...तो आज भी प्रवाहमान है सरस्वती नदी !

...तो आज भी प्रवाहमान है सरस्वती नदी !

वैज्ञानिकों कों कड़ी मेहनत के बाद मिली कामयाबी

प्रयागराज, त्रिवेणी संगम पर गंगा-यमुना के के नीचे बहने वाली तीसरी प्राचीन नदी के प्रमाण मिले हैं। यह अध्ययन सीएसआईआर-एनजीआरआई के वैज्ञानिकों ने तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस नदी का संबंध हिमालय से है, ऐसे में यह तीसरी नदी सरस्वती हो सकती है। फिलहाल सरस्वती नदी की धारा संगम पर लंबे समय से अदृश्य हो चुकी है। ऐसे में संगम के नीचे तीसरी नदी के सबूत चौंकाने वाले हैं।

प्रयाग क्षेत्र में संगम के निकट मिले प्रमाण

सीएसआईआर की की इस रिपोर्ट को एडवांस अर्थ एंड स्पेस साइंस जर्नल में प्रकाशित किया गया है। रिपोर्ट में यह बताया है कि प्रयाग क्षेत्र में संगम के निकट 45 किलोमीटर लंबी चार किलोमीटर चौड़ी और 15 मीटर गहरी नदी के प्रमाण मिले हैं, जो आज भी प्रवाहमान है। जब यह नदी पूरी तरह पानी से भर जाती है तो भूमि के ऊपर 1300 से 2000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाती है। इस नदी के पास 1000 डब्ड स्टोरेज की क्षमता है और किसी भी समय भूजल स्तर को बढ़ाने की अद्भुत क्षमता रखती है।

गंगा के गिरते जलस्तर के बारे में  शुरू की थी छानबीन

इस खोज के पीछे नदी की वास्तविकता का पता करना नहीं था, बल्कि वैज्ञानिकों ने गंगा के गिरते जलस्तर के बारे में छानबीन शुरू की थी। दुनिया की कई नदियों में जलस्तर गिर रहा है। बड़ी नदियों के निचले स्तर पर एक्वीफर सिस्टम होता है। यह गंगा में भी है और इसके कारण ही बड़े पैमाने पर भारत के उत्तरी मैदान में जल आपूर्ति होती है। पिछले कई वर्षों में गंगा पर जलापूर्ति के लिए दबाव अत्यधिक बढ़ गया है, जिस कारण गंगा के जलस्तर में कमी हो रही है। यह सतह पर नहीं दिखती लेकिन नीचे स्थित एक्वीफर सिस्टम प्रभावित कर रही है।

वैज्ञानिकों ने पूरे क्षेत्र की मैपिंग के लिए किया इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे 

गिरते जल स्तर के कारणों पर यह शोध गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र में किया गया। इसमें सुभाष चंद्र, वीरेंद्र एम तिवारी, मुलावाडा विद्यासागर समेत कई वैज्ञानिक इसमें शामिल थे। इन वैज्ञानिकों ने हेलीकॉप्टर की सहायता से पूरे क्षेत्र की मैपिंग के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे किया। कई उड़ानों के बाद अलग-अलग हुए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक्स सर्वे को एक साथ मिलाकर जब इस पूरे क्षेत्र का एक नक्शा बनाया गया तो यह आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए।

अंतरराष्ट्रीय पीर रिव्यू ने की है पुष्टि

अब तक जितनी रिपोर्ट सामने आई है, उसमें इस अदृश्य नदी के उद्गम के संदर्भ में पर्याप्त बातें नहीं कही जा सकतीं, लेकिन यह तय है कि यह नदी 12 महीने जल से भरी रहती है और गंगा यमुना में जल स्तर को संतुलित रखती है। इस जांच के बाद अंतरराष्ट्रीय पीर रिव्यू ने प्राचीन नदी की प्रामाणिकता की पुष्टि की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यह दृश्य नदी उसी स्थान पर मिली है जहां पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सरस्वती नदी के बहने की बात कही गई थी।

हिमायलय है गंगा और यमुना का उद्घम स्थल

इस रिसर्च को बाद में अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन में भी छापा गया है। इन शोधों ने सरस्वती की प्रामाणिकता को सिद्ध कर दिया है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अग्रिम जांच से यह बात सिद्ध हो सकती है कि इस अदृश्य नदी का उद्गम हिमालय में ही है क्योंकि गंगा और यमुना का उद्गम हिमालय में ही है। इस शोध टीम का नेतृत्व करने वाले एनजीआरआई के निदेशक डॉ. वीरेंद्र एम तिवारी ने गंगा-यमुना के संगम के नीचे तीसरी नदी के प्रमाण मिलने कीपुष्टि की। उन्होंने बताया कि जिस गहराई पर नदी की खोज की गई थी और ड्रिलिंग प्रक्रिया के बाद प्राथमिक विश्लेषण को देखते हुएए ऐसा लगता है कि नदी 10,000 से 12,000 साल पुरानी होने की संभावना है।

इसलिए किया गया था सर्वे

दरअसल, यह खोज अप्रत्याशित रूप से सामने आई है क्योंकि वैज्ञानिक पानी की खोज करने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे कर रहे थे। ताकि, जमीन के नीचे मौजूद पानी का पता लगाया जा सके और उसका उपयोग पीने के पानी, खेती और अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जा सके। इसके लिए सीएसआईआर-एनजीआरआई के वैज्ञानिकों ने हेलिकॉप्टर पर ड्यूल मोमेंट ट्रांजिएंट इलेक्ट्रोमैग्नेटिक टीम तकनीक को फिट किया और उसकी मदद से गंगा-यमुना के दोआब की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक मैपिंग की।