कांग्रेस के एक 'वचन' से गिरते पारे में क्यों गरमाई मध्य प्रदेश की सियासत!

कांग्रेस के एक 'वचन' से गिरते पारे में क्यों गरमाई मध्य प्रदेश की सियासत!

भोपाल 
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीख बिल्कुल नजदीक है. मौसम के गिरते पारे के बीच प्रदेश की सियासत में गर्मागर्मी का एक नया शिगूफा कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में छेड़ दिया है. चुनावों के लिए कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो को 'वचन-पत्र' नाम से पेश किया और उसमें प्रदेश की जनता से यह भी वादा किया कि अगर सरकार बनी तो सरकारी कर्मचारियों के संघ की शाखाओं में जाने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा.

कांग्रेस के वचनपत्र में संघ की शाखाओं पर बैन लगाए जाने की बात सामने आते ही सूबे की सियासत गिरते पारे में गरमा गई है. वचनपत्र से बौखलाई बीजेपी कांग्रेस को देश विरोधी करार देने से लेकर इमरजेंसी के हालात लाने जैसे आरोप लगाकर कठघरे में भले ही खड़ी कर रही है, लेकिन बीजेपी शायद यह भूल गई कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने यह पहली बार नहीं किया है. ऐसा आदेश बीजेपी की सरकारों में भी लागू रहा.

दरअसल, दिग्विजय सिंह सरकार के समय पारित एक आदेश में स्पष्ट किया गया था कि 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व अन्य ऐसी संस्थाओं के कार्यकलापों में भाग लेना या उससे किसी रूप में सहयोग करना मध्यप्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियम का उल्लंघन माना जाएगा.' दिग्विजय सिंह सरकार का यह आदेश 2003 में मध्य प्रदेश में बीजेपी सरकार आने के बाद भी जारी रहा था.

इतना ही नहीं बीजेपी के दो दिग्गज नेता उमा भारती और बाबूलाल गौर के कार्यकाल में भी यह प्रतिबंध जारी रहा था. उमा भारती जैसी फायर ब्रांड नेताओं के दम पर ही भाजपा ने राम मंदिर मुद्दे से लेकर श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने जैसी राजनीतिक लड़ाई लड़ी, उनके कार्यकाल में भी आरएसएस को लेकर लगाया गया प्रतिबंध जारी था.

शिवराज सिंह चौहान ने भी ताजपोशी के तुरंत बाद सरकारी कर्मचारियों के लिए आरएसएस से जुड़ा कोई आदेश जारी नहीं किया था. शिवराज के पहले कार्यकाल में करीब 10 महीने तक यह नियम लागू रहा था. सितंबर 2006 में जाकर मध्यप्रदेश की सरकार ने शासकीय कर्मचारियों पर लगे उस प्रतिबंध को समाप्त कर दिया है जिसके तहत वे आरएसएस के सदस्य नहीं बन सकते थे.

संघ के बहाने इस मुद्दे पर बीजेपी भले ही कांग्रेस को घेरकर पॉलिटकल माइलेज लेने की कोशिश कर रही हो लेकिन अतीत दिखाता है कि उमा भारती से लेकर बाबूलाल गौर तक के कार्यकाल के दौरान एमपी में संघ की शाखाओं में सरकारी कर्मचारियों के जाने पर प्रतिबंध लागू था. अब जबकि कांग्रेस के वचन पत्र में इस प्रतिबंध की बात फिर दोहराई गई, तो मध्य प्रदेश के सियासी पारे में थोड़ी हलचल जरूर मची है.