19 अप्रैल: आज के ही दिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू कैबिनेट से दिया था इस्तीफा, जानिए क्यों
नई दिल्ली,1950 में आज ही का दिन था। भारत की राजनीति में पहली बार केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा देने वाले पहले मंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी हैं। 19 अप्रैल 1950 को उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
श्यामा प्रसाद को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करना चाहते थे नेहरू
श्यामा प्रसाद को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कभी भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करना चाहते थे। लेकिन, मजबूरन उन्हें ऐसा करना पड़ा था। इसकी सबसे बड़ी वजह थे महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल। इन दोनों ने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आजादी के बाद बने पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में रखने की पैरवी की थी। वह देश के पहले उद्योग और आपूर्ति मंत्री बने थे। लियाकत-नेहरू पैक्ट से नाराजगी श्यामा प्रसाद के इस्तीफा देने का कारण बनी थी। उन्हें लगता था कि नेहरू सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हिंदुओं के अधिकारों को नजरअंदाज किया था। इसके बाद ही उन्होंने भारतीय जनसंघ की नींव रखी थी। यह वही थी जिसके बारे में नेहरू ने एक बार सदन में बहस के दौरान बोला था- 'आई विल क्रश जनसंघ'। इसके जवाब में मुखर्जी बोले थे - 'आई विल क्रश दिस क्रशिंग मेंटालिटी'।
उन्हें एहसास हो गया था कि मुस्लिम लीग मुसलमानों में अलगाव पैदा कर रही
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को बंगाल के कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने इंग्लैंड से वकालत की थी। उनकी पहचान एक अकैडमिक और लॉयर के रूप में बन गई थी। इसके बाद कांग्रेस से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। हालांकि, मतभेद होने पर वह हिंदू महासभा के सदस्य बन गए थे। विनायक दामोदर सावरकर उस समय हिंदू महासभा के नेता थे। 1939 में वह बंगाल प्रवास पर आए थे । इस दौरान डॉक्टर मुखर्जी की उनसे मुलाकात हुई। इसके बाद मुखर्जी ने हिंदू महासभा की सदस्यता ले ली थी। डॉ मुखर्जी को एक बात बहुत साल रही थी। उन्हें एहसास हो गया था कि मुस्लिम लीग मुसलमानों में अलगाव पैदा कर रही है। वह हर जगह उनका पक्ष भी लेती है। हालांकि, हिंदुओं की बात उठाने के लिए कोई राजनीतिक दल सामने नहीं आता।
नेहरू-लियाकत पैक्ट को मुखर्जी हिंदुओं के साथ धोखा मानते थे
आजादी के बाद गांधी जी और पटेल के कहने पर स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में पंडित नेहरू ने उन्हें उद्योग मंत्री के तौर पर जगह दी। लेकिन, तत्कालीन स्थितियों को देखकर वह रह नहीं पाए। उन्होंने कुछ साल में ही इस्तीफा दे दिया। नेहरू-लियाकत पैक्ट को मुखर्जी हिंदुओं के साथ धोखा मानते थे। इसी चीज से नाराज होकर आज ही के दिन 1950 में उन्होंने नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था।
बंटवारे के बाद लाखों लोग बेघर हुए थे
दरअसल, भारत को आजादी की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। अंग्रेजों ने इसे दो हिस्सों में बांटा था। भारत और पाकिस्तान। बंटवारे के बाद लाखों लोग बेघर हुए थे। इनका पलायन हुआ था। इस दौरान न जाने कितने लोग हिंदुस्तान से पाकिस्तान और पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए। बंटवारे के दर्द ने आजादी की खुशी खत्म कर दी थी। देशभर में इस दौरान दंगे हुए। 1949 में नौबत यह आ गई कि भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापारिक संबंध खत्म हो गए। पूर्वी पाकिस्तान (आज बांग्लादेश) से 1950 तक करीब 10 लाख हिंदू सीमा पार करके हिंदुस्तान आ गए थे। ऐसे ही पश्चिम बंगाल से लाखों मुसलमान सीमा पार करके पाकिस्तान चले गए थे।
नेहरू-लियाकत पैक्ट के अहम बिंदु-
-पलायन करने वाले लोगों को ट्रांजिट के दौरान सुरक्षा दी जाएगी. उन्हें अपनी संपत्ति को बेचने का अधिकार होगा और इसके लिए वो सुरक्षित आ-जा सकते हैं.
-अवैध तरीके से अल्पसंख्यकों की कब्जाई संपत्ति को उन्हें वापस लौटाया जाएगा, जिन औरतों को अगवा किया गया है उन्हें उनके परिवार को वापस सौंपा जाएगा.
-दोनों देश अपने यहां के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करेंगे. अल्पसंख्यकों को देश के दूसरे नागरिकों की तरह अधिकार दिए जाएंगे. जबरदस्ती धर्म परिवर्तन अवैध होगा और इसे रोका जाएगा.
-दोनों देश संयम से काम लेंगे और युद्ध भड़काने वाली और देश की अखंडता को प्रभावित करने वाले प्रचार को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा.
