मतदाता नहीं होने का नुकसान उठा रहे हैं बच्चे
अमिताभ पाण्डेय
भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में 18 वर्ष से अधिक उम्र के हर लडके, लडकी, महिला, पुरूष, किन्नर को मतदाता माना गया है। इसका आशय यह है कि जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है वह अपना वोट देकर चुनाव प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, अपने जनप्रतिनिधि का चयन खुद कर सकता है। यह जन प्रतिनिधि ही लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद आदि संस्थाओं के माध्यम से जनता के हित के नियम, कानून को बनाने और उनको लागू करवाने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूंकि जन प्रतिनिधियों का चुनाव केवल वही करते हैं जिनकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है, इसलिए हमारे देश के जन प्रतिनिधियों को उनकी चिंता ही ज्यादा होती है जिनसे उनको वोट लेना है। जिनकी उम्र वोट देने लायक नहीं, जिनको मतदान करने का अधिकार नहीं वे ना तो जनप्रतिनिधियों की चिंता में है और ना ही उनके बारे में हमारे देश के नीति निर्माता अधिक चिंतित रहते हैं। जनप्रतिनिधियों से लेकर सरकार और समाज के प्रभावशाली सभी लोग केवल वयस्कों के बारे में ही अधिक चर्चा और चिंतन करते हैं। जिसको वोट देने का अधिकार नहीं मिला है, जो मतदान नहीं कर सकते हैं वे सभी 18 वर्ष से कम उम्र के हैं जिनको हमारे देश के नियम, कानून के अनुसार बच्चा माना जाता है। चूंकि यह बच्चे राजनीति में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सकते, जनप्रतिनिधियों को चुनाव जिताने अथवा हराने में इनका कोई योगदान नहंी होता है, इसलिए बच्चों के हितों की चिंता को लेकर जन प्रतिनिधि अथवा राजनैतिक दल गंभीर नहीं है। उनकी पूरी सोच केवल अपने मतदाताओं, अपने वोट बैंक के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गई है। यही कारण है कि बच्चों के हितों की लगातार उपेक्षा हो रही है। बच्चों के साथ शोषण, अन्याय, अत्याचार की घटनायें लगातार बढ़ रही है। बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा, सेहत को लेकर सरकार की ओर से जो योजनायें बनाई जा रही है उनका सही-सही परिणाम आजादी के 72 वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं मिल पाया है।
यहां यह बताना जरूरी होगा कि भारतीय संविधान में बच्चों को स्वस्थ, सुरक्षित वातावरण में पलने, पढ़ने, बढ़ने के लिए अनेक नीति, नियम, कानून बनाये हैं। इसके बाद भी इन नियम, कानूनों पर प्रभावी तरीके से अमल नहीं हो पा रहा है। बच्चों के हितों को लेकर हमारे माननीय जन प्रतिनिधि लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद में महत्वपूर्ण मुद्दे नहीं उठा पा रहे हैं। यदि हम सदन की कार्यवाही के दौरान बच्चों संबंधी मुद्दों पर जन प्रतिनिधियों द्वारा की गई चर्चा को देखें तो वह बहुत कम है। यदि सदन में बच्चों से जुडे सवाल-जवाब का विश्लेषण किया जाए तो यह साफ जाहिर होता है कि बच्चों के हक अधिकार, उनकी सुरक्षा, उनकी समस्याओं और उसके समाधान को लेकर हमारे जन प्रतिनिधि गंभीर नहीं है।
इन पंक्तियों के लेखक ने सामाजिक सरोकार से जुडी संस्था विकास संवाद के माध्यम से मध्यप्रदेश में 13वीं विधानसभा के पांच वर्षीय कार्यकाल के दौरान बच्चों से जुडे विभिन्न मुद्दों को जानने, समझने का प्रयास किया। इसके लिए 13वीं विधानसभा में 11 दिसम्बर 2008 से 10 दिसम्बर 2013 के बीच संपन्न हुए कुल 17 सत्र के दौरान उठाये गये सवाल-जवाब की गहराई से पडताल की। तेरहवीं विधानसभा के 17 सत्रों में कुल 54 हजार 590 प्रश्न माननीय विधायकों की ओर से मध्यप्रदेश विधानसभा को प्राप्त हुए जिनमें से 11 हजार 493 प्रश्न निरस्त कर दिये गये। इस प्रकार तेरहवीं विधानसभा में 43 हजार 97 प्रश्न पुछे गये। इनमें से 1 हजार 785 प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न भी पूछे गये।
यदि हम इन प्रश्नों की जांच करें तो पता चलता है कि यह प्रश्न मध्यप्रदेश शासन के कुल 57 विभिन्न विभागों से संबंधित है जिनके माध्यम से समाज के हर वर्ग के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं-कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जाता है। इनमें से 30 विभाग ऐसे हैं जिनका बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, संरक्षण, सुरक्षा संबंधी योजनाआंे से किसी ना किसी रूप में संबंध है।
तेरहवीं विधानसभा में माननीय विधायकों ने बच्चों से जुडे विभिन्न मुद्दों पर 4 हजार 91 प्रश्न किये जो कि उनके द्वारा पूछे गये कुल प्रश्नों का मात्र 9.49 प्रतिशत है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सदन में बच्चों से जुडे मुद्दों पर 5 साल में विभिन्न राजनैतिक दलों के 230 माननीय विधायकों ने 10 प्रतिशत सवाल भी नहीं किये। इसका यह आशय है कि वे बच्चों के मुद्दों के बारे में सदन में सवाल उठाना जरूरी नहीं समझते हैं क्योंकि बच्चे मतदाता नहीं है। जो जनप्रतिनिधियों को वोट नहीं दे सकते, उनके बारे में चिंता जनप्रतिनिधियों को क्यों करना चाहिए ?
