लोकसभा चुनावः क्या सत्ता की चाबी इलाकाई दलों के पास ही रहेगी अब?
नई दिल्ली
चुनावी नतीजों को लेकर चल रही बहस के बीच अहम सवाल यह हो गया है कि क्या इस बार सत्ता की चाबी क्षेत्रीय दलों के पास रहने वाली है? क्षेत्रीय दलों ने पांच सालों के दौरान राज्यों में जिस तरह से अपना दबदबा बढ़ाया है, उससे बीजेपी और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों की निर्भरता क्षेत्रीय दलों पर बढ़ी है और अलग-अलग सर्वे में जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उसमें तो क्षेत्रीय दलों की चांदी होने की उम्मीद की जा सकती है।
2014 में दो दशक बाद यह मौका आया था जब कोई पार्टी अकेले अपने दम पर बहुमत के जादुई आंकड़े (272) को पार करने में कामयाब हुई थी। मोदी के जादू के बल पर बीजेपी को 282 सीटें मिलीं थीं। सरकार बनाने के लिए उसे किसी अन्य दल के सहयोग की जरूरत नहीं थी,लेकिन चुनाव पूर्व सहयोगी क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन (एनडीए) के साथ उसने सरकार बनाना बेहतर समझा। सहयोगी दलों को मिली सीटों को मिलाते हुए सदन में एनडीए के पक्ष में 336 सीटें हो गईं थीं।
इस बार का समीकरण
इस बार अब तक का जो राजनीतिक परिदृश्य उभर कर सामने आया, उसमें यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन के बाद दोनों दलों के निर्णायक स्थिति में रहने की संभावना ज्यादा है। दोनों दल राज्य में बड़े वोटबैंक पर काबिज हैं। इसमें से बीएसपी तो राज्य में तीन बार बीजेपी के साथ साझा सरकार चला चुकी है। बिहार में सारा खेल ही क्षेत्रीय दलों पर टिका है, वह चाहे यूपीए के पाले वाले हों या एनडीए के। राज्य में क्षेत्रीय दलों की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें अपने पाले में बनाए रखने को बीजेपी को अपने कई मौजूदा सांसदों के टिकट काटने पड़ गए हैं।
महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी की भूमिका अहम होगी। शिवसेना के बीजेपी के खिलाफ जो तेवर रहे हैं, उसमें वक्ती बदलाव देखा जा रहा है। नतीजे आने के बाद उसका क्या रुख रहेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। 40 सीटों वाले वेस्ट बंगाल में ममता बनर्जी का सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरना तय है, उसकी क्या भूमिका होती है, इस पर अभी अनिश्चितता है।
नॉर्थ ईस्ट की 25 लोकसभा सीटों के लिए बीजेपी ने नॉर्थ ईस्ट की पार्टियों के साथ एक अलग से अलायंस बना रखा है। तमिलनाडु का चुनाव इस बार पहले से कहीं ज्यादा क्षेत्रीय दलों के बीच बिखरा हुआ है। ओडिशा में बीजू जनता दल और तेलंगाना टीआरएस ही पहले नंबर की पार्टी होंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं लेकिन यह दोनों पार्टियां चुनाव बाद किसके साथ जाएंगी, यह कहा नहीं जा सकता। कर्नाटक में जेडीएस कांग्रेस के साथ सरकार चला रहा हो लेकिन नतीजे आने के बाद उसकी भूमिका नए सिरे से रेखांकित होगी।