क्रिसमस डे 25 दिसंबर: इसलिए 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हैं, पहले किसी और दिन मनाते थे
25 दिसंबर को पूरी दूनिया में हर साल क्रिसमस डे मानाया जाता है। इस दिन एक दूसरे को केक खिलाकर लोग खुशियां बांटते हैं। दरअसल यह इश्वर के दूत जीसस क्राइस्ट का जन्मदिवस है। बाइबल के अनुसार जीसस ईश्वर की संतान (Son of God) हैं। शांति और प्रेम के मसीहा ईसा के जन्म की तारीख का वैसे तो कोई प्रमाणिक स्रोत नहीं है यहां तक कि बाइबल में भी उनके बर्थ डेट का जिक्र नहीं किया गया है, फिर भी 25 दिसंबर को जीसस का जन्मदिवस मानकर क्रिसमस डे का उत्सव मनाया जाता है।
इतिहास के पन्नों में जो कुछ उल्लेख मिलता है उसके अनुसार 7 से 2 ई. पूर्व के बीच ईसा मसीह का जन्म हुआ था है। इनकी जन्मतिथि 25 दिसंबर को लेकर भी कई तरह के सवाल हैं लेकिन परंपरागत रूप से रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के समय इस तिथि को मान्यता मिली और उस समय से ही 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाने लगा। ईसा के जन्मदिन 25 दिसंबर होने की बात को लोकप्रिय बनाने वाले व्यक्ति थे सेक्स्तुस जूलियस अफ्रिकानुस इन्होंने 221 ई. में ईसाई क्रोनोग्राफी में इस तिथि का जिक्र किया था। इससे पहले क्रिसमस मनाने की कोई निश्चित तिथि नहीं थी।
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क्रिसमस को ईसाई धर्म में बड़ा दिन के नाम से भी जानते हैं क्योंकि ईसाइयों के लिए ईसा मसीह का जन्मदिवस सबसे बड़ा त्योहार होता है। इनके जन्म को लेकर एक रोचक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार, परमेश्वर ने अपने दूत जिब्राईल/गैब्रिएल को स्त्री मरियम के पास भेजा और मरियम को उसके गर्भ से यीशु के जन्म लेने की बात कही।गैब्रिएल ने मरियम को बताया कि जन्म लेने वाले बच्चे का नाम जीसस होगा और वह ऐसा राजा बनेगा जिसके साम्राज्य की कोई सीमा नहीं होगी। ऐसा कहानी है कि जब-जब देवदूतों का जन्म होता है तो गैब्रिएल पहले आकर इसकी सूचना दे जाते हैं।
जिस समय मरियम को यीशु के जन्म की सूचना मिली उस वक्त वह अविवाहित थी। कुछ दिनों बाद मरियम की शादी जोसेफ नामक युवक से हुई। मरियम और जोसेफ एक साथ नाजरथ में रहा करते थे। नाजरथ आज के इसराइल का एक शहर था। तब नाजरथ रोमन साम्राज्य में था। जब मरियम गर्भवती हुई उस समय नाजरथ में जनगणना का काम चल रहा था। इस कारणवश यह शहर पूरी तरह से भरा हुआ था। सभी धर्मशालाएं, सार्वजनिक आवास गृह पूरी तरह भरे हुए थे। जगह के आभाव में मरियम ने एक अस्तबल में आधी रात को यीशु को जन्म दिया।
जन्मस्थल से कुछ दूर पर कुछ चरवाहे भेड़ चरा रहे थे। कहा जाता है कि भगवान स्वयं देवदूत का रूप धारण कर वहां आए और उन्होंने चरवाहों से कहा कि ” इस नगर में एक मुक्तिदाता का जन्म हुआ है, ये स्वयं भगवान ईसा हैं।” देवदूत की बात पर यकीन करके चरवाहे उस बच्चे को देखने गए। देखते ही देखते बच्चे को देखने वालों की भीड़ बढ़ने लगी। लोगो का मानना था कि यीशु ईश्वर का पुत्र है और यह कल्याण के लिए पृथ्वी पर आया है।