ग्रहों की स्थिति आज भी कृष्ण जन्म जैसी, यह है पूजा का विधान

ग्रहों की स्थिति आज भी कृष्ण जन्म जैसी, यह है पूजा का विधान

 मथुरा 
इस बार जन्माष्टमी पर वैसी ही ग्रह स्थिति है, जैसी श्री कृष्ण के जन्म के समय बनी थी। दीपक ज्योतिष भागवत संस्थान से आचार्य शरद चतुर्वेदी साहित्याचार्य ने बताया कि भविष्य पुराण के अनुसार द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण का मथुरा में कंस के कारागार में अवतार हुआ उस समय रोहिणी नाम का नक्षत्र था, वृष राशि के उच्च राशि में चंद्रमा सिंह राशि में सूर्य देव विचरण कर रहे थे, भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि को निशीथ बेला में मध्य रात्रि में भगवान का जन्म हुआ था। आज वही रोहिणी नक्षत्र पुन: जन्म के समय आ गया है। ग्रह स्थिति भी उसी प्रकार की आ गई है।
 
पंडित अमित भारद्वाज का कहना है कि चंद्रवंशी कृष्ण के जन्म के समय द्वापर में हुई घटना आज भी घटित होती हैं। श्रीमद् भागवत दसम् स्कंध में कृष्ण जन्म प्रसंग में उल्लेख मिलता है कि जिस समय पृथ्वी पर अर्धरात्रि में कृष्ण अवतरित हुए ठीक उसी समय आकाश में कृष्ण के पूर्वज चंद्रदेव प्रकट हुए। नारायण द्वारा अपने कुल में जन्म को लेकर चंद्रमा को उत्सुकता थी, वह अपने वंशज के जन्म का साक्षी बने। हालांकि ब्रज में उस समय घनघोर बादल छाए थे लेकिन चंद्रदेव ने दिव्य दृष्टि से अपने वंशज को जन्म लेते दर्शन किए। आज भी कृष्ण जन्म के समय अर्धरात्रि में चंद्रमा उदय होता है। 24 अगस्त को चंद्रोदय रात 12 बजे का पंचांग में दिया हुआ है। भारद्वाज ने कहा है कि चंद्रमा की सबसे प्रिय पत्नी रोहिणी है, इसीलिए कृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया।
 

पूजा का विधान
कामेश्वर चतुर्वेदी ने बताया कि कृष्ण जन्माष्टमी तिथि को प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर स्नान आदि से निवृत्त होकर जन्मोत्सव व्रत करूंगा इस तरह से संकल्प करके पूजन की सभी सामग्री एकत्र करें। अपने घर में झांकियां भी बनाएं, रोली चावल, नाना प्रकार के पुष्प, खीरा, पांच प्रकार के फल, केले के पत्ते खिलौने, खरबूजे की मिर्गी और गोला का पाग बनाएं, पंजीरी, पंचामृत बनाएं, पान, सुपारी, धूप-दीप नैवेद्य प्रस्तुत करें। व्रत के दिन बार-बार जलपान नहीं करें, तांबूल (पान) भक्षण नहीं करें, झूठ नहीं बोलें, नाखून नहीं काटें, दिन में शयन नहीं करें, किसी की निंदा नहीं करें। जब रात का 12:00 बजने का समय आए, उससे पूर्व एक खीरे में भगवान श्रीकृष्ण को बैठाए।
वेद मंत्र, पद्य आदि बोलते हुए भगवान का 12:00 बजे जन्म करें और पंचामृत में स्नान कराएं।