रैगांव विधानसभा सीट: अब तक हुए सिर्फ 9 चुनाव

रैगांव विधानसभा सीट: अब तक हुए सिर्फ 9 चुनाव

अनुसूचित जाति के लिए है आरक्षित, 2 लाख 31 हजार 196 मतदाता चुनेंगे अपना विधायक

rajesh dwivedi सतना। विधानसभा  सीटों में उम्र के हिसाब से अनुसूचित जाित के लिए आरक्षित रैगांव विधानसभा सीट सबसे छोटी है। आजादी के 30वें साल यानि 1977 में इस सीट का गठन किया गया। अब तक यहां महज 9 चुनाव ही हुए हैं जिसमें सर्वाधिक चार मर्तबा बीजेपी को कामयाबी मिली है। इसके अलावा बार कांग्रेस एवं एक-एक बार जनता पार्टी और बीएसपी को सफलता हासिल हुई है। 1977 में थे 32237 मतदाता जानकारी के मुताबिक 1977 में जब इस सीट पर पहला चुनाव हुआ तब कुल मतदाताओं की संख्या 32237 थी। यह चुनाव जनता पार्टी के विश्वेशर प्रसाद ने 18589 मत हासिल कर जीता था। मौजूदा समय में यहां मतदाताओं की संख्या बढ़कर 2 लाख 31 हजार 196 तक पहुंच गई जिसमें 1 लाख 21 हजार 739 पुरुष, 1 लाख 06 हजार 861 महिला, 10 ट्रांसजेण्डर एवं 430 सरकारी मतदाता शामिल हैं। जुगुल ने बनाई हार की हैट्रिक रैगांव विधानसभा सीट से सर्वाधिक चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी जुगुल किशोर बागरी हैं। इन्होंने कुल सात मर्तबा चुनावी अखाड़े में ताल ठोंका जिसमें शुरुआती तीन चुनावों में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा। जबकि इन हारों के बाद उन्होंने जीत का चौका भी जड़ा। बता दें कि 1980 में निर्दलीय प्रत्याशी की हैसियत से जुगुल किशोर मैदान में उतरे और उन्हें महज 6005 वोट मिले। इस चुनाव में कांग्रेस के रामाश्रय प्रसाद 17719 वोट लेकर चुनाव जीत गए। फिर आया 1985 का चुनाव, जिसमें श्री बागरी बीजेपी के रथ पर सवार थे लेकिन इस बार फिर उन्हें रामाश्रय प्रसाद ने पटखनी दे दी। रामाश्रय प्रसाद को 18189 वोट मिले जबकि जुगुल किशोर को 17707 मत प्राप्त हुए। 1990 का चुनाव बेहद दिलचस्प था, इसमें भाजपा से जहां जुगुल किशोर बागरी किस्मत आजमा रहे थे वहीं जनता दल से उनके सगे भतीजे धीरेन्द्र सिंह धीरू से उनका सामना हुआ। लेकिन बाजी धीरू के हाथ लगी। धीरू को 21060 वोट मिले जबकि जुगुल किशोर 20255 मत पाकर चुनाव हार गए। बहुरे जुगुल के दिन लगातार तीन चुनावों में पराजय का सामना करने वाले जुगुल किशोर बागरी के दिन 1993 में बहुरे। इस वर्ष हुए मध्यावधि चुनाव में उनकी किस्मत ने पलटी मारी और 2013 तक लगातार चार चुनावों में वे अजेय रहे। 1993 में श्री बागरी ने बीएसपी के राम बहोरी को मात दी, 2003 में भी उन्होंने बसपा को ही हराया। यहां यह भी बता दें कि 2008 के विधानसभा चुनाव में जुगुल किशोर बागरी के पक्ष में फिल्म इण्डस्ट्री की ड्रीम गर्ल हेमामालिनी भी प्रचार करने आर्इं थी। उन्होंने सिंहपुर में एक सभा को सम्बोधित भी किया था और श्री बागरी ने चुनावी किला फतह कर लगातार जीत का चौका मारा। 2013 में खुला बसपा का खाता इस सीट पर 1990 के बाद बीएसपी का दबदबा लगातार देखने को मिला। बीएसपी ने कांग्रेस को भी काफी पीछे धकेल दिया। मगर बावजूद इसके बहुजन समाज पार्टी को यहां से जीत का स्वाद चखने को नहीं मिला। 2013 में बीएसपी ने महिला प्रत्याशी ऊषा चौधरी को उम्मीदवार बनाया। जबकि बीजेपी ने जुगुल किशोर बागरी की जगह उनके बेटे पुष्पराज बागरी को मैदान में उतारा। कांग्रेस ने भी नागौद से मंडी अध्यक्ष गया प्रसाद बागरी पर भरोसा किया। इस त्रिकोणीय मुकाबले में बसपा की ऊषा चौधरी के सामने सभी उम्मीदवार चारों खाने चित्त हो गए और पहली बार बसपा को जीत का स्वाद चखने को मिला।