पेसा पर सियासत, कमलनाथ ने नियमों को बताया आदिवासी विरोधी

पेसा पर सियासत, कमलनाथ ने नियमों को बताया आदिवासी विरोधी

भोपाल, मध्य प्रदेश सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती पर प्रदेश की 89 आदिवासी ब्लॉक में पेसा कानून लागू कर दिया। इस पर सियासत भी तेज हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने सरकार के पेसा कानून को आदिवासी विरोधी बता दिया है। साथ ही उन्होंने विसंगतियां भी गिनाई है।

पिछले 26 साल से यह कानून प्रदेश में लागू नहीं हो सका
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा कि मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार आदिवासियों के लिए पेसा कानून लागू करने के नाम पर आदिवासी हितैषी होने का ढोंग कर रही है। केंद्र सरकार ने 1996 में पेसा कानून बनाया था, लेकिन भाजपा सरकार की आदिवासी विरोधी मानसिकता के कारण पिछले 26 साल से यह कानून प्रदेश में लागू नहीं हो सका। अब जब प्रदेश सरकार ने यह कानून लागू किया है तो उसके नियम इस तरह से बनाए गए हैं कि आदिवासियों को वास्तव में कोई फायदा ही ना मिल सके।

1996 में प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी 
कमलनाथ ने कहा कि जब 1996 में केंद्र सरकार ने यह कानून बनाया था तब प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी और आवश्यक विधायी कार्य किए जा रहे थे। लेकिन 2003 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद से पेसा कानून को लागू न करने का षड्यंत्र किया गया। उन्होंने कहा कि प्रश्न यह है कि किसको समर्थ बनाने के लिए यह कार्य हो रहा है? आदिवासी समुदाय को या नौकरशाही को? आदिवासी हाथ जोड़े खड़ा हो तो क्या यह पेसा कानून के मूल भावना के प्रतिकूल होकर सरकार की नियत को आदिवासी विरोधी प्रमाणित नहीं करता ?

वन विभाग को आदिवासी ग्रामसभा से अनुमति लेनी पड़ेगी, तभी आदिवासी सशक्तिकरण होता
कमलनाथ ने कहा कि आदिवासी समाज को सशक्त बनाने का प्रावधान ऐसा होना चाहिए था कि वन विभाग का कर्मचारी आदिवासी ग्राम सभा से अनुमति लेता, यदि उसे तेंदूपत्ते का संग्रहण और विपणन करना हो। प्रावधान तो यह होना चाहिये था कि वन विभाग को आदिवासी ग्रामसभा से अनुमति लेनी पड़ेगी, तभी आदिवासी सशक्तिकरण होता।

नियमों को निर्मित करने के पूर्व आदिवासी समाज से गहन विचार विमर्श करना था
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लागू किए जा रहे पेसा नियम आदिवासी क्षेत्रों में उनकी सामाजिक, संस्कृति और जीवन शैली के अनुकूल स्वशासन की स्थापना करने की निहित मंशा को समाप्त करते हैं। कमलनाथ ने कहा कि इन नियमों को निर्मित करने के पूर्व आदिवासी समाज से गहन विचार विमर्श, सुझाव लेना, सर्व दलों की बैठक करना था। सरकार की आदिवासी समाज के प्रति सोच और गंभीरता को प्रकट करता है।

भाजपा को आदिवासी समुदाय के साथ छल करने की मानसिकता छोड़ देनी चाहिए 
कमलनाथ ने कहा कि भाजपा सरकार यदि महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज और राजीव गांधी जी की पंचायत राज की मंशा के अनुरूप आदिवासी समाज की भावनाओं के अनुकूल धरातल पर स्थापित करना चाहती तो वन अधिकार कानून, साहूकारी कानून, भू-अर्जन कानून, पंचायत कानून, भूराजस्व संहिता और अन्य सुसंगत कानूनों की समग्रता में समीक्षा और निर्वचन कर संविधान और पेसा कानून के आलोक में नियमों को बनाती। कमलनाथ ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को आदिवासी समुदाय के साथ छल करने की मानसिकता छोड़ देनी चाहिए और इमानदारी से आदिवासी समुदाय का सम्मान और कल्याण करना चाहिए।

इसे भी देखें

15 महीनों तक रामलला को वेद मंत्र सुनाएंगे महाराष्ट्र के वैदिक विद्वान

- देश-दुनिया तथा खेत-खलिहान, गांव और किसान के ताजा समाचार पढने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म गूगल न्यूजगूगल न्यूज, फेसबुक, फेसबुक 1, फेसबुक 2,  टेलीग्राम,  टेलीग्राम 1, लिंकडिन, लिंकडिन 1, लिंकडिन 2, टवीटर, टवीटर 1, इंस्टाग्राम, इंस्टाग्राम 1कू ऐप से जुडें- और पाएं हर पल की अपडेट