उस्ताद महमूद फारुखी द्वारा पेश की गई दास्तान-ए-रज़ा ने किया मन्त्रमुघ...
उस्ताद महमूद फारुखी द्वारा पेश की गई दास्तान-ए-रज़ा ने किया मन्त्रमुघ
युवा 2022 हिन्दी युवा लेखकों के रज़ा समारोह का समापन आज
मण्डला - रज़ा न्यास एवं कृष्णा सोबती शिवनाथ निधि द्वारा हिंदी युवा लेखकों का रज़ा समारोह रज़ा साहब के जन्म शती वर्ष में उनके जन्मभूमि मण्डला में आयोजित हो रहा है। मण्डला के झंकार सभागार मेंआरम्भिक सत्र में स्वागत भाषण देते हुए रज़ा न्यास के प्रबंध न्यासी और हिंदी कविता के वरिष्ठ कवि श्री अशोक वाजपेयी ने सैयद हैदर रज़ा का परिचय देते हुए बताया कि रज़ा साहब जीवन भर नदी तट तलाशते रहे। यह उनका नर्मदा जी के प्रति अकुंठ लगाव था। इस बार युवा ग़ैर हिंदी के भारतीय मूर्धन्य कवि बांग्ला के शंख घोष, पंजाबी के हरभजन सिंह, उर्दू के अख्तर उल ईमान, मलयालम के अयप्पा पणिक्कर, उड़िया के रमाकांत रथ और मराठी के अरुण कोलटकर पर केंद्रित है। अशोक जी ने युवा 2022 की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि सर्जनात्मक लेखक जब आलोचना लिखते हैं तो आलोचना की रूढ़ शब्दावली का प्रयोग करते हैं। मेरी सदिच्छा है कि युवा लेखक मूल्यवान आलोचना की युक्तियाँ एवं अवधारणा विकसित करें। इसी व्यापक इच्छा के तहत यह आयोजन है। हिंदी की यह जिम्मेदारी है कि अगर हम अखिल भारतीय भाषा हैं तो अन्य भारतीय भाषाओं का भी हमें ख्याल रखना चाहिए। इस अवसर पर हिंदी के कवि अरुण कमल ने कहा कि भारतीय भाषा के मूर्धन्य कवियों को आज के अपने समकालीन संदर्भों में जोड़ कर देखना चाहिए। इन कवियों के हवाले सम्पूर्ण भारतीय किविता परिदृश्य को समझ सकते हैं। पहला सत्र बांग्ला के कवि शंख घोष पर केंद्रित था। पहले सत्र में युवा कवयित्री जोशना बनर्जी आडवाणी ने कहा कि शंख घोष बग़ैर राजनैतिक हुए बंगाल की राजनीति को अपनी कविताओं में दर्ज किया है। शंख घोष कवियों के कवि हैं। उनकी कविताओं में अनिश्चितता एवं समग्रता दोनों मौजूद है। कवयित्री पूनम अरोड़ा ने कहा कि शंख घोष ने कल्पना की बुनावट को लिपिबद्ध किया है। वे एक आयामी होकर भी रचना को बहुआयाम देते हैं। शंख घोष जीवन को कविता में अभिधा के रूप में दर्ज करते हैं। युवा कवि उत्कर्ष ऐश्वर्यम ने कहा कि शंख घोष उन भावों को कविता में दर्ज करते हैं जो आम फ़हम दिनचर्या में अलक्षित रह जाती हैं। शंख घोष कम शब्दों में अधिकतम भाव बोध के कवि हैं। शंख घोष की कविताएँ हमें सहज बनाती हैं। अगले वक्ता डॉ. विशाल विक्रम सिंह ने कहा कि शंख घोष की चुप्पियों को पढ़ पाना एक पाठक के लिए मुश्किल कार्य है।शंख घोष चंडी दास के मनुष्य सत्त को पूर्ण जीवन के रूप में दर्ज करते हैं। उन्होंने कहा कि शंख घोष की कविताओं का मूल तत्व पूंजीवाद एवं फासिज़्म विरोध का है। शंख घोष की कविताएं मनुष्य के मानुष प्रकृति को संरक्षित करने वाली कविता है। युवा कवि और फिल्मकार सुदीप सोहनी ने कहा कि शंख घोष की कविताओं में स्मृति की तटस्थता एक काव्य मूल्य की तरह मौजूद रहा है। शंख घोष अपनी कविताओं में देशज एवं पाश्चात्य ज्ञान परम्पराओं को लेकर कविता की दार्शनिक परिभूमि तक पहुंचते हैं। वे मानवीय अभिव्यक्ति के कवि हैं। युवा कवि सौरभ राय ने कहा कि शंख घोष की कविताओं में विषय गत सौंदर्य से कहीं अधिक भाषा गत सौंदर्य उन्हें महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। इन कविताओं में चुप्पी की बेकल पुकार है।
कार्यक्रम का दूसरा सत्र पंजाबी के कवि हरभजन सिंह पर केंद्रित था। कवियित्री बाबुषा कोहली ने कहा कि जीवन के वैविध्यपूर्ण तरलता मौजूद है। जो कभी कभी तनाव तो कभी कभी सुख देता है। हरभजन सिंह अपनी कविताएँ वास्तविक संसार के बीचों बीच स्वप्न से जगाने वाली हैं। युवा कवि अदनान कफ़ील दरवेश ने कहा कि पंजाबी काव्य परम्परा में हरभजन सिंह एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्हें पंजाबी काव्य परम्परा में किसी एक खाँचेन में नहीं रखा जा सकता है। युवा कवि विहाग वैभव ने कहा कि हरभजन सिंह की कविताओं का स्थापत्य सत्य की स्वीकार्यता से निर्मित होता है। हरभजन सिंह की कविताओं के रूपक उनकी आत्मकथा सरीखा लगते हैं। युवा आलोचक शुभम मोंगा ने कहा कि हरभजन सिंह की अंतर्दृष्टि उनकी रचनाओं को विशिष्ट बनाती हैं। युवा कवि कुमार मंगलम ने कहा कि हरभजन सिंह ने अपनी कविता में कोई सभ्यता समीक्षा संभव किया है तो वह बहुत हद तक राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांप्रदायिक संदर्भों में मनुष्य को केंद्र में रखकर उदात्त जीवन का भाष्य रचा है। वे अपनी कविता में श्रम, करुणा और सौंदर्य को उसकी समूची द्वंद्वात्मकता में उभार देते हैं। अरुणाभ सौरभ ने कहा कि हरभजन सिंह की कविताएँ लोक जीवन की आस्था से रची बसी आधुनिकता से अनुप्राणित है। हरभजन सिंह की कविताओं में व्यापक भारतीय समाज अभिव्यक्ति पाता है।