महिला की बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका को HC ने किया निरस्त
रायपुर
छत्तीसगढ़ में मां द्वारा बच्ची को प्राप्त करने के लिए दायर की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है. मामला बिलासपुर जिले के रहने वाले मृतक संतोष कुमार द्विवेदी से जुड़ा है.
दरअसल, संतोष की मौत के बाद उसकी पत्नी अपनी बेटी को लेकर मायके (मां का घर) चली गई थी. इसके बाद महिला ने बनारस के रहने वाले एक व्यक्ति से शादी कर अपनी बेटी को उसके साथ रखने के लिए मना लिया. इसका नतीजा यह हुआ कि कुछ दिन बाद ही नए पिता का अत्याचार अपनी नाबालिग सौतेली बेटी के साथ शुरू हो गया.
इस बीच नाबालिग बेटी और उसकी मां कोरबा आ गए. बच्ची के दादा, चाचा और बुआ बच्ची से मिलने गए और एक सप्ताह के लिए उसकी मां से बच्ची को घर ले जाने का आग्रह किया. इस दौरान मां ने उनकी बात मान ली. बच्ची जब अपने दादा के घर पहुंची तब उसने अपने नए पिता द्वारा उसके ऊपर किए गए अत्याचार के बारे में बताया.
बच्ची ने बताया कि एक रोज उसने गलती से अपने नए पापा के लैपटॉप को छू लिया, जिस पर वो भड़क गए. इसके बाद उसे जानवरों की तरह खूब पीटा और दो घंटे के लिए बाथरूम में बंद कर दिया. बच्ची की बात सुन दादा और चाचा ने बच्ची को उनके पास नहीं भेजने का मन बना लिया. जब एक सप्ताह के बाद बच्ची नहीं लौटी तो बच्ची की मां ने कोरबा न्यायालय में एक याचिका लगाई. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद याचिका को खारिज कर दिया. दोबारा मां ने कोर्ट में याचिका लगाई, फिर कोर्ट से याचिका खारिज हो गई.
फिर मां ने बच्ची को हासिल करने के लिए हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका लगाई. मामले को हाईकोर्ट चीफ जस्टिस के डिवीजन बेंच ने सुना. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने मां द्वारा बच्ची को प्राप्त करने वाली याचिका को एक बार फिर निरस्त कर दिया.
बंदी प्रत्यक्षीकरण आज्ञापत्र अदालत द्वारा पुलिस या अन्य गिरफ़्तार करने वाली राजकीय संस्था को यह आदेश जारी करता है कि बंदी को अदालत में पेश किया जाए और उसके विरुद्ध लगे हुए आरोपों को अदालत को बताया जाए। यह आज्ञापत्र गिरफ़्तार हुआ व्यक्ति स्वयं या उसका कोई सहयोगी (जैसे कि उसका वकील) न्यायलय से याचना करके प्राप्त कर सकता है।