rajesh dwivedi
सतना। कमजोर सीट पर सशक्त सांसदों को उतारने की भाजपाई रणनीति ने यदि मूर्तरूप लिया तो सांसद गणेश सिंह को विधानसभा चुनाव में उतारा जा सकता है। गौरतलब है कि भाजपा ने एंटी इंकम्बेंसी व विधायकों की खराब परफार्मेंस रिपोर्ट आने के बाद मजबूत सांसदों को कमजोर सीटों पर उतारकर हारी बाजी को जीतने की योजना भाजपा के रणनीतिकारों ने बनाई है। ऐसे में यदि गणेश सिंह को किसी विधानसभा से टिकट दी जाती है और वे चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच जाते हैं तो वे लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीतने के बावजूद विधानसभा में जूनियर हो जाएंगे। हालांकि सांसद गणेश सिंह के इंकार के बाद इस बात की संभावना बेहद कम है कि वे विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे , लेकिन कयासों के बीच राजनैतिक गलियारों में ऐसी चटपटी चर्चाओं का बाजार गर्म है।
तीन मर्तबा सर्वोच्च सदन पहुंच चुके गणेश
गणेश सिंह तीन मर्तबा देश के सर्वोच्च सदन (लोकसभा ) में अपनी आमद दर्ज करा चुके हैं और चौथी बार लोकसभा पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं। 1999-2004 तक जिला पंचायत अध्यक्ष का दायित्व संभालने के बाद वर्ष 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनाव में वे तत्कालीन लोकसभा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह को हराकर पहली बार सांसद बने थे।
2009 में बसपा प्रत्याशी सुखलाल कुशवाहा व 2014 में कांग्रेस प्रत्याशी अजय सिंह राहुल को हराकर तीसरी बार सांसद बने। इस प्रकार से वे अब तक तीन बार सांसद बन चुके हैं। यदि लोकसभा में पहुंचने के लिहाज से देखा जाय तो वर्ष 2014 में वाराणसी से सांसद बनकर प्रधानमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी से सांसद गणेश सिंह सीनियर हैं, लेकिन यदि वे विधानसभा पहुंचे तो विधानसभा के कई अन्य सदस्यों की तुलना में वे जूनियर हो जाएंगे।
किंग नहीं किंगमेकर की भूमिका में रहने की संभावना
यदि सूत्रों की माने तो सांसद गणेश सिंह के विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना कम है क्योंकि वे लोकसभा की तैयारी में हैं और अपने इस इरादे से प्रदेश के नेताओं व चुनाव समिति को अवगत भी करा चुके हैं। उन्होने पदाधिकारियों से स्पष्ट कर दिया है कि यदि जनभावनाओं के अनुसार अमरपाटन में टिकट दी गई तो अमरपाटन ही नहीं बल्कि जिले से कम से कम पांच सीटें भाजपा के खाते में आएंगी। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि सांसद गणेश सिंह विधानसभा चुनाव में जिले में किंगमेकर की भूमिका में तो रहना चाहते हैं लेकिन वे स्वयं चुनाव लड़कर किंग बनने की तमन्ना नहीं रखते हैं।