकाल में क्यों की गई। दरअसल राहुकाल को दक्षिण भारत के नेता अशुभ मानते हैं। के. चंद्रशेखर राव ने भी राहुकाल से बचने के लिए शपथ ग्रहण का खास समय का चयन किया था। आइए जानें दरअसल राहुकाल क्या है और ज्योतिषशास्त्र में इसकी क्या मान्यता है।
राहुकाल समय का वो भाग है, जिसमें कोई भी शुभ कार्य करने पर असफलताएं हाथ लगती हैं और कार्य बाधाओं से युक्त होता है इसलिए राहुकाल के समय में किसी भी नए काम की शुरुआत नहीं करनी चाहिए, परन्तु जो काम इस समय से पहले शुरू हो चुका है उसे राहुकाल के समय में बीच में नहीं छोड़ना चाहिए ऐसा ज्योतिषशास्त्र में कहा गया है।
भूलवश अगर कोई शुभ मांगलिक कार्य को राहुकाल के समय में करता है तो उसे किए गए कार्य का पूर्ण शुभ फल प्राप्त नहीं होता है। दक्षिण भारत में लोग इसका बहुत ख्याल रखते हैं, वे राहुकाल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं। ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय बताते हैं कि राहुकाल के दौरान किए गए कार्य प्रायः असफल होते हैं तथा व्यक्ति की मनोकामनाएं अधूरी रह जाती हैं। इसलिए कोई भी नया व शुभ कार्य करते समय राहुकाल का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
सूर्य हर स्थान पर एक समय पर उदय नहीं होता, अतः प्रत्येक शहर में सूर्योदय का समय अलग-अलग होने के कारण राहुकाल भी अलग-अलग स्थानों के लिए अलग-अलग होता है। माना कि सूर्योदय सुबह 6 बजे और सूर्यास्त सायं 6 बजे हो तो राहु काल इस प्रकार समझना चाहिए।
राहुकाल सोमवार को सुबह 07:30 से 09:00 बजे तक, मंगलवार को दोपहर 03:00 से 04:30 बजे तक, बुधवार को दोपहर 12:00 से 01:30 बजे तक, बृहस्पतिवार को दोपहर 01:30 से 03:00 बजे तक, शुक्रवार को सुबह 10:30 से 12:00 बजे तक, शनिवार को सुबह 09:00 से 10:30 बजे तक एवं रविवार को सायं 04:30 से 06:00 बजे तक रहता है। यानी राहुकाल हर दिन डेढ़ घंटे का होता है।
वैसे सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है। राहुकाल एकदम सही निकालने के लिए किसी भी प्रतिष्ठित पंचांग से उस शहर का सूर्योदय व सूर्यास्त के समय को 8 भागों में बांटना चाहिए, 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है, प्रत्येक भाग डेढ़ घंटे का होता है। सप्ताह के पहले दिन के पहले भाग में कोई राहु काल नहीं होता है, यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनि को तीसरे, शुक्र को चौथे, बुध को पांचवे, बृहस्पतिवार को छठे, मंगल को सातवें तथा रविवार को आंठवें भाग में होता है।
इस प्रकार राहुकाल निर्धारण में गलती होने की संभावना ना के बराबर रहती है। यह प्रत्येक सप्ताह के लिए स्थिर है, राहुकाल को राहुकालम नाम से भी जाना जाता है। ग्रह नक्षत्रम् की ज्योतिषाचार्य गुंजन वार्ष्णेय के अनुसार राहुकाल का विचार एवं सावधानी केवल शुभ कार्यों को सम्पन्न करते समय करना चाहिए, अशुभ कार्यों के लिए नहीं। अगर कोई शुभ कार्य पहले से प्रारम्भ है, तो राहुकाल का विचार नहीं करना चाहिए।