नेहरू-लियाकत पैक्ट: अल्पसंख्यकों को बाकी नागरिकों जैसे अधिकार
दोनों देशों में इस दौरान अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार हुए। समस्या का समाधान करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ भारत के पहले पीएम पंडित नेहरू मेज पर बैठे। एक पैक्ट पर हस्ताक्षर हुए। इस पैक्ट को ही नेहरू-लियाकत पैक्ट के नाम से जानते हैं। इस पैक्ट में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने की बात कही गई थी। वादा किया गया था कि उन्हें बाकी नागरिकों जैसे अधिकार दिए जाएंगे। मुखर्जी को इस बात का एहसास था कि भारत में बेशक इसका पालन होगा। लेकिन, पाकिस्तान इस पर कतई अमल नहीं करेगा।
वैकल्पिक राजनीति की जरूरत
जवाहर लाल नेहरू की नीतियों के विरोध में एक वैकल्पिक राजनीति की इच्छा डॉ. मुखर्जी के मन में हिलोरे मारने लगी थी। गांधी की हत्या के बाद संघ पर लगे प्रतिबंध की वजह से देश का एक तबका यह मानने लगा था कि देश की राजनीति में कांग्रेस का विकल्प होना भी जरूरी है।
21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की नींव पड़ी, मुखर्जी उसके पहले अध्यक्ष चुने गए
आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से सलाह करने के बाद 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में एक छोटे से कार्यक्रम से भारतीय जनसंघ की नींव पड़ी और डॉ. मुखर्जी उसके पहले अध्यक्ष चुने गए।
पहला आम चुनाव और जनसंघ की तीन सीटों पर जीत
1952 में देश में पहला आम चुनाव हुआ और जनसंघ तीन सीटें जीत पाने में कामयाब रहा। डॉ. मुखर्जी भी बंगाल से जीत कर लोकसभा में आए। बेशक उन्हें विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं था लेकिन वे सदन में पंडित नेहरू की नीतियों पर तीखा प्रहार करते थे।
सदन में नेहरू ने कहा था 'आई विल क्रश जनसंघ'
सदन में बहस के दौरान पंडित नेहरू ने एकबार डॉ. मुखर्जी की तरफ इशारा करते हुए कहा था, 'आई विल क्रश जनसंघ'। इस पर डॉ मुखर्जी ने तुरंत जवाब दिया, 'आई विल क्रश दिस क्रशिंग मेंटालिटी'। शायद एक स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष की मजबूत अवधारणा की नींव तब नहीं रखी जा सकती, अगर डॉ. मुखर्जी न होते।
आर्टिकल 370 के विरोध में डॉ. मुखर्जी
कश्मीर के संबंध में आर्टिकल 370 आदि को लेकर डॉ. मुखर्जी का विरोध मुखर था. उनका साफ मानना था कि 'एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे'। उस समय जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए परमिट की जरूरत होती थी और वहां मुख्यमंत्री के बजाय प्रधानमंत्री का पद होता था।
बिना परमिट जम्मू-कश्मीर की यात्रा शुरू कर दी
डॉ. मुखर्जी इसे देश की एकता में बाधक नीति के रूप में देखते थे और इसके सख्त खिलाफ थे। 8 मई 1953 को डॉ मुखर्जी ने बिना परमिट जम्मू-कश्मीर की यात्रा शुरू कर दी। जम्मू में प्रवेश के बाद डॉ. मुखर्जी को वहां की शेख अब्दुल्ला सरकार ने 11 मई को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के महज चालीस दिन बाद 23 जून 1953 अचानक सूचना आई कि डॉ. मुखर्जी नहीं रहे।
पंडित नेहरू ने डॉ. मुखर्जी की मौत की जांच कराना मुनासिब नहीं समझा
11 मई से 23 जून तक उन्हें किस हाल में रखा गया इसकी जानकारी उनके परिजनों को भी नहीं थी। इस बात पर डॉ मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को उलाहना भरा पत्र लिखकर डॉ. मुखर्जी की मौत की जांच की मांग की, लेकिन डॉ नेहरू ने जवाब में लिखा कि मैंने लोगों से पूछकर पता लगा लिया है। उनकी मौत में जांच जैसा कुछ नहीं है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने जांच कराना मुनासिब नहीं समझा।
इतिहास में 19 अप्रैल की तारीख पर दर्ज अन्य घटनाएं
साल 1451 में बहलोल लोदी ने दिल्ली को अपने कब्जे में लिया।
1770 में कैप्टन जेम्स कुक आस्ट्रेलिया पहुंचे थे। इसके साथ ही वह यहां पहुंचने वाले पहले पश्चिमी व्यक्ति बन गए थे।
1775 में अमेरिकी क्रांति की शुरुआत हुई थी।
1882 में कलकत्ता को पहला प्रसूति अस्पताल मिला था।
हेली पुच्छल तारे को पहली बार साल 1910 में आज ही के दिन सामान्य रूप से देखा गया था।
साल 1919 में अमेरिका के लेस्ली इरविन ने पैराशूट से पहली बार छलांग लगाई थी।
1936 में फलस्तीन में यहूदी के खिलाफ दंगे शुरू हुए थे।
1950 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तत्कालीन पीएम नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था. इसके साथ ही वह ऐसा करने वाले पहले मंत्री बन गए थे।
भारत ने वेस्टइंडीज को साल 1971 में हराकर टेस्ट क्रिकेट सीरीज जीत लिया था।
1972 में बांग्लादेश राष्ट्रमंडल का सदस्य बना था।
1975 में आज के दिन भारत ने रूस की मदद से अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया था। दरअसल यह भारत का पहला वैज्ञानिक उपग्रह था।
साल 2011 में क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ क्यूबा की केन्द्रीय समिति में 45 वर्ष बाद इस्तीफा दे दिया।
2020 में कोरोना संक्रमण से दिल्ली में नवजात की मौत। वहीं देश में संक्रमित लोगों का आंकड़ा 17,000 के पार पहुंच गया था।