ब्रेस्ट कैंसर के ऑपरेशन के बाद दर्द से अब मिलेगी राहत
पटना
ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस बीमारी में ऑपरेशन के दौरान ब्रेस्ट के अधिकांश हिस्से को हटा दिया जाता है। ऐसे में मरीजों को ऑपरेशन के तुरंत बाद बहुत तेज दर्द होता है। पटना एम्स ने इस दर्द को नई तकनीक के जरिए बहुत ही कम कर दिया है। ऑपरेशन के बाद मरीज के होश में आने पर पता ही नहीं चलता है कि उसका ऑपरेशन हुआ है।
पटना एम्स के एनीस्थिशिया एंड केयर सेंटर के डॉक्टरों ने बेतहाशा दर्द से निजात दिलाने के लिए 60 मरीजों पर शोध किया। इतने मरीजों पर प्रयोग करने के बाद जो सफलता मिली वो काफी सुकून वाला रहा। जिस केस में ब्रेस्ट कैंसर को ठीक करने के लिए ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है। वैसे मरीजों को ऑपरेशन के पहले नर्व की पहचान की गई जो ऑपरेशन के बाद दर्द पैदा करता है। अल्ट्रासाउंड द्वारा वैसे नर्व की पहचान की गई। दो नसों को प्रयोग के लिए आजमाया गया। इनमें एक था पेक्टोरल नर्व और दूसरा था इरेक्टर स्पाइनी।
इन दोनों नसों को ब्लॉक कर देखा गया कि कौन सी नस सुन्न कर देने से मरीज को होने वाले दर्द में बड़ी राहत मिली है। ऐसे 30-30 मरीजों को रखा गया। एनीस्थिशिया एंड केयर सेंटर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अजीत कुमार ने बताया कि प्रयोग करने के बाद पाया गया कि पेक्टोरल नर्व को ब्लॉक करने के बाद मरीज को दर्द में बहुत बड़ी राहत मिली। शोध इंडियन जर्नल ऑफ एनीस्थिशिया में पिछले महीने प्रकाशित हुआ है। एम्स में ब्रेस्ट कैंसर के ऑपरेशन में दर्द से राहत दिलाने के लिए पेक्टोरल नर्व को ब्लॉक करने की विधि को प्रैक्टिस में लाया गया है।
दर्द रहित ऑपरेशन
प्रयोग को सेंट्रल क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्रेशन में निबंधित कराया गया है। पिछले माह इंडियन जर्नल व एनीस्थिशिया में प्रकाशित भी हुआ है। पटना एम्स के इमरजेंसी एंव ट्रॉमा के प्रभारी डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों को दर्द रहित ऑपरेशन से राहत मिलेगी।
आठ घंटे तक मिलती है राहत
डॉ. अजीत कुमार ने बतया कि पेक्टोरल नर्व को ब्लॉक करने के बाद आठ से नौ घंटे तक मरीजों को दर्द नहीं होता है। पहले ऑपरेशन के तुरंत बाद मरीज को काफी दर्द होता था, जिसे हाई एंटोबायोटिक दवाएं और दर्द के हाई डोज की दवा दी जाती थी। इसके बाद भी मरीजों को दर्द बर्दाश्त करना पड़ता था। पेक्टोरल नर्व को ब्लॉक करने के बाद ऑपरेशन होने पर मरीज को आठ से नौ घंटे तक दर्द का एहसास नहीं होता है। यह समय बीतने के बाद मरीज को हल्का दर्द रहता है लेकिन वो भी राहत भरी होती है। हाई डोज की दवाओं की जरूरत नहीं पड़ती है।