टॉप विदेशी विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए सरकारी स्कॉलरशिप पर महाराष्ट्र के दलितों का दबदबा

 नई दिल्ली
विदेशी विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए सरकारी स्कॉलरशिप हासिल करनेवाले दलित छात्रों की संख्या के मामले में महाराष्ट्र देश में अव्वल है। हाल के वर्षों में स्कॉलरशिप पानेवालों की पड़ताल में यह पता चला है कि महाराष्ट्र इस लिहाज से देश के दूसरे राज्यों से बहुत आगे है। फरवरी 2018 तक अनुसूचित जाति के 72 छात्रों को नैशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप स्कीम का लाभ मिला था जिनमें 40 छात्र अकेले महाराष्ट्र के हैं। 
 
अन्य राज्य इस मामले में महाराष्ट्र से कितने पिछड़े हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दूसरा स्थान हासिल करनेवाले कर्नाटक और उत्तर प्रदेश से महज छह-छह छात्र इस लिस्ट में शामिल हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से महाराष्ट्र का लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहा है। 2016-17 में कुल 108 फेलोशिप बांटे गए थे, जिनमें 53 पर महाराष्ट्र ने जबकि यूपी ने आठ और मध्य प्रदेश एवं तमिलनाडु ने पांच-पांच फेलोशिप हासिल किए थे। दूसरे राज्यों के हिस्से 0 से 4 फेलोशिप्स हाथ लगे थे। महाराष्ट्र पिछले तीन वर्षों से फेलोशिप पानेवाले छात्रों की संख्या के लिहाज से टॉप कर रहा है। 

अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए नैशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप (एनओएस) फंड का संचालन सामाजिक न्याय मंत्रालय करता है। इसके तहत छात्रों का चयन विदेशी यूनिवर्सिटियों में मास्टर लेवल और पीएचडी पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए किया जाता है। पहले फेलोशिप की 30 सीटें ही थीं जो बढ़कर 60 हो गईं और 2014 से यह संख्या बढ़ाकर 100 की जा चुकी है। 

अधिकारियों के मुताबिक, एनओएस पर महाराष्ट्र के दबदबे का कारण वहां के छात्रों को बेहतर शैक्षिक वातावरण मिलना है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में एनओएस के प्रति ज्यादा जागरूकता है क्योंकि वहां की सरकार भी इसी तरह की योजना चलाती है। समाजशास्त्रियों की नजर में यह भीमराव आंबेडकर और शिक्षा पर उनका जोर होने के कारण संभव हो रहा है। 

कई लोग स्कॉलरशिप से विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने के बाद वापस दलित समाज के उत्थान में जुट गए और आंबेडकर के सपने को सच कर रहे हैं। वे विदेशी शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप के प्रति छात्रों को जागरूक कर रहे हैं और दिलचस्पी दिखानेवाले छात्रों को उचित सही राह दिखाते हैं।