भारतीय बैडमिंटन के द्रोणाचार्य पुलेला गोपीचंद

भारतीय बैडमिंटन के द्रोणाचार्य पुलेला गोपीचंद

 
नई दिल्ली 

दुनिया के चोटी के खिलाड़ी रहे पुलेला गोपीचंद को भारतीय बैडमिंटन का द्रोणाचार्य कहा जाता है। वह भारत के राष्ट्रीय कोच हैं। एक खिलाड़ी के तौर पर उनकी उपलब्धियां लाजवाब हैं लेकिन एक कोच के रूप में उनकी लगन, जुनून और जोश ने उन्हें 'गुरु गोपी' का सम्मान दिलाया है। आज उनका 45वां जन्मदिन है इस मौके पर जानिए उनके बारे में कुछ खास बातें...  
 
एक खिलाड़ी के तौर पर गोपीचंद ने प्रकाश पादुकोण और सैयद मोदी की भारतीय बैडमिंटन परंपरा को आगे बढ़ाने का काम किया। उनका जन्म 16 नवंबर 1973 को आंध्र प्रदेश के नागन्दला में हुआ। चैंपियन बनने का जज्बा उनमें बचपन से मौजूद था। 13 साल की उम्र में मांसपेशियों की कई चोट भी उन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोक पाईं। 

गोपीचंद अपने परिवार में अकेले नहीं थे, जिन्हें बैडमिंटन का शौक था। उनके भाई भी एक शानदार खिलाड़ी थे। गोपी ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि मैं और मेरा भाई दोनों बैडमिंटन खेलते थे। वह शानदार खिलाड़ी था लेकिन मुझे लगता है कि मेरी किस्मत अच्छी थी कि मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं था। उन्होंने कहा था कि मेरा भाई स्टेट चैंपियन था। उसने आईआईटी का पेपर दिया और पास हो गया। इसके बाद उसने खेलना छोड़ दिया। मैं पेपर में फेल हो गया और आज मैं यहां हूं। 

जब गोपी 21 साल के थे तो कोर्ट पर हुई एक टक्कर ने उनका करियर लगभग समाप्त कर दिया था। लेकिन चैंपियन चोटों से कहां रुकते हैं। वह वापस आए। 23 साल की उम्र में उन्होंने नैशनल चैंपियनशिप जीती और फिर अगले पांच साल तक जीतते ही रहे। 2001 में वह प्रकाश पादुकोण के बाद प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड टूर्नमेंट जीतने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी बने। इस दौरान उन्होंने वर्ल्ड नंबर वन पीटर गेड को सेमीफाइनल में और फाइनल में अपने से ऊपर रैंक के खिलाड़ी चीन के चेंग हॉन्ग को फाइनल में हराया। 

गोपी ने ऑल इंग्लैंड समेत अपने जीवन में 5 अंतरराष्ट्रीय खिताब जीते। ऐसे ही एक खिताब के दौरान उनके विपक्षी खिलाड़ी ने यह तक कहा था कि गोपी कोर्ट पर तो बहुत तेज मूव करते हैं लेकिन उनकी सबसे बड़ी खूबी एक ही ऐक्शन के साथ पांच स्टोक्स खेलने की है। 

एक कोच के रूप में उन्होंने और बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। यह साल 2004 था जब पुलेला गोपीचंद ने अपनी अकादमी की शुरुआत की। उनकी आंखों में एक ही सपना था। भारत को बैडमिंटन के शिखर पर पहुंचाना। उन्हें मालूम था कि मौका और सही ट्रेनिंग मिले तो ऐसा किया जा सकता है। आखिर वह खुद भी ऐसा कर चुके थे। गोपी को मालूम था कि भारतीय बैडमिंटन की चीनी दीवार को भेद सकता है और आखिर वह ऐसा करने में सफल भी हुए। 

लेकिन कोई भी सपना सस्ता नहीं होता। गोपी का भी नहीं। अपनी अकादमी खोलने के लिए उन्हें अपना घर तक गिरवी रखना पड़ा। लेकिन वह डिगे नहीं। इसकी गुंजाइश भी नहीं थी। जब लक्ष्य बड़ा हो तो चैंपियन बड़ा जोखिम उठाने से भी नहीं डरते। 

यह अकादमी ही है जिसने ऑल इंग्लैंड चैंपियन गोपीचंद को गुरु गोपी का नाम, सम्मान और रुतबा दिलाया। खेल के प्रति उनकी उपलब्धियों को देखते हुए ही उन्हें 2009 में प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 

अपनी अकादमी के बारे में उन्होंने कहा था, 'हमने यह अकादमी बहुत जुनून से बनाई है। शुरुआत में कई सवाल थे। हम नहीं जानते थे कि हमें कामयाबी मिलेगी अथवा नहीं लेकिन हमने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। जब तक हमने साबित नहीं किया किसी को यकीन नहीं हुआ कि यह अकादमी इतनी बड़ी उपलब्धि होगी। वह मुश्किल दिन थे लेकिन मैं खुश हूं कि हमारी मेहनत रंग लाई।' 

गोपी की अकादमी से दो ओलिंपिक मेडल आ चुके हैं। 2012 में साइना नेहवाल ने लंदन ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था और 2016 में पीवी सिंधु ने रियो में सिल्वर मेडल पर कब्जा किया था। जितनी मेहनत वह अपने खिलाड़ियों से चाहते हैं उतनी ही वह खुद भी करते हैं। वह खिलाड़ियों के साथ खुद भी सुबह चार बजे अकादमी में पहुंच जाते हैं। खिलाड़ियों के खेल के साथ-साथ फिटनेस और डाइट पर भी पूरी तवज्जो दी जाती है। 

सिंधु और साइना के अलावा भी गोपीचंद की अकादमी से कई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय मंच पर नाम कमा रहे हैं। किदांबी श्रीकांत, पुरुपल्ली कश्यप, समीर वर्मा, एचएस प्रणॉय और साई प्रणीत सिंगल्स में नाम कमाने वाले खिलाड़ी हैं। श्रीकांत और साइना तो दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी भी रह चुके हैं।