चीन बनाना चाहता है अपना दलाईलामा: लेखक
न्यूयार्क
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की जीवनी के लेखक भारतीय मूल के एक अमेरिकी पत्रकार ने कहा कि चीन अपना दलाईलामा बनाना चाहता है। वह इस बात में चतुर सुजान है कि जब तक वह उसकी मर्जी के हिसाब से चलेगा, तभी तक वह उसे अपने प्रभाव के औजार के रूप में उसके पद और कद को मान्यता देगा। मयंक छाया की यह टिप्पणी तिब्बत से दलाईलामा के भारत पलायन कर जाने की इसी हफ्ते 60 वीं वर्षगांठ के मौके पर आयी है।
शिकागो में रहने वाले छाया वर्ष 2007 में आध्यात्मिक नेता की जीवनी पर आयी ‘दलाईलामा: मैन, मॉन्क और मिस्टिक’ नामक पुस्तक के लेखक हैं जिसे आलोचकों ने भी सराहा है। अब तक यह पुस्तक दुनियाभर की 20 भाषाओं में छप चुकी है और उसके ऑडियो संस्करण भी आ चुके हैं। उसी का उन्नत संस्करण ‘ द डिनाउंसमेंट : द फोॢटन्थ दलाईलामाज लाइफ ऑफ र्पिससटेंस’ अभी हाल ही में रिलीज हुआ है और उसमें चार नये अध्याय हैं और एक नया उपसंहार है जिसमें जनवरी 2019 तक दलाईलामा के जीवन और उनकी शिक्षाओं का विवरण है।
उन्नत संस्करण में छाया बताते हैं कि वह ऐसा क्यों सोचते हैं कि चीन की दिलचस्पी दलाईलामा के पद को तब तक बनाए रखने में है जब तक कि वह अपनी पसंद के व्यक्ति को दलाई लामा न बना ले। छाया ने कहा कि चीनी नेतृत्व इस बात में चतुर सुजान है कि जबतक दलाईलामा उसकी मर्जी के हिसाब से चलेगा, वह उसे अपने प्रभाव के औजार के रूप में उसके पद और कद को मान्यता देगा।
अपनी पुस्तक में वह लिखते हैं कि वर्तमान दलाईलामा से निपटने में अनिच्छुक या असमर्थ या दोनों, चीन इस बात पर जोर देता है कि वह अपनी मृत्यु पश्चात अवतरित हों या संभवत: पुन: जन्म लें। खूब लोकप्रिय 14 वें दलाईलामा की रुचि अपनी वंश परंपरा और अवतरण खत्म करने में बतायी जाती है। छाया ने पुस्तक में लिखा कि क्या दलाईलामा को अवतरित होना चाहिए या नहीं - बीजिंग का जोर इस बात पर है कि वह होना चाहिये, लेकिन उसके आदेशों का गुलाम उत्तराधिकारी हो जिसे तिब्बत और तिब्बतियों पर चीन के पूर्ण नियंत्रण को स्वीकार करने के लिए ढाला जा सके।