पद्मश्री पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी का निधन, इसी साल राष्ट्रपति के हाथों मिला था सम्मान

पद्मश्री पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी का निधन, इसी साल राष्ट्रपति के हाथों मिला था सम्मान

बिलासपुर
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर निवासी पद्मश्री पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी का शुक्रवार की सुबह निधन हो गया. बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. पंडित श्यामलाल लंबे समय से बीमार चल रहे थे. पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पहले चेयरमैन थे. उनकी उम्र 93 साल की थी. इसी साल उन्हें पद्मश्री सम्मान से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सम्मानित किया था.

श्यामलाल चतुर्वेदी का जन्म 1926 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के कोटमी गांव में हुआ था. बिलासपुर के श्यामलाल चतुर्वेदी को साहित्य, शिक्षा व पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान दिया गया था. बताते हैं कि अपने वक़्त में वे रायपुर-बिलासपुर करीब 114 किलोमीटर साइकिल से आना-जना करते थे. ये उनकी सादगी थी. वे छत्तीसगढ़ में कुछ प्रमुख अखबारों के प्रतिनिधि भी रहे हैं.

पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी की कहानी संग्रह ‘भोलवा भोलाराम’ को काफी सराहना मिली. वे छत्तीसगढ़ी के गीतकार भी रहे. उनकी रचनाओं में ‘बेटी के बिदा’ प्रसिद्ध रचना है. उन्हें ‘बेटी के बिदा’ के कवि के रुप में लोग पहचानते हैं. बताया जाता है बचपन में मां के कारण उनका रुझान लेखन में हुआ. उनकी मां ने उन्हें सुन्दरलाल शर्मा की ‘दानलीला’ रटा दी थी.

श्यामलाल चतुर्वेदी करीब 75 वर्षों तक साहित्य साधना के जरिए हिन्दी और छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध बनाने की कोशिश करते रहे. उन्होंने पत्रकारिता और शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी मूल्यवान सेवाएं दी हैं. वे मूलरूप से तत्कालीन अविभाजित बिलासपुर जिले के ग्राम कोटमी सोनार (वर्तमान में जिला जांजगीर-चांपा) के निवासी है, लेकिन साहित्यकार और पत्रकार के रूप में बिलासपुर उनकी कर्मभूमि रही.