तेरहवीं विधानसभा में माननीय विधायकों द्वारा पूछे गये कुल प्रश्नों में बच्चों की शिक्षा से जुडे विभिन्न सवालों की संख्या मात्र 3 हजार 54 है जो कि कुल सवालों का 7.8 प्रतिशत है। इससे यह जाहिर होता है कि बच्चों की शिक्षा से जुडे सवालों को लेकर बहुत ही कम सवाल-जवाब किये गये। क्या यह मान लिया जाए कि वर्तमान में बच्चों को जिस प्रकार की शिक्षा दी जा रही है उससे माननीय विधायकगण संतुष्ट है और वे शिक्षा के बारे में ज्यादा सवाल-जवाब नहीं करना चाहते हैं।
इसी प्रकार बच्चों के संरक्षण, सुरक्षा संबंधी प्रश्नों का विश्लेषण करें तो इससे जुडे कुल 229 प्रश्न किये गये हैं जो कि सदन में बच्चों के मुद्दे पर पूछे गये कुल सवालों का मात्र 0.53 प्रतिशत है। यहां यह भी बताना होगा कि बच्चों से जुडी अपराधिक घटनाओं में मध्यप्रदेश काफी बदनाम है। इसके बावजूद बच्चों की सुरक्षा- संरक्षण को लेकर मात्र 0.53 प्रतिशत सवाल मध्यप्रदेश विधानसभा में पूछे जाने से ऐसा लगता है कि माननीय विधायकों के लिए बच्चों की सुरक्षा ज्यादा चिंता का विषय नहीं है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि जो बच्चे शोषण, अन्याय अथवा अत्याचार का शिकार होते हैं अथवा जिनके साथ अपराधिक घटनायंे होती है, उनमें ज्यादातर बच्चे पिछडे, कमजोर वर्ग, गरीब परिवारों के होते हैं।
इसी प्रकार यदि हम बच्चों के स्वास्थ्य से जुडे प्रश्नों का विश्लेषण करें तो इस विषयों पर माननीय विधायकों ने कुल 160 प्रश्न किये जो कि सदन में पूछे गये कुल प्रश्नों का मात्र 0.37 प्रतिशत है। यह स्थिति तब है जबकि मध्यप्रदेश का नाम कुपोषण के कारण होने वाली बच्चों की मौत और शिशु मृत्यु दर के मामले में भारत के अन्य राज्यों के तुलना में सबसे आगे है। यदि हम पोषण के मुद्दे पर माननीय विधायकों द्वारा पूछे गये कुल प्रश्नों की संख्या को देखें तो वह 648 है जो कि कुल प्रश्नों का मात्र 0.80 प्रतिशत है।
अब बच्चों के प्रति राजनैतिक दलों की मध्यप्रदेश विधानसभा में जाहिर हुई चिंता पर भी एक नजर डाल लें। यदि बच्चों से जुडे मुद्दों को पार्टी के आधार पर देखें तो भाजपा ने कुल 1 हजार 982 प्रश्न किये हैं। इनमें शिक्षा संबंधी 1 हजार 556, स्वास्थ्य संबंधी 70, पोषण संबंधी 276 और सुरक्षा संरक्षण संबंधी 80 प्रश्न शामिल है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने कुल 1 हजार 727 प्रश्न पूछे हैं । इनमें से शिक्षा संबंधी 1 हजार 204, स्वास्थ्य संबंधी 81, पोषण संबंधी 310 और सुरक्षा संरक्षण संबंधी 132 प्रश्न शामिल है। बहुजन समाज पार्टी ने कुल 196 प्रश्न पूछे हैं, इनमें से शिक्षा संबंधी 155, स्वास्थ्य संबंधी 1, पोषण संबधी 5 और सुरक्षा संरक्षण संबंधी 8 प्रश्न शामिल है।
यदि समाजवादी पार्टी द्वारा पूछे गये प्रश्नों को देखें तो पता चलता है कि बच्चों से जुडे सपा ने कुल 19 प्रश्न किये हैं जिनमें 12 शिक्षा संबंधी, 1 स्वास्थ्य संबंधी, 6 पोषण संबंधी प्रश्न है जबकि सुरक्षा, संरक्षण के संबंध में समाजवादी पार्टी के माननीय विधायकों ने एक भी प्रश्न नहीं किये हैं। इसी प्रकार भारतीय जनशक्ति पार्टी के विधायकों ने शिक्षा संबंधी 66, स्वास्थ्य संबंधी 1, पोषण संबंधी 18 प्रश्न किये हैं जबकि सुरक्षा संरक्षण संबंधी केवल एक प्रश्न किया है।
इस पूरे विश्लेषण के माध्यम से हम यह बताना चाहते हैं कि सरकार, समाज, जनप्रतिधियों को बच्चों के बारे में अधिक गंभीर और संवेदनशील होने की जरूरत है ताकि प्रत्येक बच्चा चिंतामुक्त स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण में पले-पढ़े-बढ़े।
अंदाज-ए-बयाँ मेरा बहुत खूब नहीं है,
शायद कि तेरे दिल में उतर जाए मेरी बात।