रमजान के बाद 3 मौलवियों को मौत की सजा क्यों देने जा रहा सऊदी?
सऊदी अरब
रमजान महीना खत्म हो चुका है और सऊदी अरब अपने 3 प्रमुख विद्वानों को मौत के घाट उतारने जा रहा है. MBS उपनाम से मशहूर सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अपने विरोधियों का दमन करते रहे हैं जिसमें सहवा से जुड़े धार्मिक विद्वान भी शामिल हैं.
इन मुस्लिम विद्वानों में से सबसे बड़े नाम हैं- सलमान अल-अवध, अवाद अल-कारनी और अली अल-ओमारी. तीनों विद्वानों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है. अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, रमजान महीने के बाद तीनों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा.
सऊदी अल-सहवा अल इस्लामिया (इस्लामिक जागरण) या सहवा सऊदी अरब में 1960-80 के बीच ताकतवर सामाजिक और राजनीतिक बदलावों का दौर था. राज्य की दमन की तमाम कोशिशों के बावजूद मुस्लिम ब्रदरहुड से प्रभावित धार्मिक आंदोलन का प्रभाव कई सालों तक बना रहा. इस आंदोलन में वैसे तो कई तरह के विचारों को समाहित किया गया है लेकिन ये अहिंसा में विश्वास रखते हैं. इसके अलावा धर्म और राजनीति के मिश्रण का समर्थन करते हैं.
सहवा के कई मौलाना राजनीति में धार्मिक विद्वानों की भूमिका बढ़ाना चाहते हैं, वह भी सऊदी के राजतंत्र को चुनौती देते हुए. जबकि पारंपरिक तौर पर सऊदी के मौलाना राजनीति को सऊदी शाही परिवार के लिए छोड़ रखा है लेकिन सहवा समुदाय के नेता इसे खारिज करते हैं. वे इस्लाम को सभी मुद्दों के समाधान में सक्षम मानते हैं.
सहवा की छत के तले कई समुदायों के समाज पर अलग मत हैं लेकिन अधिकतर प्रगतिशील नजरिया ही रखते हैं. जैसे महिलाओं को और ज्यादा अधिकार मिलने चाहिए.
वॉशिंगटन आधारित सऊदी विश्लेषक अली अल-अहमद के मुताबिक, सऊदी सहवा की विचारधारा को एक खतरे की तरह देखता है.
सहवा ने इस विचारधारा को चुनौती देने की कोशिश की है कि शासक की आज्ञा का पालन अनिवार्य है.
सऊदी को डर है कि सहवा आंदोलन की आग उनके साम्राज्य तक पहुंच जाएगी और इसीलिए उन्होंने असंतोष को दबाने की कोशिश करनी शुरू कर दी हैं. जब MBS क्राउन प्रिंस बने तो उन्होंने सऊदी इस्लामवादियों समेत प्रमुख विरोधियों का दमन और तेज कर दिया.
सऊदी विश्लेषक अल-अहमद कहते हैं, MBS अपने नियंत्रण से बाहर रहने वाले लोगों और किसी भी तरह की चुनौती को पसंद नहीं करते हैं. वह किसी भी तरह के विपक्ष से डरते हैं और यह मानते हैं कि सहवा कार्यकर्ता उन्हें उनकी राजगद्दी से उतार सकते हैं.