दिल्ली हाईकोर्ट ने एक साल की बच्ची को उसकी माँ से मिलवाया

नई दिल्ली

एक साल की बेटी को कोर्ट के सामने पेश करने की मांग को लेकर लगाई गई एक महिला की याचिका का निपटारा करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि मनोचिकित्सक से परामर्श लेने का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है.

दिल्ली हाइकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि तनावपूर्ण जीवन और आजकल के आपाधापी के माहौल में मनोचिकित्सक से परामर्श लेना आम बात हो चली है.

हाईकोर्ट ने कहा कि आज महिलाएं सभी क्षेत्र में सक्रिय हैं, वे अपने दोस्तों, सहकर्मिंयों और परिवार वालों के साथ सामाजिक होती हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वे अपनी मातृत्व से जुड़ी दायित्वों को पूरा करने में विफल हो रही है. कोर्ट में महिला ने याचिका दायर कर गुहार लगाई थी कि उसके पति को कोर्ट आदेश दे कि वो उनकी नाबालिग बेटी को कोर्ट के सामने पेश करे.

महिला के ससुराल वालों ने कथित तौर पर बच्ची को जबरन अपने पास रख लिया था. क्योंकि उनका कहना था कि वह मानसिक रूप से बीमार है, उसका इलाज चल रहा है. लेकिन हाईकोर्ट ने बच्ची को अंतरिम तौर पर मां के पास भेजने का आदेश दिया है.

इसके अलावा बेंच ने महिला के पति की दलील को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि महिला बच्ची से स्वाभाविक रूप से जुड़ी नहीं है और बच्ची का जन्म सरोगेसी से हुआ है.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सरोगेसी का मतलब यह नहीं कि मां का बच्ची के लिए प्यार कम हो जाएगा. हाईकोर्ट ने महिला की मानसिक स्थिति के संबंध में कहा कि जीवन के तमाम उतार चढ़ाव के कारण तनाव हो सकते हैं, जिसके कारण वह इलाज करा रही थी, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि वह मानसिक रूप से संतुलित नहीं है.