उर्दू को मुसलामानों की भाषा कहकर षड्यंत्र रचा गया है: शबाना आजमी

पहले अपने अब्बा कैफी आजमी और बाद में शौहर जावेद अख्तर के साथ उर्दू, शायरी, गीत और गजल को बढ़ावा देती रहीं अभिनेत्री शबाना आजमी कहती हैं कि एक माहौल बनाकर उर्दू भाषा को मुसलामानों की भाषा कहकर षड्यंत्र रचा गया है। वह पिछले एक महीने से अपने अब्बा के शताब्दी जन्मदिन को लेकर तैयारी कर रही हैं और अगले कई महीनों तक देश-दुनियां में कैफ़ी आजमी के नाम पर एक संगीतमय प्रोग्राम किया जाना है। इसी दौरान नवभारतटाइम्स डॉट कॉम से हुई बातचीत में शबाना ने उर्दू भाषा को लेकर लंबी बात की।
शबाना कहती हैं, 'मुझे नहीं लगता कि उर्दू जबान यंगिस्तान से दूर हो रही है। मैं बहुत सारे ऐसे यंग लोगों से मिलती हूं, जिन्हें उर्दू लिपी भले नहीं आती है, लेकिन वह उर्दू जबान बोलना अच्छी तरह जानते हैं। बहुत सारे बच्चे उर्दू जबान सीखना भी चाहते हैं, जब यंगिस्तान का लगाव उर्दू के प्रति देखती हूं तो मुझे लगता है कि हम सभी इस्टैब्लिश लोगों को यंगिस्तान उर्दू में चीजें मुहैया करानी चाहिए तो नवजवान उसे दोनों हाथों से लेंगे।'
शबाना आगे कहती हैं, 'अगर आप 30 से 40 साल पहले की फिल्में देखें तो पता चलेगा कि हिंदी जबान में उर्दू मुहाफिज थी। हिंदी फिल्मों के गानों और डायलॉग में उर्दू खूब झलकती थी। बाद में यह बात कही या कहलवाई गई है कि उर्दू सिर्फ मुसलमानों की जबान है और यह एक षड्यंत्र रहा है, जिसकी वजह से उर्दू को बड़ा नुकसान हुआ है। मैं पूछती हूं कि कोई जबान किसी मजहब की कैसे हो सकती है। जबान तो किसी रीजन की होती है और उर्दू नार्थ इंडिया की जबान रही है।'
वह उदाहरण देते हुए बताती हूं, 'कितने सारे गुलजार और विश्वामित्र जैसे नामी-गिरामी राइटर हैं, जो हिंदी देवनागरी नहीं लिख सकते, वह आज भी उर्दू में ही लिखते हैं।उर्दू को पॉलिटिकल तौर से एक मजहब की जबान करार कर दिया गया है, इसका नुकसान भी हुआ है। शुरू में जो फिल्में थीं उसमे हीरो का नाम अशोक कुमार हो सकता है और हिरोइन कांता हो सकती है, फिर भी उनके गाने उर्दू से ओत-प्रोत होते थे। आज सोशल मीडिया के जमाने में जबान और तलफ्फुस की कोई परवाह ही नहीं करता है। हर चीज को शॉट फॉर्म में करने की कोशिश हो रही है। मैं एक राइटर के परिवार से हूं इसलिए मुझे भाषा को लेकर, जो भी हो रहा है, उससे मुझे दुःख होता है।'
फिल्मों में उर्दू के प्रयोग पर शबाना कहती हैं, 'भाषा हम किसी पर लाद नहीं सकते हैं। अब मेरे बच्चे फरहान और जोया जिस तरह की फिल्म बनाते हैं, उनमें उर्दू का प्रयोग ही नहीं होता, लेकिन जब ऐसा महसूस होगा कि उर्दू या ग़जल का प्रयोग करना है तो जरूर वह अपनी फिल्मों में इस्तेमाल करेंगे। मेरे लिए खुशी की बात यह है कि फरहान, जोया और फरहान की दोनों बेटियां भी शायरी करती हैं।'