महबूबा मुफ्ती के लिए शुरू हुई असली परीक्षा, पार्टी को बचाना सबसे बड़ी चुनौती

श्रीनगर
जम्मू- कश्मीर विधानसभा भंग हो गई है. इसके साथ ही वहां सरकार बनाने की सारी कवायदों पर ब्रेक लग गया है. अगले महीने 16 तारीख को राज्यपाल शासन खत्म होने वाला था. मगर, इससे पहले ही राज्यपाल ने बड़ा फैसला ले लिया. सवाल उठ रहे हैं कि राज्यपाल के फैसले से सबसे ज्यादा धक्का किस पार्टी को लगा है. पार्टियों की तिलमिलाहट देखें तो तीनों प्रमुख विपक्षी पार्टियां पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस एक सुर में राज्यपाल को कोस रही हैं, लेकिन पीडीपी की नाराजगी कुछ ज्यादा खास है.
विधानसभा भंग होने से अगर किसी को सबसे ज्यादा घाटा हुआ है, तो वह पीडीपी है. पीडीपी पिछली सरकार में थी और महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री थीं. उन्होंने सरकार बनाने के लिए भाजपा से हाथ मिलाया था, जिसके खिलाफ उनकी पुरानी अदावत थी. उन्होंने कहा था कि कश्मीर को बचाने के लिए ऐसा करना पड़ा. अब वह अपनी धुर विरोधी नेशनल कॉन्फ्रेंस से हाथ मिला बैठीं.
विरोधी विधायकों को मुद्दा मिल गया
विरोधी कहने लगे हैं कि सत्ता के लिए महबूबा किसी से भी हाथ मिला सकती हैं. पहले भी उन पर आरोप लगते रहे कि कश्मीरियों पर पैलट गन चलवाने वालों से हाथ मिला लिया. अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है विधायकों को रोक कर रखना, क्योंकि पार्टी के कई विधायक दूसरी पार्टियों के संपर्क में हैं. वे किसी वक्त पाला बदल सकते हैं.
पीडीपी में बगावत के संकेत
बुधवार को जैसे ही एनसी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की खबर आई, वैसे ही पीडीपी के कई नेताओं के बागी होने की आशंका बढ़ने लगी. पहले भी पार्टी के कई विधायकों ने महबूबा पर मनमर्जी से सरकार चलाने और वंशवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है. एनसी, कांग्रेस से गठबंधन की बात चलने के बाद पीडीपी नेताओं में नाराजगी और बढ़ गई.
यहां तक कि पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग ने बगावती तेवर अख्तियार करते हुए तीसरा मोर्चा बनाने की बात की. बेग ने पीपल्स कॉन्फ्रेंस के साथ तीसरा मोर्चा बनाकर बीजेपी को समर्थन देने का मन बनाया था. हालांकि उनकी यह मुराद पूरी न हो सकी क्योंकि उसके पहले ही विधानसभा भंग हो गई. अब जो कुछ भी होगा, चुनाव से ही फैसला हो पाएगा.
बेग पीडीपी के कद्दावर नेताओं में एक हैं. उनका यह बयान काफी मायने रखता है कि ‘करीब एक साल पहले पीडीपी के संविधान में संशोधन की समिति का गठन कर उन्हें अध्यक्ष बनाया गया था. उन्होंने कुछ सवाल महबूबा को भेजे थे, लेकिन आज तक उनका जवाब नहीं आया.’ बकौल मुजफ्फर बेग, ‘अब मैं अपने भविष्य का फैसला तभी लूंगा जब मेरे आज के बयान पर महबूबा जवाब देती हैं. अगर पीडीपी कोई नोटिस नहीं लेती तो मैं संगठन बदल सकता हूं.’ बेग का यह बयान यह बताने के लिए काफी है कि महबूबा मुफ्ती और उनकी पार्टी पीडीपी किस दौर से गुजर रहे हैं.
आबिद रजा अंसारी भी काफी नाराज
बेग के बाद आबिद रजा अंसारी का नाम आता है जो अपनी ही पार्टी पीडीपी और महबूबा से खासे नाराज बताए जाते हैं. कुछ महीने पहले की बात है जब पार्टी के तीन विधायकों ने महबूबा मुफ्ती पर कई आरोप लगाने के बाद अपनी विरोधी मंशा जाहिर कर दी थी. उनका साफ संकेत था कि महबूबा सियासी पैंतरा बदलना छोड़ें अन्यथा वे कोई और रास्ता अख्तियार कर सकते हैं. इन नेताओं में सबसे खास नाम था श्रीनगर के जड़ीबल निर्वाचन क्षेत्र से विधायक आबिद रजा अंसारी का. अंसारी ने पार्टी के नेताओं नईम अख्तर, वहीद पारा, पीरजादा मंसूर और सरताज मदनी पर निशाना साधते हुए उनपर गंभीर आरोप लगाए और पार्टी छोड़ने तक की धमकी दी.
14 विधायकों में नाराजगी
अंसारी की मानें तो वे कम से कम 14 पीडीपी विधायकों के संपर्क में हैं, जो असंतुष्ट हैं और पार्टी छोड़ने के लिए तैयार हैं. अंसारी ने नईम अख्तर, पीरजादा मंसूर, वहीद उर रहमान पारा और सरताज मदनी पर हमला करते हुए कहा कि पार्टी की स्थापना पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की ओर से उनके खून की पेशकश से की गई, जिसे उनकी नाकाबिल बेटी और अन्य सदस्यों ने बर्बाद कर दिया. अगर अंसारी की बातों में दम है और 14 विधायक टूटने के कगार पर हैं, तो फिर पीडीपी पार्टी के नाम पर बच नहीं पाएगी और प्रदेश में उसे अपना वजूद बचाना मुश्किल हो जाएगा.