कासगंज से बुलंदशहर...यूपी पुलिस का हाल बेहाल, आंखें मूंदे सरकार

कासगंज से बुलंदशहर...यूपी पुलिस का हाल बेहाल, आंखें मूंदे सरकार

लखनऊ 
यूपी में इस साल पुलिस और पुलिसिंग का हाल बेहाल रहा। जनवरी से पहले जिस पुलिस के नाम पर सरकार का पूरे देश में डंका बज रहा था, उसी पुलिस ने इस साल हर मोर्चे पर सरकार की किरकिरी करवाई। जनवरी में कासगंज हिंसा से लेकर सोमवार को बुलंदशहर में हुई हिंसा तक हर मोर्चे पर पुलिस का टॉप नेतृत्व सवालों के घेरे में है। नेतृत्व से जुड़े अहम पदों और जिलों में तैनात अफसरों को लेकर तमाम शिकायतें भी हैं लेकिन सरकार ने उनको लेकर आंखे मूंद ली हैं।  

हर बड़े मोर्चे पर नाकाम रहा नेतृत्व 
कासगंज में तिरंगा यात्रा को लेकर मामूली घटना ने सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया है। छोटे से जिले में हुई घटना पर काबू पाने में बड़े अफसरों को चार दिन लग गए थे। इसी तरह दो अप्रैल को भारत बंद के मौके पर पुलिस के आला अफसरों के पास बवाल होने के तमाम इनपुट थे लेकिन इसके बाद भी वेस्ट यूपी के कई जिलों में खूब बवाल हुआ। 

इसी तरह लखनऊ में विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद दो सिपाहियों के खिलाफ हुई कार्रवाई के विरोध के बहाने पूरे प्रदेश में फोर्स के भीतर विरोध के सुर खूब पनपे। डीजीपी ओपी सिंह ने विरोध न होने और उसे नियंत्रित करने के तमाम दावे किए। लेकिन उसके बाद भी कई जिलों में काली पट्टी बांधकर विरोध जताया गया। सिविल पुलिस में पहली बार प्रदेश में इस तरह का विरोध हुआ। 

बढ़ गए पुलिस पर हमले 
पुलिस पर इस साल हमले भी बहुत से हुए। अलग-अलग जिलों से सरेराह पुलिस को पीटे जाने के विडियो वायरल हुए। सीतापुर में जिला जज के चैंबर में दारोगा को जूते से पीटने और उसके बाद एसपी का मोबाइल छीनने के मामले में पुलिस और सरकार की खासी किरकिरी हुई। इसी तरह बहराइच में सीओ और तहसीलदार को पूर्व विधायक द्वारा पीटने और खीरी में बीजेपी विधायक द्वारा इंस्पेक्टर को जूते से पीटने की धमकी का ऑडियो भी खूब चर्चा में रहा। इसी दौरान मुरादाबाद और गाजियाबाद में भी पुलिसवालों को पीटने के विडियो चर्चा में रहे। पुलिस पर हो रहे लगातार हमलों से फोर्स का मनोबल लगातार गिर रहा है।