ऐसे काम निकलवाएगी सरकार: आरबीआई विवाद

ऐसे काम निकलवाएगी सरकार: आरबीआई विवाद

नई दिल्ली
सरकार ने जो मुद्दे उठाए हैं, उन पर प्रस्ताव पास कराने और फैसला लेने पर वह 19 नवंबर की आरबीआई बोर्ड मीटिंग में अपने नॉमिनीज के जरिये जोर डालेगी। यह जानकारी इस मामले से वाकिफ सूत्रों ने दी है। सरकार नहीं चाहती कि इन मुद्दों को किसी समिति के हवाले करके टाल दिया जाए, जैसा कि हाल में होता आया है। एक सूत्र ने बताया कि अगर बोर्ड के सदस्य कोई मुद्दा उठाते हैं तो उस पर प्रस्ताव पास करने की परंपरा रही है। 19 नवंबर की मीटिंग के नतीजों से यह भी पता चलेगा कि बोर्ड के पास कितनी पावर है और वह किस हद तक रिजर्व बैंक के फैसलों को प्रभावित कर सकता है। 
सोमवार को खबर दी थी कि सरकार ने रिजर्व बैंक के सामने दर्जन भर मुद्दे उठाए हैं और उसने आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन 7 के तहत उन पर चर्चा की मांग की है। इससे पहले कभी भी सेक्शन 7 का इस्तेमाल देश की किसी सरकार ने नहीं किया है। सरकार का मानना है कि इकॉनमी को लेकर उसकी चिंताओं पर आरबीआई ध्यान नहीं दे रहा है। इनमें नॉन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनीज (एनबीएफसी) का नकदी संकट भी शामिल है। 

सरकार का मानना है कि इस समस्या के चलते लोन ग्रोथ में कमी आ सकती है। उसने रिजर्व बैंक के प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) फ्रेमवर्क पर भी सवाल खड़ा किया है। आरबीआई ने पीसीए में करीब आधे सरकारी बैंकों को डाला हुआ है, जिससे उनके कर्ज बांटने पर रोक लग गई है। आरबीआई ने यह कदम बैंकों की हालत सुधारने के मकसद से उठाया है, हालांकि सरकार का मानना है कि इसका लोन ग्रोथ पर बुरा असर पड़ रहा है, जिसकी कीमत अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ेगी। 

 रिजर्व बैंक के बोर्ड की 23 अक्टूबर की पिछली मीटिंग के बाद दोनों के बीच टकराव बढ़ा है। उस मीटिंग में सरकार की तरफ से उठाए गए मुद्दों पर एक भी प्रस्ताव पास नहीं हुआ था और मीटिंग अचानक रोक दी गई थी। सरकार को उम्मीद थी कि उसने जो मुद्दे उठाए हैं, उनमें से कुछ को लेकर मीटिंग में फैसला होगा। वह नहीं चाहती कि 19 नवंबर की मीटिंग में वैसा ही हो, इसलिए उसने अपने प्रतिनिधियों के जरिये बोर्ड पर दबाव बनाने का फैसला किया है। 

आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग और वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार रिजर्व बैंक के बोर्ड में सरकार के प्रतिनिधि हैं। अगस्त में केंद्र ने आरएसएस के विचारक एस गुरुमूर्ति और बिजनसमैन सतीश काशीनाथ मराठे को भी आरबीआई बोर्ड में शामिल किया था। गुरुमूर्ति पहले ही आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को चिट्ठी लिखकर डेप्युटी गवर्नर विरल आचार्य के 26 अक्टूबर के भाषण की शिकायत कर चुके हैं। आचार्य ने अपने भाषण में कहा था कि अगर रेग्युलेटर की स्वायत्तता से समझौता हुआ तो उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इसके बाद से सरकार और आरबीआई के बीच टकराव बढ़ा है। 

गुरुमूर्ति ने कहा, 'आरबीआई ऐक्ट कहता है कि रिजर्व बैंक का मैनेजमेंट उसके बोर्ड की जिम्मेदारी है। इसका मतलब है कि गवर्नर और डेप्युटी गवर्नर को सारी ताकत बोर्ड से मिली है।' रिजर्व बैंक पर नजर रखने वालों का कहना है कि नचिकेत मोर को बोर्ड से हटाए जाने के नाराज होकर आचार्य ने 26 अक्टूबर वाला भाषण दिया था। सूत्रों के मुताबिक, रिजर्व बैंक सेक्शन 7 के इस्तेमाल से भी खफा है।